पंखों की छांव -गृहलक्ष्मी की कहानियां
Pankho ki Chaav

Story in Hindi: “तू आज फिर कहीं खेलने नहीं गया। स्कूल भी बहुत बेमन से जाता है। खुश होकर स्कूल और खेलने जाएगा तभी तो दोस्त बनेंगे, तुझे अच्छा लगेगा बेटा। जब घर से निकलना ही नहीं चाहता तो दोस्त कैसे बनेंगे। फिर तू कहता है कि मेरा कोई दोस्त नहीं है। आखिर बात क्या है?” रश्मि ने अपनी इकलौते बेटे अनुज से पूछा। “मां, मुझे कहीं जाना पसंद नहीं है। मैं तो बस आपके पास ही रहना चाहता हूं। आप मुझे अपने पास से दूर ज़बरदस्ती क्यों भेजती हो,” अनुज कहता है। “कोई ज़बरदस्ती नहीं है बेटा। मैं तो बस जाती हूं कि तू अपने पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़े। टुकटुक की तरह कमज़ोर महसूस ना करे, चोट ना खाए।” 

“कौन टुकटुक मां?” अनुज ने पूछा। 

रश्मि ने बताया “टुकटुक एक छोटा सा प्यारा सा चिड़िया का बच्चा था। हिमाचल के जंगल में एक थोड़ा सा खुला मैदान था जहां कुछ पेड़ थे। उनमें से एक पेड़ पर रानी चिड़िया अपने परिवार के साथ रहती थी। रानी ने तिनकों से बहुत सुंदर और मज़बूत घोंसला बनाया था। रेशम के तारों और फूलों से उसको खूब सजा कर रखती थी। उसका एक बेटा था टुकटुक। 

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टुकटुक तुम्हारी तरह अकेला बच्चा था। रानी उसको बहुत प्यार करती थी। टुकटुक को आराम देने के लिए घोंसले के अंदर की तरफ उन के गुच्छे भी रखे थे। सुबह की भोर के समय रानी और उसका पति खाना और तिनके लेने निकल जाते तो टुकटुक आराम से घोंसले में पड़ा रहता। शाम को जब उसके मम्मी पापा वापस आते तो उन्हीं के पास बैठा रहता और खाता पीता। अब टुकटुक बड़ा होने लगा था तो उसके मम्मी पापा ने तय किया कि अब से दोनों में से कोई ना कोई घर पर रहेगा और टुकटुक को उड़ना सिखाएगा।

ज़्यादातर रानी ही घोंसले में रूकती। वह टुकटुक को उड़ने के लिए कहती “चल बेटा ऐसे अपने पंख फैला और उड़ना सीखने की थोड़ी सी कोशिश कर।” पर टुकटुक था की रानी के पंखों के नीचे छिप जाता। उड़ने से बचने के लिए कभी पंख दर्द तो कभी पेट दर्द का बहाना बना देता। इसी कारण से वह ना के बराबर ही उड़ना सीख पाया। ज़्यादा से ज़्यादा पंख फैलाकर घोंसले के पास ही उड़ पाता और उसमें भी रानी की मदद से ही वापस घर आ पाता।

रानी पूरी कोशिश करती उसको समझाने की पर टुकटुक था कि आराम से अपनी मां के पंखों की छांव में ही रहना चाहता था। एक दिन हमेशा की तरह रानी और उसका पति सुबह-सुबह तिनके और खाना लेने निकल पड़े। उस दिन उन दोनों का जाना ज़रूरी था। घोंसला एक जगह से टूटने लगा था और इसलिए उनको ज़्यादा तिनके लाने थे उसको ठीक करने के लिए। बाकी साथ में खाना तो लाना ही था। वह टुकटुक को अच्छी तरह से समझा कर गए कि “देखो बेटा घर में ही रहना, अभी तुम्हें ठीक से उड़ना नहीं आता है। हमारे पीछे से पास के दोस्तों के साथ खेलने मत जाना, हम जल्दी ही वापस आ जाएंगे।”

