Mulla Nasruddin ki kahaniya: शहर के दूसरे छोर पर पहुँचकर मुल्ला नसरुद्दीन रुक गया। अपने गधे को एक कहवाख़ाने के मालिक को सौंपकर खुद नानबाई की दुकान में चला गया।
वहाँ बहुत भीड़ थी। धुआँ और खाना पकने की महक आ रही थी। चूल्हे गर्म थे और कमर तक नंगे बावर्चियों की पसीने से तर पीठों पर चूल्हों की लपटों की चमक पड़ रही थी। पुलाव पक रहा था। सीख़ कबाब भुन रहे थे। बैलों का गोश्त उबल रहा था। प्याज, काली मिर्च और भेड़ की दुम की चर्बी और गोश्त भरे समोसे तले जा रहे थे।
बड़ी मुश्किल से मुल्ला नसरुद्दीन ने बैठने के लिए जगह तलाश की। दब- पिसकर वह जहाँ बैठा, वह जगह इतनी तंग थी कि जिन लोगों की पीठ को धक्का देकर वह बैठा, वे ज़ोर से गुर्रा उठे। लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं।
मुल्ला नसरुद्दीन ने तीन प्याले कीमा, तीन प्लेट चावल और दो दर्जन समोसे डकार लिए ।
खाना खाकर वह दरवाज़े की ओर बढ़ने लगा। पैर घसीटते हुए वह उस कहवाख़ाने तक पहुँचा, जहाँ अपना गधा छोड़ आया था। उसने कहवा मँगवाया और गद्दों पर आराम से पसर गया। उसकी पलकें झुकने लगीं। उसके दिमाग़ में धीरे-धीरे खूबसूरत ख़याल तैरने लगे ।
मेरे पास इस वक्त अच्छी-खासी रकम है। घुमक्कड़ी छोड़ने का वक्त आ गया है। क्या मैं एक सुंदर और मेहरबान बीवी हासिल नहीं कर सकता? क्या मेरे भी एक बेटा नहीं हो सकता? पैगंबर की कसम, वह नन्हा और शोर मचानेवाला बच्चा बड़ा होकर मशहूर शैतान निकलेगा। मैं अपनी सारी अकलमंदी और तजुर्बे उसमें उड़ेल दूँगा। मुझे जीनसाज़ या कुम्हार की दुकान ख़रीद लेनी चाहिए । ‘
वह हिसाब लगाने लगा, अच्छी दुकान की क़ीमत कम से कम तीन सौ तंके होगी। लेकिन मेरे पास हैं कुल डेढ़ सौ तके । अल्लाह उस डाकू को अंधा कर दे। मुझसे वही रक़म छीन ले गया, जिसकी किसी काम को शुरू करने के लिए मुझे ज़रूरत थी।
‘बीस तंके।’ अचानक एक आवाज़ आई । और फिर ताँबे की थाली में पासे गिरने की आवाज़ सुनाई दी।
बरसाती के किनारे, जानवर बाँधने के खूँटों के बिल्कुल पास कुछ लोग घेरा बनाए बैठे थे। कहवाख़ाने का मालिक उनके पीछे खड़ा था।
जुआ, कुहनियों के सहारे उठते हुए मुल्ला नसरुद्दीन ने भाँप लिया। मैं भी देखूँ। जुआ तो नहीं खेलूँगा । ऐसा बेवकूफ़ नहीं हूँ। लेकिन कोई अकलमंद आदमी बेवकूफ़ों को देखे क्यों नहीं?’
