Hindi Short Story: यह बात उन दिनों की जब मैं कक्षा 4 और मेरी छोटी बहन कक्षा 2 में पढ़ती थी हम दोनों के ही इम्तिहान चल रहे थे तब सभी बच्चों को घर से हिसाब से ही पेंसिल रबर वगैराह मिलते थे।ना जाने उस दिन मेरा पेंसिल बॉक्स कहां गुम हो गया था, स्कूल का समय हो रहा था और मैं अपनी छोटी बहन का पेंसिल बॉक्स लेकर फटाफट स्कूल भाग गई। उधर मेरी बहन अपना पेंसिल बॉक्स ढूंढ रही थी और उस चक्कर में वो स्कूल के लिए लेट हो गई। मां ने उसे दूसरे पेंसिल रबर देकर जल्दी स्कूल जाने के लिए कहा। घर पर तो उसे पापा जी की बहुत डांट लगी और स्कूल में लेट पहुंचने पर अध्यापक की।
गलती मेरी थी लेकिन उसकी डांट मेरी बहन को मिली।
वह इस बात को लेकर कई दिन तक मुझसे नाराज रही,फिर मैंने उसे अपनी पॉकेट मनी से एक नया पेंसिल बॉक्स गिफ्ट किया तब जाकर वह मानी। आज भी जब बचपन के किस्सों का जिक्र आता है तो उस किस्से पर वह कहती है दीदी आप मेरी आज भी कर्जदार हो अब मुझे कौन सा गिफ्ट दे कर मनाओगी।
सच ये बचपन के किस्से ही हमारी जमा-पूंजी है, जो हमारे रिश्तों को ताउम्र मधुर बनाते हैं।
बचपन है तो किस्से है, किस्से है तो बचपन है ,और यदि बचपन और किस्से दोनों ही है तो ,पूरी जिंदगी हसीन हो जाती है।
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