मोबाइल-गृहलक्ष्मी की कविता
Mobile

Short Hindi Poem: अब दिन भर मोबाइल में उलझी रहती हूँ,
इन्स्टा और फेसबुक पर ही बिज़ी रहती हूँ।
मुलाकात नहीं होती  किसी से फिर भी
स्टेटस पर हर दम ही दिखती रहती हूँ।

किचन में भी अब कहाँ मन लगता है,
दाल,चावल भी बड़ी मुश्किल से पकता है।
कोमेन्टस तो कभी लाइक गिनती रहती हूँ,
अब दिन भर मोबाइल में उलझी रहती हूँ।

मेसेज से ही सब हाल जान लेती हूंँ,
फोन आ जाये तो घण्टों काट देती हूँ।
कुछ दोस्तों से चेटिंग भी करती रहती हूँ,
अब दिन भर मोबाइल में उलझी रहती हूँ।

रिश्ते-नाते भी सारे मोबाइल ही निभाता है,
कहांँ कोई अब किसी के घर आता जाता है,
बच्चों से भी विडियोकॉल पर ही मिलती हूँ,
अब दिन भर मोबाइल में उलझी रहती हूँ।

घर का सामान लेने भी अब नहीं जाती हूं,
जरूरत की चीजें ब्लींकिट से ही मंगाती हूं।
बिजली-पानी के बिल भी घर से भर देती हूँ ,
अब दिन भर मोबाइल में उलझी रहती हूँ।

सारी समस्या अब गूगल ही सुलझाता है,
इससे दूर भी अब कोई नहीं रह पाता है।
ज़ूम मीटिंग को भी अक्सर क्रेज़ी रहती हूँ,
अब दिन भर मोबाइल में उलझी रहती हूँ।

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