पहला उपहार-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Pehla Uphar

Stories in Hindi: जीवन में पहला उपहार बेहद मायने रखता है, खासकर तब जब आपको उसके मिलने की उम्मीद ही न हो। बचपन से ही कृतिका को अपनी पेन्सिल से बहुत लगाव था और जब उसके हाथों में पेन आया तो फिर उसका पेन के साथ भी एक गहरा लगाव हो गया। कविताएं और कहानियां लिखते हुए कृतिका अपनी सारी परेशानियां भूलकर एक नई दुनिया में चली जाती थी जहां केवल एक कोरा कागज़ था और साथ में रहती थी उसकी सबसे प्यारी सखी, उसकी कलम। कृतिका के पिता बचपन में ही चल‌ बसे थे और उसकी मां दूसरों के घर पर छोटे मोटे काम करके बड़ी मुश्किल से उसका लालन-पालन कर रही थी। एक दिन उसका पेन स्कूल में ही खो गया और वह बारहवीं कक्षा में होकर भी छोटे बच्चे के समान रोने लगी।

उसके सहपाठी देव ने जब उसके रोने का कारण पूछा तो उसने अपने पेन का नाम बताते हुए कहा कि मेरे पास उस कंपनी का पेन था जो मुझसे कहीं खो गया है।

अगले दिन देव ने टेबल के ऊपर पेन रखते हुए कृतिका से कहा, “यह लो तुम्हारा पेन, मैं गलती से इसे घर ले गया था।” कृतिका ने देव के हाथों से पेन लेते हुए गुस्से से कहा, “देव, यह तुमने मेरे साथ सही नहीं किया, कल मुझे मां से डांट सुननी पड़ी क्योंकि यह पेन दस रुपए का था। तुम तो जानते ही हो कि मेरी मां कितनी मेहनत करके मेरी स्कूल की फ़ीस भर पाती हैं और मैं लापरवाही दिखाते हुए हर रोज़ कुछ न कुछ खोती ही रहती हूं।”

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देव ने कृतिका से माफ़ी मांगते हुए कहा, “मुझे माफ़ कर दो कृतिका, अगली बार ऐसा नहीं होगा!”

कृतिका ने कुछ सोचते हुए कहा, “देव, यह पेन तो नया लग रहा है और मेरा पेन तो थोड़ा पुराना था। उसकी स्याही भी थोड़ी कम थी और इस पेन के अंदर स्याही भरी हुई है।”

देव ने थोड़ा झेंपते हुए कहा, “अब छोड़ो यह सब बातें! तुम्हें तुम्हारा पेन मिल गया बस अब तुम्हें और क्या चाहिए?”

कृतिका ने देव‌ को धन्यवाद देते हुए कहा, “देव, तुम्हारा यह उपहार मेरे जीवन का पहला उपहार है! मैं तुमसे वादा करती हूं कि मैं इस उपहार को हमेशा संभाल कर रखूंगी क्योंकि पहला उपहार बेहद खास होता है और हां एक और बात, मुझे माफ़ कर दो क्योंकि मैंने बिना सोचे समझे तुम पर‌ इल्जाम लगाया और तुम्हें भला बुरा कहा फिर भी तुमने मुझे कुछ नहीं कहा और चुपचाप मेरी डांट सुनते रहे।”

देव ने कृतिका से कहा, “यह बेशक तुम्हारे लिए पहला उपहार है लेकिन मुझे विश्वास है कि तुम्हें जीवन में ढेर सारे उपहार मिलेंगे जो बेहद बेशकीमती होंगे। मैं आशा करता हूं कि तुम उन सब उपहारों को पाकर भी अपने पहले उपहार को नहीं भूलोगी। मैं यह भी उम्मीद करता हूं कि तुम इस‌ पेन से जो भी लिखोगी वह सभी को जीवन में सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करेगा।”

बहुत समय बाद, एक दिन कृतिका के पति सात्विक उस पेन को कूड़े के डिब्बे में फेंक रहे होते हैं कि कृतिका उस पेन को फेंकने से मना कर देती है और कहती है, “यह मेरे लिए बेशकीमती है! मैं इस पेन‌ को नहीं फेंक सकती हूं।”

सात्विक ने नाराज़ होते हुए कहा, “ठीक है फिर तुम उसी के पास चली जाओ जिसने तुम्हें यह पेन उपहार स्वरूप दिया है!” वह पैर‌ पटकते हुए वहां से चला जाता है।

कृतिका की सास उससे कहती है, “परेशान मत हो, सात्विक तुमसे ज़्यादा देर तक नाराज़ नहीं रह सकता। अच्छा एक‌ बात बताओ कि तुम्हे यह पेन किसने दिया था?”

