naee jindagee
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“देमाँ जी…” की आवाज सुनते ही माँ ने माँड़ में थोड़ा सा चावल डाला, दाल, नमक और सब्जी मिलाई और एक बर्तन में डालकर दरवाजे की ओर बढ़ गई। खाली बर्तन हाथ में लिए वह चुपचाप खड़ा था। माँ को देखते ही मुस्काया। माँ ने पूरा माँड़ उसके बर्तन में उड़ेल दिया और उसे पीते हुए देखती रही। पूरा माँड़ पीकर वह तृप्त हुआ और स्नेहमिश्रित नजर से माँ को देखता हुआ चला गया। वह रोज आता था, दोपहर को दो से तीन बजे के बीच।

पिताजी को अचानक उस रोज माँ की करतूत का पता चला। दानपुण्य से पिताजी को नफरत थी। माँ को डांटने लगे, बोले, “क्यों खैरात बांटती फिरती हो? यहाँ कौन सा भंडार है? मुश्किल से दो वक्त का खाना नसीब होता है और तुम…

“ऐसा भी क्या है जी, माँड़ कोई थोड़े ही पीता है, बेचारा खा लेता है। उसकी भूख मिट जाती है। “माँ ने विनती करते-हुए कहा।

‘नहीं कोई जरूरत नहीं। कल से उसे कुछ मत देना… ‘माँ को दुःख हुआ, पर पिताजी की आज्ञा वह टाल नहीं सकती थी।

जब माँ ने उसे आने को मना कर दिया, तो वह माँ की ओर कातर दृष्टि से देखता हुआ चुपचाप चला गया। फिर वह कभी नहीं आया। माँ को माँड़ फेंकते समय हमेशा उसके पिचके पेट की याद आती थी। पता नहीं, अब क्या खाता होगा वह, माँ सोचा करती थी। माँ को लगता था, वह मर गया होगा।

अचानक एक दिन फिर से आवाज आई_ ‘ओ..माँ..जी..‘माँ तुरन्त दरवाजे की ओर दौड़ी। वही खड़ा था। पर अब पहले सी हालत में नहीं था। पेट अपेक्षाकृत कुछ सामने की ओर था। कपड़े स्वच्छ और चेहरे: पर संतोष की झलक थी। माँ को देखते ही पाँव पर झुक गया। बोला, “माँजी… आपकी कृपा से मैं मजदूर बन गया हूँ। आपने दो जून खाना और माँड देकर जिन्दा रखा.. वरना..” उसकी आँखें भर आई थीं। माँ गद्गद हो उठी।

वह चला गया। पिताजी बोले, “ठीक ही तो है। अब तो काम करना ही होगा। जब तुम ऐसे ही खिला देती थी, तो वह मेहनत क्यों करता। अब अक्ल ठिकाने आ गई है उसकी। खाना न देकर तुमने उसको नई जिन्दगी दी है।

माँ अवाक रह गई। समझ नहीं पाई माँड़ देकर माँ ने उसे जिन्दगी दी थी या न देकर “नई जिन्दगी?”

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)