उठकर वह जुआरियों के पास चला गया।
‘बेवकूफ़ लोग,’ कहवाखाने के मालिक के कान में उसने फुसफुसाकर कहा – मुनाफे के लालच में अपना आख़िरी सिक्का भी गँवा देते हैं। लेकिन उस लाल बालों वाले जुआरी की तकदीर देखो, लगातार चौथी बार जीता है। अरे, यह तो पाँचवीं बार भी जीत गया। इसने दौलत का झूठा सपना जुए की ओर खींच रखा है। फिर छठी बार जीत गया? ऐसी क़िस्मत मैंने कभी नहीं देखी। अगर यह सातवीं बार जीता तो मैं दाँव लगाऊँगा ।
काश! मैं अमीर होता तो न जाने कब का जुआ बंद करा चुका होता। ‘
लाल बालों वाले ने पासा फेंका। वह सातवीं बार फिर जीत गया।
मुल्ला नसरुद्दीन खिलाड़ियों को हटाते हुए घेरे में जा बैठा। उसने भाग्य शाली विजेता के पासे ले लिए। उन्हें उलट पुलटकर अनुभवी आँखों से देखते हुए बोला, ‘मैं तुम्हारे साथ खेलना चाहता हूँ।’
‘कितनी रक़म ?’ लाल बालों वाले ने भर्राए गले से पूछा । वह ज़्यादा-से ज़्यादा जीत लेने के लिए उतावला हो रहा था।
मुल्ला नसरुद्दीन ने अपना बटुआ निकाला। ज़रूरत के लिए पच्चीस तंके छोड़कर बाक़ी निकाल लिए। ताँबे के थाल में चाँदी के सिक्के खनखनाकर गिरे और चमकने लगे। ऊँचे दाँवों का खेल शुरू हो गया।
लाल बालों वाले ने पासे उठा लिए। बहुत देर तक उन्हें खनखनाता रहा, जैसे उन्हें फेंकते हुए झिझक रहा हो। सब लोग साँस रोके देख रहे थे।
आख़िर लाल बालों वाले ने पासे फेंके। खिलाड़ी गर्दन बढ़ाकर देखने लगे और फिर एक साथ ही पीछे की ओर लुढ़ककर बैठ गए। लाल बालों वाला पीला पड़ गया। उसके भिंचे हुए दाँतों से कराह निकल गई। जुआरी हार गया था।
अपने पर भरोसा करने के लिए तकदीर ने मुल्ला नसरुद्दीन को सबक सिखाने का इरादा कर लिया। इसके लिए उसने चुना उसके गधे, या कहो गधे की दुम को। गधा जुआरियों की ओर पल्टा और उसने दुम घुमाई । दुम सीधी उसके मालिक के हाथ से जा टकराई। पासे हाथ से फिसल गए। लाल बालों वाला जुआरी खुशी से भर्रायी चीख़ के साथ जल्दी से थालपर लेट गया और दाँव पर लगी रक़म अपने बदन से ढक ली।
मुल्ला नसरुद्दीन की फटी-फटी आँखों के सामने दुनिया ढहती-सी नज़र आ रही थी। अचानक वह उछला। उसने एक डंडा उठा लिया और खूँटे के पास खदेड़ते हुए गधे को पीटने लगा।
‘कमबख़्त, हरामजादे, बदबूदार जानवर, सभी जिंदा जानवरों के लिए लानत।’ मुल्ला नसरुद्दीन चिल्ला रहा था, क्या यही काफ़ी नहीं था कि अपने मालिक के पैसे से जुआ खेले? क्या यह पैसा हारना भी ज़रूरी था? बदमाश, खाल खींच ली जाए तेरे रास्ते में अल्लाह गड्डा कर दे, ताकि तू गिरे और तेरे पैर टूट जाएँ। न जाने तू कब मरेगा ? मुझे तेरा बदनुमा चेहरा देखने से कब छुट्टी मिलेगी?’
गधा रेंकने लगा।
जुआरी खिलखिलाकर हँसने और चिल्लाने लगे।
सबसे ज़्यादा ज़ोर से लाल बालों वाला जुआरी चिल्लाया। उसे अपनी खुशकिस्मती पर पक्का यकीन हो गया था।
थके हाँफते हुए मुल्ला नसरुद्दीन ने डंडा फेंक दिया तो लाल बालों वाले ने कहा, ‘आओ, फिर खेल लो। दो-चार दाँव और लग जाएँ। तुम्हारे पास अभी पच्चीस तंके तो हैं ही। ‘
यह कहकर उसने बायाँ पैर फैला दिया और मुल्ला नसरुद्दीन के प्रति उपेक्षा प्रकट करते हुए उसे हिलाने लगा।
‘हाँ-हाँ, क्यों नहीं,’ मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा । वह सोच रहा था – जब सवा सौ तंके चले गए तो अब बाक़ी पच्चीस का ही क्या होगा ?
