एक नगर में एक गरीब ब्राह्मण रहता था । उसका नाम था द्रोण । वह भिक्षा माँगकर गुजारा करता था । इसलिए जीवन में कभी कोई सुख उसे नहीं मिला । उसका शरीर भी बहुत कमजोर और दुबला-पतला था ।
द्रोण के पास संपत्ति के नाम पर कुछ विशेष नहीं था । बस, दो स्वस्थ बछड़े थे जो किसी ने उसे दान में दिए थे । ब्राह्मण लोगों से माँगकर उनके चारे आदि का प्रबंध कर लेता । इससे वे बछड़े खासे स्वस्थ और तंदुरुस्त हो गए थे । वह उन बछड़ों से बहुत प्रेम करता था ।
पर एक चोर की उन दो बछड़ों पर बहुत समय से निगाह थी वह सोचता था, “कभी अवसर मिलते ही इन दोनों बछड़ों को चुराकर ले जाऊँगा ।”
एक रात की बात, वह चोर बछड़े चुराने के लिए उस ब्राह्मण के घर की ओर चल दिया । रास्ते में उसे एक भयानक शक्ल वाला प्राणी दिखाई दिया जिसके दाँत बड़े-बड़े थे तथा आंखें अँगारों की तरह जल रही थीं ।
चोर के पूछने पर उस भयानक व्यक्ति ने कहा, “मैं ब्रह्मराक्षस हूँ । मैं ब्राह्मण को खाने के लिए जा रहा हूँ ।”
“फिर तो मैं भी उधर ही जा रहा हूँ । चलो, अच्छा साथ रहेगा ।” चोर ने कहा, “मेरा नाम क्रूरकर्मा है और मैं ब्राह्मण के घर बछड़े चुराने जा रहा हूँ ।”
आखिर दोनों साथ-साथ चल दिए और उस ब्राह्मण के घर जाकर छिपकर बैठ गए । वे उसके सोने की प्रतीक्षा कर रहे थे ताकि अपना काम शुरू कर सकें ।
राक्षस बहुत दिनों से भूखा था इसलिए उस ब्राह्मण को खाने के लिए उतावला हो रहा था । यह देखकर चोर ने कहा, “भाई, तुम इतना उतावलापन मत दिखाओ । पहले मुझे अपना काम कर लेने देना । उसके बाद जो तुम्हें करना है, करते रहो ।”
इस पर राक्षस ने कहा, “नहीं-नहीं, तुम मुझे अपना काम पहले कर लेने देना । क्योंकि तुम बछड़े चुराकर जाने लगोगे तो क्या पता, खटपट की आवाज सुनकर इस ब्राह्मण की नींद खुल जाए । फिर तो मैं थी अपना काम नहीं कर पाऊंगा ।”
पर चोर बोला, “ना भई ना । पहले मैं अपना काम करूंगा । क्या पता जब तुम ब्राह्मण को अपना भोजन बनाने की चेष्टा करो, तो इसकी नींद खुल जाए । तब तो मैं भी अपना काम नहीं कर पाऊंगा । लिहाजा पहले मैं बछड़े चुराकर चला जाऊं, तब तुम अपना काम कर लेना ।”
राक्षस को गुस्सा आ गया । गरजकर बोला, “तुमने सुना नहीं, मैं क्या कह रहा हूँ? पहले मैं अपना काम करूँगा । अब तुमने कुछ भी चीं-चपड़ की तो अच्छा नहीं होगा ।”
चोर बोला, “तुम कुछ भी कहो । मैं तुम्हारे रोब में आने वाला नहीं हूँ । मैं ही पहले अपना काम करूँगा । राक्षस हो तो क्या हो गया? मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूँगा ।”
इस पर राक्षस और चोर दोनों जोर-जोर से लड़ने लगे । इसका नतीजा यह हुआ कि उस सोए हुए ब्राह्मण की नींद खुल गई ।
चोर ने तुरंत पैंतरा बदला और ब्राह्मण से कहा, “देखो भाई द्रोण, यह राक्षस तुम्हें खाना चाहता है ।”
अब राक्षस ने भी चोर की असलियत बता देना जरूरी समझा । बोला, “सुनो ब्राह्मण, यह चोर तुम्हारे दोनों बछड़े को चुराकर ले जाना चाहता है ।”
अब तो ब्राह्मण सारा माजरा समझ गया । पहले उसने मंत्र पढ़ा तो राक्षस उसी समय डरकर खिड़की की राह से दूर भाग गया । उसके बाद उसने पास रखी हुई लाठी उठाई और उसे खूब जोर से चोर की ओर फेंका । वह भी घबराकर झटपट भाग खड़ा हुआ ।
राक्षस और चोर दोनों अपने- अपने झगड़े और स्वार्थ के चलते आखिर अपने उद्देश्य में असफल हुए । ब्राह्मण ने इसका लाभ उठाया और दोनों से एक साथ मुक्ति पाकर खुशी और आनंद से भर उठा ।
इसीलिए कहा जाता है, अगर किसी शख्स के दुश्मन आपस में झगड़ रहे हों, तो इससे उस व्यक्ति के भाग्य की गठरी खुल जाती है!