मंत्री प्रताप सिंह उसको चलने का इशारा कर रहा था। सीढ़ियां उतरकर वह नीचे पहुंची….. सामने के लम्बे-चौड़े बरामदे में। फिर वहीं बीच के कमरे में प्रविष्ट हुई। एक पल के लिए वह ठिठकी। एक बहुत बड़ी तस्वीर थी‒ खूबसूरत…… बहुत खूबसूरत तस्वीर किसी विदेशी चित्रकार द्वारा बनाई गई थी, जिसमें उसने तूफान में फंसी एक कश्ती को मौजों का मुकाबला करते दिखाया था। नाविक के पतवार टूट गए थे, परंतु फिर भी उसने साहस नहीं छोड़ा था। इस तस्वीर ने उसके अंदर जीवित रहने की अभिलाषा दृढ़ कर दी। उसने सोचा, वह भी अपने जीवन को राजा विजयभान सिंह के जालिम थपेड़ों से निकालकर अलग ले जाएगी। वह देखेगी, अपनी आंखों से देखेगी कि उस आदमी का क्या परिणाम निकलता है, जो जुल्म और सितम ढाते-ढाते सीमा के पार निकल चुका है। वह आगे बढ़ी, कमरे में नज़र डाली। मोटी सुर्ख कालीन, कीमती फर्नीचर, सुंदर फानूस। उसने एक दरवाजा पार किया, जहां से वह जाते समय निकली थी। कुछेक सीढ़ियां और नीचे उतरी तो एक पत्थर का दरवाजा मिला। प्रताप सिंह ने आगे बढ़कर उसकी कलाई दबाई तो वह आहिस्ता से अपनी जगह से सरका। राधा अंदर प्रविष्ट हो गई। यहां दिन के समय भी फानूस में प्रकाश उजागर था। उसने पलटकर देखा तो प्रताप सिंह जा चुका था। कमरा इस प्रकार चारों ओर से बंद था कि उसकी चीख तक बाहर नहीं जा सकती थी। बाहर से देखने में किसी को ध्यान भी नहीं आ सकता था कि यह किसी का तहखाना है या रंगमहल है। इस रंगमहल में किसी को भी जाने की आज्ञा नहीं है। प्रताप सिंह स्वयं इसकी देखभाल करता है। यह रंगमहल बहुमूल्य धातुओं से सुसज्जित है। अखरोट की लकड़ी के सुंदर फर्नीचर, चांदी के बड़े-बड़े फूलदान, पत्थर की नग्न मूर्तियां, नग्न तस्वीर, फर्श पर सुर्ख कालीन, परंतु बीच का एक अच्छा भाग खाली था। चिकने संगमरमर के फर्श को शायद सुंदरियों के थिरकते कदमों के लिए सुरक्षित छोड़ दिया गया था। एक ओर अक्वेरियम रखा था…… बड़ा और सुंदर, जिसके अंदर अनेक प्रकार की रंगीन मछलियां तैर रहीं थीं। राधा ने इन्हें दूर से ही देखा, इनके हाल पर उसे तरस भी आया, बंद पिंजरे में हर वस्तु कैद होती है। वह एक पलंग पर बैठ गयी। उसके हल्के से बोझ से पलंग का मखमली गद्दा अंदर को धंस गया। पैरों को ऊपर समेटकर उसने घुटनों के चारों ओर अपनी नर्म बांहें लपेट लीं और गर्दन झुकाकर अपना एक गाल इस पर रख लिया। सामने, पलंग के समीप ही एक छोटी मेज पर एक शमां रखी थी, जिसे सुबह होने से पहले ही बुझा दिया गया था। शमां यहां कई जगहों पर थी, परंतु सब बुझी हुई‒उसकी जिंदगी के समान खामोश, उदास, बेदम। उसकी आंखों से आंसू मोतियों के समान पलकों से छलक पड़े। ‘लाभ’ उसके होंठों से एक आह निकली। वह जैसे स्वयं से ही बोली‒तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया। क्यों नहीं अपनी जान की बाजी लगाकर मुझे बचा लिया’ वह सिसक पड़ी और उसकी आंखों से टपकते आंसू उसकी बांहों पर फिसलकर उसके सामने जीवन की एक कथा प्रस्तुत करने लगे। भोला उसके बचपन का साथी…. बचपन में ही उनके घरवालों ने उन दाेनों की मंगनी कर दी थी। …

 

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