कृतिका अपनी आंखों से आंसू पोंछते हुए कहती है, “जिसने यह पेन दिया था वह अब मेरे साथ नहीं है।”

सात्विक कृतिका से कटा कटा रहने लगता है। दोनों के बीच में बातचीत बंद हो जाती है। तभी एक दिन उनसे मिलने कृतिका की सहेली अनामिका अपने पति देव के साथ आती है। अनामिका बहुत सुंदर लड़की थी और उसके पति देव उसका बहुत ख्याल रखते थे क्योंकि वह मूक बधिर थी।

देव ने जब वह पेन कृतिका के हाथों में देखा तो उसने कृतिका से पूछा, “यह वही पेन है न?”

कृतिका ने कहा,‌ “हां, यह वही पेन है!” सात्विक ने देव से पूछा, “तुम इस पेन के बारे में कैसे जानते हो, देखो मुझे लगता है कि कृतिका के किसी खास दोस्त ने ही उसे यह पेन उपहार स्वरूप दिया था लेकिन वह अपने खास दोस्त के बारे में कुछ भी बताने के लिए तैयार नहीं है।”

देव ने मुस्कुराते हुए कहा, “वह नहीं बता पाई क्योंकि वह दोस्त अब इस दुनिया में नहीं है।”

सात्विक ने कृतिका से माफ़ी मांगते हुए कहा, “मुझे माफ़ कर दो, मैंने बेवजह पूरी बात जाने बिना तुम पर शक किया।”

जब देव‌ और अनामिका जाने लगे तो कृतिका ने देव से पूछा, “तुमने झूठ क्यों बोला कि मेरा वह दोस्त इस दुनिया में नहीं है?”

देव ने आंखों से बहते आंसुओं को पोंछते हुए कहा, “जब तुमने मुझसे कहा था कि तुम्हारी सहेली अनामिका की शादी उसकी सौतेली मां ज़बरदस्ती एक‌ ऐसे आदमी के साथ तय कर चुकी हैं जो अनेक व्यसनों में लिप्त रहता है तो मैंने तुम्हारे कहने पर तुम्हारी सहेली को अपना हमसफ़र बना लिया लेकिन मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं कर पाया।”

कृतिका ने देव से कहा, “जब आपके परिवार ने मेरी मां के इलाज के लिए पैसे दिए थे तभी मैंने अपनी मां को वचन दिया था कि तुम्हारे माता-पिता के द्वारा एक अनाथ बच्चे के साथ शादी करके उनको‌ दिया हुआ अपना वचन निभाऊंगी। मेरे पति सात्विक को इस बात का पता नहीं है कि वह अनाथ हैं और उनकी मां असल‌ में उसी अनाथालय में काम करने वाली एक कर्मचारी थीं जिन्होंने उनका अपने बच्चे की तरह ही पालन पोषण किया है।

कृतिका और देव एक दूसरे से विदा लेकर वापस अपनी अपनी दुनिया में चले जाते हैं, पहले उपहार की यादों को अपने मन में संजोए हुए।

अनामिका मन ही मन कृतिका को धन्यवाद देती है जिसने उसे अपने सच्चे हमसफ़र से मिलवाने में एक अहम् भूमिका निभाई और सात्विक मन ही मन देव‌ को धन्यवाद दे रहा था जिसने उसकी गलतफहमी को दूर करके उसके और उसकी जीवनसंगिनी के बीच में खड़ी संदेह की दीवार को गिराकर एक बार फिर से पति पत्नी को एक दूसरे के क़रीब लाने में अपनी एक अहम भूमिका निभाई।