भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
प्रकृति माँ की सुरम्य गोद में लहलहाने वाला मनोहर गाँव था-मल्लिगे हल्लि। उस गाँव का जमींदार था मल्लय्य गौड। वह बडा अमीर था जो क्रोधालु और खडूस भी था। वह गाँव का सरपंच था जिसे देखते ही लोग काँपने लगते थे। राधा उसकी इकलौती बेटी थी जो अपूर्व सुंदरी थी।
उसके जन्म लेते ही उसकी माँ मर गयी थी। पत्नी की अकालिक मौत को देखकर मल्लय्य गौड के मन में अकाल विराग पैदा होने के कारण उसने दूसरी शादी नहीं की थी। उसकी बूढी बुआ ने राधा की देखभाल की थी। मल्लय्य गौड को भी अपनी बेटी के प्रति असीम लाड़-प्यार था। वह कभी भी अपनी बिटिया की कमल जैसी आँखों से आँसू की बूंद गिराना नहीं चाहता था। उसका सर्वस्व राधा थी। राधा भी बहुत अच्छी, सरल, होनहार लड़की थी। वह अपने पिता का बहुत आदर-गौरव करती थी। ऐसे ही पंद्रह साल गुजर गये और राधा विवाह योग्य युवती बन गयी। तब उसके विवाह की चिंता मल्लय्य गौड के मन में उभर आयी। वह उसके लिए योग्य वर ढूँढने लगा। इस बीच एक दिन राधा की मुलाकात एक सुंदर युवक से हो गई। वह संपिगे हल्लि का था जिसका नाम था-गोपी। वह अनाथ युवक था जिसके माँ-बाप महामारी प्लेग से मर चुके थे। पहली मुलाकात में ही वे दोनों एक-दूसरे से आकर्षित हो गये जो अंत में प्रेम में बदल गया।
वे चुपके-चुपके आपस में मिलने लगे थे तो यह खबर सारे गाँव में फैल गयी। यह विचार मालूम होते ही मल्लय्य आग-बबूला हो गया। क्रोध से वह चीललाया- “वह कौन है जो मेरी बेटी से शादी करने वाला है? उसमें धीरज है तो सामने आये।” तुरंत उसने गोपी को बला लाने के लिए अपने सेवकों को आदेश दिया। मल्लय्य के आदेशानुसार सेवक उसे ढूँढकर घसीटकर ले आये और उसे रस्सियों से एक खंभे में बाँध दिया। उसे देखते ही मल्लय्य का रक्त खौलने लगा। “इतने तुच्छ दीन-हीन छोकरे कि मेरी बेटी से विवाह करने की हिम्मत? मेरे और उसमें आकाश-पाताल का अंतर है।
फिर भी इतना साहस कैसे हुआ? अच्छा, इसे जरूर सबक सिखाना चाहिए”- इस प्रकार सोचकर मल्लय्य ने मूंछ पर ताव देकर कहा-“क्या रे, मेरी बेटी से विवाह करना चाहते हो तुम? उससे प्रेम करते हो क्या?” गोपी ने निर्भीक होकर कहा-“जी हाँ। मैं उससे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता हूँ।” मल्लय्य ने व्यंग्य से हँसते हुए कठोरता से कहा-“अच्छा, तो तुम्हें अपनी योग्यता को साबित करना पड़ेगा। मैं तुम्हें एक चुनौती दूंगा। उसे जीतकर बाद में मेरी बेटी से विवाह कर लो।” तब गोपी ने विनम्र होकर उम्मीद से कहा- “हाँ जी, बिल्कुल। मैं जरूर जीत लूँगा। मेरे लिए आपकी अग्निपरीक्षा क्या है? बताने की कृपा कीजिए।” गोपी सिर झुकाकर हाथ जोड़कर खड़ा रहा। मल्लय्य ने अपनी उँगली उठाकर सामने की ओर इशारा करते हुए कहा- “वहाँ देखो, सुदूर एक पहाड दीखता है न? उसे “नीलि हूगल बेट्टा” (नील पुष्पों का पहाड़) कहते हैं। दस साल में एक बार उस पहाड पर नीले रंग के खास फूल खिलते हैं। लोग कहते हैं कि इस साल वहाँ पर यह अपूर्व फूल खिला है। अतः तुम उस पहाड़ पर चढकर उस नीले फल को राधा के लिए ले आओ…कहते हैं कि वह महान भाग्य का पुष्प है, जिसके पास वह होता है वह अमीर बनता है। हाँ, उससे मैं करोडपति बनूँगा। बोलो, मंजूर है”? गोपी शूर-वीर नौजवान था।
उसने असीम आत्मविश्वास से “मंजूर है साहुकारजी। मेरी राधा के लिए मैं जरूर उसे तोड़ लाऊँगा और अपने प्रेम को सफल और सार्थक बनाऊँगा।” कहते हुए वह वहाँ से निकल गया। इस समय चालाक और स्वार्थी मल्लय्य ने राधा को गाँव की देवी चामुंडेश्वरी के मंदिर जाकर पूजा अर्चना करके प्रसाद लाने को भेज दिया था ताकि उसको कुछ भी मालूम ना हो जाये। थोडी देर बाद राधा अपनी सहेली के साथ मंदिर से लौट आयी। जब उसको यह विचार मालूम हुआ तो वह रोने लगी, “पिताजी आपने यह क्या किया? हमारे प्रेम की इतनी कठिन परीक्षा ली? उस पहाड की राह में दुर्गम जंगल है। वह कंकड पत्थर का, कंटीला