उनकी बात मानकर टुकटुक घोंसले में आराम से बैठा था कि तभी पास की शाखों पर रहने वाले उसके तीन चार दोस्त आ गए। वह टुकटुक को खेलने के लिए बुलाने लगे “अरे यार तू घर में क्या कर रहा है? आजा चल खेलते हैं।” “ नहीं यार मम्मी ने मना करा है,” टुकटुक ने कहा। “आजा यार, दूर नहीं जाएंगे। यहीं पास में खेलेंगे।” उसके दोस्तों ने कहा तो वह किसी तरह मुश्किल से घोंसले के पास की शाखा तक ही उड़कर आ पाया। उसके दोस्तों को बुरा भी लगा क्योंकि वह लोग ठीक से खेल नहीं पा रहे थे। 

सब बच्चे खेल ही रहे थे कि तभी दो चीलें वहां आईं और बच्चों को परेशान करने लगीं “देखो इन चूज़ों को, बड़े मज़े से खेल रहे हैं। अभी पटकते हैं इनको चोंच मार मार के। हमारे सामने क्या टिकेंगे यह बच्चे।” उनको देखकर टुकटुक के सारे दोस्त फ़टाफ़ट से उड़कर अपने-अपने घोंसले में छुप गए पर टुकटुक अपने घोंसले तक नहीं पहुंच पाया। एक तो वैसे ही वह अच्छे से उड़ना नहीं जानता था ऊपर से चीलों की वजह से बहुत ज़्यादा घबरा भी गया था। चीलों ने उसके ऊपर चोंच से हमला किया और उसको घायल पड़ा छोड़कर वहां से उड़ गईं। कुछ देर बाद टुकटुक के माता-पिता घर वापस आए तो उन्होंने टुकटुक को ज़मीन पर घायल पड़ा देखा। उन दोनों ने उसको उठाया और घोंसले तक पहुंचाया।

रानी ने कुछ दिन घर पर रहकर टुकटुक का बहुत ध्यान रखा। वह उसको अच्छे से खाना पीना देती और उसकी मरहम पट्टी करती। कुछ दिनों बाद टुकटुक बिल्कुल ठीक हो गया। तब उसकी मां ने उसको फिर से समझाया, “ देख बेटा अगर तुम अपने दोस्तों की तरह उड़ना सीखते तो उस दिन अपने आप को अपने दोस्तों की तरह चीलों से बचा पाते। मैं यह नहीं कहती कि दूर तक या ऊंचे आसमान तक उड़ो, पर जितना इस वक्त ज़रूरी है उतना तो सीखो। धीरे-धीरे तुम बड़े होने लगोगे। तब तक तुम्हारी ये छोटी-छोटी उड़ान तुम्हें हौंसला देगी और तुम्हारे पंख भी मज़बूत करेगी। तुम्हारे जीवन में खतरा कहीं और कभी भी आ सकता है लेकिन यह तुम्हारी समझदारी है कि तुम हर खतरे के लिए ताकत और हिम्मत के साथ तैयार रहो। अच्छे से खाओ पियो और रोज़ थोड़ी-थोड़ी उड़ने की कोशिश करते रहोगे तो अच्छे से उड़ पाओगे। आज से मेरी हर बात मानोगे ना बेटा?”

“ जी मां,” टुकटुक ने अपनी मां से वादा करा। अगले दिन से वह ठीक से वह खाता पिता और उड़ने की कोशिश करता। कुछ दिनों बाद वह अच्छे से उड़ना सीख गया था। अब वह दूर ऊंचे आसमान में भी उड़ता, बेशक वापस आकर अपनी मां रानी के पंखों की छांव में थक कर सो जाता।” रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहानी खत्म करी।

“अब बताओ पहले वाला टुकटुक बनेगा जो डरपोक और कमज़ोर था या बाद वाला हिम्मती और ताकतवर टुकटुक बनेगा?” अनुज ने पूरे जोश से कहा, “ नहीं मम्मी मैं पहले वाला नहीं बाद वाला टुकटुक बनूंगा। अब से मैं आपकी हर बात मानकर अच्छे से खाना खाऊंगा और सबसे हंसकर मिलूंगा और खूब दोस्त बनाऊंगा। कल से मैं रोज़ पार्क में भी खेलने जाऊंगा।”

कुछ दिनों बाद अनुज के जन्मदिन पर कईं सारे दोस्त आए जिनके साथ मज़े से उसने अपनी पार्टी मनाई। फ़िर रात में वह भी टुकटुक की तरह थक कर अपनी मम्मी का हाथ पकड़ कर लेकिन पहली बार चेहरे पर मीठी सी विश्वास भरी मुस्कान लेकर सो गया।