gomata punyakoti
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

कर्नाटक के एक जनपद में कल्लिंग नाम का ग्वाला रहता था। उसके पास बहुत-सी गायें थीं। कल्लिंग अपनी सभी गायों से बहुत प्रेम करता था। कल्लिंग और उसकी गायों के बीच स्नेह का अटूट बंधन था। वह रोज सबेरे जल्दी उठकर गायों को सानी-पानी देकर उन्हें चराने के लिए गाँव से नजदीक एक पहाड पर ले जाता था। उसी पहाड पर एक गुफा में जंगल का राजा शेर रहता था। वह शेर बहुत ही खूखार था। इस बात से ग्वाला तथा उसकी गायें अनभिज्ञ थीं।

ग्वाला अपनी गायों से इतना प्रेम करना था कि उनके नाम भी रख दिए थे। कावेरी, गोदावरी, कृष्णे, गंगे, तुंगे तथा पुण्यकोटि आदि उन गायों के नाम थे। कल्लिंग अपनी गायों को इन्हीं नामो से पुकारता था और गायें अपना नाम सुनते ही चली आती थीं। सभी गायें आपस में बडे प्रेम भाव से रहती थीं। अन्य गायों की तरह पुण्यकोटि का एक बछड़ा था। वह अपने बछड़े के प्रति विशेष प्रेम, वात्सल्य ममता दिखाती। वह बछड़ा भी बडा मुग्ध था। ग्वाला पहाड़ पर एक आम के पेड़ के नीचे बैठकर अपनी मधुर बाँसुरी बजाता तो सारी गायें तन्मय होकर सुनती। वह दृश्य अचंभित कर देता था।

एक दिन कल्लिंग रोज की तरह जल्दी उठकर अपनी सभी गायों को लेकर चराने के लिए पहाड़ की तरफ निकलता है। लेकिन वह नहीं जानता था कि उस रोज कौन-सी मुसीबत उसका तथा उसकी गायों का इंतजार कर रही थी। पुण्यकोटि सभी गायों में बडे सात्विक स्वभाव की थी। अन्य गायों की तरह वह भी अपने छोटे-से बछडे को छोडकर आयी थी। चरते-चरते वह अपने बछड़े की यादों में खो जाती। उस दिन उस पहाड पर शिकार की तलाश में शेर घूम रहा था। गायें चरते-चरते बहुत दूर निकल चुकी थीं। तभी अचानक उनके कानों पर शेर के दहाड़ने की आवाज पड़ी। जिससे सभी गायें घबराकर भाग निकली हैं। पुण्यकोटि भी उन गायों के साथ भाग ही रही थी कि अचानक शेर उसके नजदीक आया गया जिससे पण्यकोटि घबरा जाती है और वह डर के मारे तेज दौड़ने लगती है। वह अपने मार्ग से भटक जाती है। वह एक ऐसी जगह जा पहुँचती है जहाँ से वह न तो आगे बढ़ पाती और न पीछे, क्योंकि शेर बिलकुल उसके पास खडा था। वह समझ जाती है कि अब मुझे इस शेर का भोजन बनना पड़ेगा। तब सात्विक प्रकृति की पुण्यकोटि ने उस खूखार शेर से नम्र निवेदन किया। वह शेर से कहती है कि “मैं अपने बछडे से अंतिम बार मिलना चाहती हूँ, उसे आखिरी बार अपना दूध पिलाकर मैं इसी स्थान पर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगी।” लेकिन शेर जैसा खूखार जानवर उस गाय की बातों पर भला कैसे विश्वास करता। क्योंकि एक बार यहाँ से सही सलामत बाहर जाने पर वह वापस मेरा भोजन बनने के लिए क्यों आएगी? यही सोचकर शेर उसपर तथा उसकी बातों का विश्वास करने से इनकार करता है। तब वह सात्विक गोमाता उस शेर से अपने वचन को सत्य समझने के लिए बाध्य करती है। वह कहती है कि, “सत्य और प्रामाणिकता ही हमारे कुल के माता-पिता हैं।

वही हमारे भाई-बंधु हैं। अगर मैं अपने दिए हुए वचन का पालन नहीं करूंगी तो भगवान भी मुझे स्वीकार नहीं करेंगे। मैंने जैसा कहा है वैसा ही करूँगी। तम मेरे सत्यता और प्रामाणिकता की परीक्षा ले सकते हो।” पुण्यकोटि की सत्यप्रियता से प्रभावित होकर उस खूखार शेर ने उसे जाने दिया। तब गाय ने शेर के प्रति आभार प्रकट किया और वह अपने बछड़े से मिलने चली जाती है। बछड़ा अपनी माँ का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। अपनी माँ को देखकर बछड़ा उसके गले से लिपट जाता है। पुण्यकोटि जानती थी कि वह अपने बछड़े से अंतिम बार मिल रही है, वह अंतिम बार अपने बछड़े को स्तनपान करा रही है। आँखों से आँसू बहाते पुण्यकोटि अपने बछड़े को सत्य से अवगत कराती है।

वह कहती है, “मुझे किसी खूखार शेर का भोजन बनना है। किसी से मैंने वापस आने का वादा किया है अतः तुमसे मिलकर मुझे पुनः लौट जाना है। और फिर कभी लौट न सकू।” माँ की बातें सुनकर छोटा-सा मुग्ध बछड़ा रोते हुए अपनी माँ से पूछने लगता है कि, “माँ मैं किसके पास सोऊँगा? किसका दूध पीऊँगा? कौन मेरा हितैषी होगा? मैं किसके साथ जिंदगी गुजारूं? अपने बछड़े के मासूम सवाल सुनकर गोमाता बिलख उठती है और उसे समझाती है कि, “तुम अब अनाथ हो गये हो और मैं शेर का भोजन बनूंगी। हमारा साथ यहीं तक था।” इसके साथ ही वहाँ स्थित अन्य गायों से नम्र निवेदन करने लगती है कि, “हे मेरी बहनों, मेरी माताओं, सखियों मेरे जाने के बाद आप सभी मिलकर मेरे बछड़े का ख्याल रखना। अगर वह आपके पीछे-पीछे आए तो उसे लात मत मारना और अगर आपके आगे चले तो उसे मारना मत। उसे आप अपना बछड़ा समझकर उसका ध्यान रखना।” इस तरह वह सबसे विदा लेकर शेर को दिए हुए अपने वचन को सत्य प्रमाणित करने के लिए प्रस्थान करती है।

वह शेर के सामने प्रस्तुत होकर शेर से कहती है, “मैं सत्य वचनी हूँ, मैं अपने वादे के अनुसार तुम्हारे सम्मुख हूँ, तुम्हें मेरा मांस चाहिए या खून चाहिए जो चाहिए ले लो।” पुण्यकोटी के ये वचन सुनकर तथा उसकी सत्यप्रियता और उसकी प्रामाणिकता, अपने वचन को सत्य प्रमाणित करने के लिए उसने जो त्याग और समर्पण किया था उसे देखकर शेर जैसे खूखार जानवर का दिल भी परिवर्तित हो जाता है। शेर को आत्मग्लानि हो जाती है। वह पुण्यकोटी से कहता है कि, “तुम जैसी सत्यवचनी और प्रामाणिक गाय की हत्या करूँगा तो भगवान मुझे कभी क्षमा नहीं करेंगे। इतना कहकर वह पहाड़ से छलांग लगाकर खुद की आत्माहुती देता है। पुण्यकोटी पशु होकर भी सत्यवचन तथा प्रामाणिकता की मिसाल बन जाती है।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’