पथ है। जंगल में शेर, बाघ आदि क्रूर जंगली जानवर हैं… भयानक विषैले साँप होते हैं। वहाँ गोपी कैसे जायेगा? हाय माँ चामुंडी यह कैसी परीक्षा है? हे माते, मेरे गोपी की रक्षा करो…।” वह चीललाकर रोने लगी तो मल्लय्य ने उसे एक कमरे में पटककर दरवाजा बंद कर दिया। वह वहीं से हाथ जोड़कर अनुरोध कर रही थी कि पिताजी मेरे गोपी को वापस बुलाइए। लेकिन मल्लय्य पाँव पटकते हुए चला गया। राधा की सेविका बूढी कमली ने कहा- “साहुकार जी, कानन के उस पथ पर भूत, प्रेत इत्यादि रहते हैं। ब्रह्मराक्षस घूमता रहता है। लोग कहते हैं कि वह नर को पकडकर खाता है, उसके रक्त का पान करता है। इसका नतीजा बुरा होगा। बाद में आपको पछताना पड़ेगा। मैं आप को अपना बेटा मानकर यह सलाह दे रही हूँ। बेचारी राधा को मुक्त कर दीजिए। गोपी बहुत अच्छा लडका है। उसको पति के रूप में पाने के लिए राधा ने पुण्य किया है। आपको यह भला है कि उन दोनों का विवाह कर दीजिए”। यह बात सुनकर मल्लय्य ने उसको खूब डाँटा- “हे पागल बुढ्ढी, चुप रहो। तेरा सिर फिर गया है क्या? तुमसे ही राधा इतनी बिगड़ गयी है।
और ज्यादा बोलोगी तो राधा की सजा तुमको भी मिलेगी..” इतना कहकर वह चला गया। गाँव के सभी लोग भय और चिंता से दिन बिता रहे थे। राधा गोपी की राह देखते रह गयी। एक महीना बीत गया लेकिन गोपी का पता ही नहीं था। अब तो राधा खूब रोने लगी। “मेरी माँ होती तो यह होने नहीं देती…अम्मा…अम्मा” कहते वह विलाप करने लगी। कमली ने मल्लय्य से कहा कि राधा की हालत मुझसे देखी नहीं जाती.. आप कुछ कीजिए” और अपने आँसू पोंछते चली गयी। आखिर मल्लय्य ने गोपी को ढूँढ लाने के लिए अपने सेवकों को भेजा। चार दिनों के बाद वे नीले फूलों का ढेर और एक कपड़े की गठरी ले आये। गठरी को खोलकर देखा तो उसमें गोपी का शव था। सेवकों ने रोते हुए बताया कि जंगल की राह में एक पेड के नीचे एक शव था जो छिन्न-भिन्न हुआ पड़ा था। शायद किसी जंगली जानवर ने उसे मारकर खाया होगा। उसके फटे कपड़े और पास ही पड़ी नीले फूलों के ढेर को देखकर हमने निर्णय लिया कि यह गोपी का ही शव है! गोपी को देखने के लिए दौड़ आयी राधा यह खबर सुनकर “अय्यो गोपी.. मुझे छोड़कर चले गये क्या?” कहते, रोते, चीललाते बेहोश होकर नीचे गिर पड़ी। सभी लोगों की आँखों से आँसू की धारा बह चली। उस दिन से राधा की दुखद कहानी शुरु हुई। उसने कुछ नहीं खाया-पिया। रात भर नहीं सोई। दिन रात निरंतर गोपी का नाम स्मरण करती थी। “गोपी.. गोपी… तुम मुझे छोडकर कहाँ गये? मैं भाग्यहीन हँ.. जन्मते ही माँ और अब तम दोनों मझे छोडकर चले गये ..हाय, मैं किसके लिए जीऊँ?” कहते क्रंदन करती थी। दिन-भर वह गोपी की समाधि के पास बैठकर रोती थी। कुछ ही दिनों में विरह व्यथा में तड़प-तड़पकर वह मर गयी।
गोपी की समाधि के पास राधा की समाधि बनायी गयी। बेटी की मौत से लोभी मल्लय्य की आँखें खुल गयी। करोड़पति बनने के सपने देखे लालची मल्लय्य के घमंड, अहंकार, दर्प मिट्टी में मिल गये। “हाय मैंने क्या कर दिया? अपनी बेटी का सर्वनाश कर दिया। बेटी, मुझे क्षमा करो” कहते सिर पीटकर रोने लगा। विलाप करते-करते वह पागल हो गया। लोगों से वह कहता था- “अण्णा (भैय्या) प्रेमियों का दिल ना तोडो”। कभी चीललाता था- “अक्का (बहन जी) क्या आपकी बेटी किसी से प्रेम करती है? तो करने दो, उसके प्रेमी से उसकी शादी कर दो। मैंने ऐसा नहीं किया जिसका फल मुझे मिल गया..” फिर वह बिलख-बिलखकर रोता था। आगे एक दिन वह बहती नदी में डूब मर गया। इस प्रकार स्वार्थ और लालच ने उसके खानदान का सत्यनाश कर दिया। आज भी लोग कहते हैं कि पूनम की रात में किसी लडकी की रोने की आवाज सुनायी देती है। उस गाँव के प्रेमी उन समाधियों के पास पुष्पांजलि समर्पण करके नमन करते हैं और उनकी आशीष के लिए प्रार्थना करते हैं। आज भी सभी लडकियाँ अपने सुहाग और प्रेम की सार्थकता के लिए मनौती करती हैं।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
