Hindi Short Story: बात जबकि है जब मेरी नई-नई शादी हुई थी। मैं छोटे कस्बे से थी इसलिए हमारे यहां पर शादी के वक्त लड़की को परिवार की महिलाओं के द्वारा बहुत नसीहत दी जाती थी। जैसे धीरे-धीरे चलना है। धीरे-धीरे बोलना है। सभी के खाना खाने के पश्चात खाना खाना है। सभी का कहना मानना है। खाना बिल्कुल पतला बनाना है। रोटियां पर देसी घी अच्छी तरीके से लगाना है। रोटी छोटी-छोटी और पतली होनी चाहिए। विवाह से पहले दादी, चाची, ताईयों द्वारा पूरी ट्रेनिंग दी जाती थी।
आजकल की तरह नहीं होता था की लड़कियों को खाना बनाना आए या ना आए मोबाइल में रील बनाना ही आना चाहिए।
ऐसी सुनी सुनाई बातों को लेकर मैंने ससुराल में प्रवेश किया। 10, 11 दिन बाद रसोई में भी काम करना शुरू हो गया। मैं बहुत पतली-पतली रोटियां बनाती थी। जिससे घर के लोगों का पेट ही नहीं भरता था। सासू मां मुझे बार-बार टोकती। जिससे मैं खीज जाती थी।
फिर मैं खाना थोड़ा मोटा बनाना शुरू कर दिया। गरमा गरम तो मोटे परांठे अच्छे लगते हैं। लेकिन एक दिन मैंने टिफिन में पैक करके मोटे-मोटे परांठे बनाकर रख दिए।
हमारा पारिवारिक बिजनेस था। इसलिए खाना सब मिलकर खाते थे।
रात को जब टिफिन वापस आया तो उसमें आधे से भी ज्यादा खाना बचा था। ससुर जी रात के खाने के वक्त बोले,”आज तो बहु रानी ने ऐसा खाना बनाया की एक पराठे में ही पेट भर गया । मैं समझ गई कि वह क्या कहना चाहते हैं। उनकी बात को सुनकर मैं शर्म से लाल हो गई।
उसके बाद ना मैंने कभी बहुत पतला और ना ही अधिक मोटा खाना बनाया। खाना परिवारजनों की पसंद के हिसाब से बनाया जाता है ना कि किसी की नसीहत के आधार पर। मेरे लिए तो नसीहत बन गई फजीहत।
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