उसने लापरवाही से पासे फेंके और जीत गया।
हारी हुई रक़म थालपर फेंकते हुए लाल बालों वाले ने कहा, ‘पूरी रक़म । ‘
मुल्ला नसरुद्दीन फिर जीत गया।
लाल बालों वाले को विश्वास नहीं हो रहा था कि क़िस्मत पलट गई है।
‘पूरी रकम, ‘ उसने फिर कहा ।
उसने लगातार सात बार यही कहा और हर बार हारता गया ।
थाल रुपयों से भर चुका था। जुआरी ख़ामोश बैठे थे।
लाल बालों वाला चिल्लाया, ‘अगर शैतान ही तुम्हारी मदद कर रहा हो तो बात दूसरी है। वरना तुम हर बार जीत नहीं सकते। कभी तो तुम हारोगे ही। थाल में तुम्हारे सोलह सौ तंके हैं। लगाओगे फिर एक बार पूरी रकम ? कल मैं इस रकम से अपनी दुकान के लिए माल खरीदने वाला था। तो इसे भी दाँव पर लगाता हूँ।’
उसने सोने के सिक्कों, तिल्ले और तुमानों से भरी एक छोटी सी थैली
निकाली।
मुल्ला नसरुद्दीन उतावली भरी आवाज़ में चिल्लाया, ‘अपना सोना इस थाल में उड़ेल दे। ‘
इस कहवाख़ाने में ऐसे भारी दाँव देखे नहीं गए थे। मालिक उबलती हुई केतलियों को भूल गया। जुआरियों की साँसें लंबी-लंबी चलने लगीं। लाल बालों वाले ने पासे फेंके और आँखें मूँद लीं। पासे देखने में उसे डर लग रहा था।
‘ग्यारह ।’ सब एक साथ चिल्ला उठे। मुल्ला नसरुद्दीन अपने आपको क़रीब क़रीब हारा हुआ समझने लगा। अब केवल दो छक्के यानी बारह काने ही उसे बचा सकते थे।
अपनी खुशी को छिपाए बिना लाल बालों वाला भी दोहराने लगा- ग्यारह-ग्यारह काने। देखो भई, मेरे ग्यारह हैं। तुम हार गए, हार गए हार गए । ‘
मुल्ला नसरुद्दीन का जैसे सारा बदन ठंडा पड़ गया। उसने पासे उठाए और फेंकने की तैयारी करने लगा। फिर अचानक उसने हाथ रोक लिया।
‘इधर पलट ।’ उसने अपने गधे से कहा, ‘तू तीन काने पर हार गया था। ले, अब ग्यारह काने पर जीतने की कोशिश कर । नहीं तो मैं तुझे इसी वक्त कसाई के यहाँ ले चलूँगा।’
बाएँ हाथ से गधे की दुम पकड़े पकड़े उसने दाएँ हाथ से गधे को ठोका। लोगों की ऊँची-ऊँची आवाज़ों से कहवाखाना हिल उठा। मालिक कलेजा थामकर बैठ गया । यह तनाव उसकी बरदाश्त से बाहर था ।
‘यह लो – एक-दो । ‘ पासों पर दो छक्के थे।
लाल बालों वाले जुआरी की जैसे आँखें बाहर निकल पड़ीं और उसके सूखे सफ़ेद चेहरे पर काँच की तरह जड़ी रह गईं। वह हौले से उठा और रोता,डगमगाता चला गया।
मुल्ला नसरुद्दीन ने जीती हुई दौलत को थैलों में भर लिया। गधे को गले लगाया, उसका मुँह चूमा और बढ़िया मालपुए खिलाए। वह होशियार जानवर हैरान था कि अभी कुछ मिनट पहले ही उसके साथ बिल्कुल विपरीत व्यवहार हुआ था।
