राधा का दिल कांप गया। वह जानती थी कि गांव की कितनी लड़कियां इज्जत लुटने का सारा गम सोने-चांदी के तराजू में बैठते ही भूल जाती हैं, परंतु वह ऐसा कदापि नहीं होने देगी। उसने भोला को देखा, बहुत आशा से, परंतु वह उस समय भीगी बिल्ली बना अपनी आंखें नीचे ही झुकाए हुए था।
‘तुम कौन हो।’ राजा विजयभान सिंह ने प्रताप सिंह को उत्तर न देते हुए भोला को देखा।
‘जी मैं……मैं सरकार! इसका होने वाला पति हूं। ‘उसने घबराकर अटकते स्वर के साथ उत्तर दिया।
राजा विजयभान सिंह ने मुस्कुराकर अपने घने सुंदर बालों पर हाथ फेरते हुए पूछा‒ ‘कब है शादी’
‘इसी पूर्णमासी को…..।’ भोला को साहस बंधा। वह सीधा खड़ा हो गया।
राजा विजयभान सिंह फिर मुस्कराए। उनके भरे-भरे सुंदर मुखड़े पर यह मुस्कान बहुत सुंदर लगती थी, परंतु राधा को यह जरा भी अच्छी नहीं लगी। प्रताप सिंह इशारा पाकर जब दुबारा घोड़े पर सवार हुआ तो ऐड़ लगाकर दोनों ही हवेली की ओर बढ़ गए।
‘मुझे इस राजा के बच्चे की नीयत अच्छी नहीं लगती। ‘राधा एक अज्ञात भय से कांपकर भोला के समीप होती हुई बोली।
‘और मुझे भी। ‘भोला ने अपने भय खाए दिल पर काबू करते हुए कहा।
‘भोला!’ राधा ने उसका हाथ पकड़ लिया और डरकर बोली‒ ‘तू मेरा साथ तो कभी नहीं छोड़ेगा ना।’
‘नहीं राधा! कभी नहीं, मरते दम तक नहीं।’ भोला ने उसे अपनी छाती से लगा लिया।
राधा उसके मुखड़े के नीचे गहरी-गहरी सांसें लेने लगी थी।
पूर्णमासी की रात राधा मंडप में सबके सामने भोला के गले में जयमाला डालने ही वाली थी कि शोर मच गया‒डाकू आ गए, डाकू आ गए। ‘अधिकांश डाकू गांव की सुंदर लड़कियों के विवाह में ही आते थे। धन-दौलत लूटने के बजाय लड़कियों को उठा ले जाना ही इनका ध्येय रहा है।
गांव वालों को इन डाकुओं पर संदेह भी रहा है, फिर भी अपने छोटेपन का विचार करके वह सब्र कर लेते थे, जानते थे हाथ-पांव चलाने का अंजाम बहुत बुरा होता है, अपनी बहू-बेटियों को खोने से भी अधिक भयानक। बारात में हलचल मच गई।
लोग इधर-उधर दौड़ पड़े। कुछेक नवयुवकों ने लाठियां उठाईं तो गोलियों के शिकार हो गये। डाकुओं ने बहुत आसानी के साथ राधा को उठा लिया, भोला ने आगे बढ़ना चाहा तो सिर पर लाठी का भरपूर वार पड़ा। राधा की चीख निकल गई। वह तड़पी, छटपटाई, अपने बाल नोंच लिए, कलाइयों की चूड़ियां तोड़ डालीं, भगवान की दुहाई दी, परंतु डाकुओं ने उसका मुंह बांध दिया। आंखों पर पट्टी चढ़ा दी। हाथ-पैर बांधेे और घोड़े पर चढ़ाकर अपने झुंड के साथ खेतों के अंधकार में लुप्त हो गए।
गांव की चीख-पुकार, उसके बूढ़े बाबा की तड़पती दुहाई, शोर कानों में दूर तक आ रहा था‒ सब कुछ लुट गया, बर्बाद हो गया। गांव की एक इज्जत और चली गयी‒ लुटने के लिए।
एक स्थान पर ले जाकर राधा को घोड़े पर से उतारा गया, फिर उसे किसी मर्द का कंधा नसीब हुआ। जब कुछ देर तक हिचकोले खाने के बाद उसे बहुत कोमलता से नीचे उतारा गया तो उसके कदमों तले मुलायम कालीन थी। कुछ देर बाद कदमों की चाप लुप्त हो गई। जैसे उसे उठाकर लाने वाला व्यक्ति जा रहा हो‒ फिर दूसरी चाप समीप आई। उसके बिलकुल समीप आकर रुक गई और तब उसकी आंखें खोल दी गईं।
राधा कांपकर पीछे हट गई। उसने भाग निकलने के लिए चारों ओर का निरीक्षण किया। कहीं कोई दरवाजा नहीं, खिड़कियां नहीं, केवल दीवारें-ही-दीवारें थीं, मानो वह जमीन की कोख से निकलकर यहां आ गई थी।…
आगे की कहानी कल पढ़ें, इसी जगह, इसी समय….
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