बचपन में मैं बहुत शरारती थी। मैं अपनी कोई भी वस्तु किसी को नहीं दिखाती थी। जब भी पापा-मम्मी कोई नई चीज लेकर देते, मैं अकेले ही उससे खेलती। अपने भाई-बहनों को भी नहीं दिखाती थी। उल्टा, उनकी चीजें तोड़ देती थी। खैऱ मेरा स्कूल में दाखिला हुआ। मैं स्कूल जाने लगी। मुझे पापा ने नया बैग, जमैटरी बॉक्स पानी की बोतल, कॉपियां व पैंसिल ले दी। स्कूल में मैडम जब काम कराने लगती, मैं अपना बस्ता ही नहीं खोलती थी। मैडम को इस बात पर हैरानी हुई। उन्होंने मुझे कॉपी लेकर आने को कहा, पर मैं टस से मस नहीं हुई । मुझे डर था कि मेरी पैंसिल, कॉपी कहीं दूसरा बच्चा न ले ले, मुझे अपनी चीज किसी को दिखाने की आदत जो नही थी। पर मेरी मैडम को मुझ पर बहुत गुस्सा आया मैंने कॉपी में काम किया, रोती रही और जब पापा लेने आए तो चैन की सांस ली। मैडम ने मुझे प्यार से समझाया फिर मम्मी पापा ने भी प्यार से समझाया। फिर मेरी आदत में सुधार हुआ। आज भी मुझे सब छेड़ते हैं की इसकी कोई चीज मत छेड़ना रोने लग जाएगी। बचपन की यह जिद़ मुझे भुलाए नहीं भुलती।
ये भी पढ़ें-
