हाल ही में सीएआर-टी सेल थेरेपी (CAR T Cell Therapy)को लेकर काफी चर्चा हुई. ये बताया गया कि भारत में ये थेरेपी कम दामों में मुहैया कराई जाती है. चर्चाओं के बीच काफी मरीजों ने इसके बारे में पता लगाने की भी कोशिश की. ये थेरेपी क्या होती है, इससे जुड़ी हर जानकारी मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल साकेत (नई दिल्ली) में हेड एंड नेक कैंसर सर्जन डॉक्टर अक्षत मलिक विस्तार से आपको दे रहे हैं.
सीएआर-टी सेल थेरेपी (काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी सेल थेरेपी) इम्यूनोथेरेपी की एक इनोवेटिव फॉर्म है जिसके जरिए इम्यून सिस्टम सुधार कर कैंसर कोशिकाओं को टारगेट किया जाता है और नष्ट किया जाता है. इसमें मरीज की अपनी टी-कोशिकाओं का इस्तेमाल कर काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर के जरिए कैंसर कोशिकाओं की पहचान कर उन्हें नष्ट करने का काम बहुत ही सटीकता से किया जाता है.
सीएआर-टी सेल थेरेपी कैसे काम करती है? (CAR T Cell Therapy)

टी-सेल कलेक्शन: इस थेरेपी के लिए सबसे मरीज की अपनी टी-सेल्स को ल्यूकाफेरेसिस प्रक्रिया के जरिए जमा किया जाता है. ल्यूकाफेरेसिस के दौरान मरीज से ब्लड निकाला जाता है और एक स्पेशलाइज्ड मशीन के जरिए उसमें से टी-सेल को अलग किया जाता है. इस प्रक्रिया में कुछ घंटे का वक्त लगता है.
जेनेटिक मॉडिफिकेशन: जिन टी-सेल्स को जमा किया जाता है उन्हें फिर लेबोरेटरी में जेनेटिकली मॉडिफाई किया जाता है ताकि उनकी सतह पर काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर आ सके. काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर यानी CARs सिंथेटिक रिसेप्टर्स होते हैं जो एक एंटीजन-बाइंडिंग डोमेन, एक स्पेसर रीजन, एक ट्रांसमेम्ब्रेन डोमेन और एक या एक से अधिक इंट्रासेल्युलर सिग्नलिंग डोमेन से बने होते हैं. एंटीजन-बाइंडिंग डोमेन को कैंसर कोशिकाओं की सतह पर मौजूद स्पेसिफिक प्रोटीन, या एंटीजन को पहचानने के लिए डिज़ाइन किया जाता है.
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विस्तार और एक्टिवेशन: जेनेटिक मॉडिफिकेशन के बाद,(CAR T Cell Therapy) सीएआर टी-सेल्स की संख्या बढ़ाने के लिए लेबोरेटरी में उन्हें कल्चर्ड और एक्सपेंड किया जाता है. कैंसर कोशिकाओं को पहचानकर उन्हें मारने की क्षमता बढ़ाने के लिए सीएआर-टी सेल्स को एक्टिव किया जाता है.
इंफ्यूजन: एक बार जब सीएआर टी कोशिकाओं की संख्या पर्याप्त हो जाती है और उनका एक्टिविटी लेवल सही हो जाता है, तो उन्हें मरीज की ब्लड सप्लाई में वापस डाल दिया जाता है. ये प्रक्रिया ब्लड ट्रांसफ्यूजन की तरह ही होती है.
कैंसर कोशिकाओं पर टारगेट: एक बार सीएआर टी सेल्स जब शरीर में कैंसर कोशिकाओं को पहचान लेती हैं तो सीएआर के जरिए उनपर टारगेट किया जाता है. बाइंडिंग होने पर सीएआर-टी सेल्स एक्टिव हो जाती हैं तो उनसे इम्यून रिस्पांस आने लगता है, साइटोटॉक्सिक मॉलिक्यूल्स और साइटोकाइन्स रिलीज होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते हैं.
दृढ़ता और मेमोरी: ब्लड में डाले गए कुछ सीएआर टी-सेल्स (CAR T Cell Therapy) लगातार ब्लड स्ट्रीम में बहते रहते हैं और शरीर में लंबे समय तक रहते हैं. इसके अलावा, मेमोरी सीएआर-टी सेल्स कैंसर से लंबे वक्त तक शरीर का बचाव कर सकती हैं.
कई तरह के ब्लड कैंसर के इलाज में सीएआर टी-सेल थेरेपी ने शानदार रिजल्ट दिए हैं. खासकर, बी-सेल विकृतियों जैसे एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (ALL) और कुछ तरह के नॉन-हॉजकिन लिम्फोमास के मामले में ये काफी कारगर रहा है. इस थेरेपी ने मरीजों को लंबे समय तक समाधान दिया है, और कुछ मामलों में जहां मरीज अन्य इलाज से परेशान आ जाते हैं उनमें बीमारी को जड़ से खत्म करने का काम किया है. इस थेरेपी पर लगातार रिसर्च चल रही है ताकि अन्य तरह के कैंसर मरीजों को भी ठीक किया जा सके और इसके प्रभाव व सेफ्टी में भी सुधार किया जा सके. एक जरूरी बात ये भी है कि सीएआर टी-सेल थेरेपी के कुछ गंभीर साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं जैसे कि साइटोकाइन रिलीज सिंड्रोम (सीआरएस) और न्यूरोटॉक्सीसिटी और इनका बहुत ही सावधानी से इलाज कराने की जरूरत पड़ती है.
