पत्नी धर्म निभाना-गृहलक्ष्मी की कविता
Patni Dharm Nibhana

Poem in Hindi: साथ तेरा मिला जो मुझको,

बिछड़ मुझसे अब न जाना।

वपु रूप में बसों कही भी,

चित्त से मुझे न बिसराना।।

साथ तुम्हारा मुझे मिला है,

हर जन्म में इसे निभाना।

कहे जमाना कुछ भी हमको

त्याग मुझे तुम न जाना।।

सुख दुःख और कहासुनी से,

मुझसे तुम न अमर्ष होना।

हालात रहें जैसे भी जग के,

मुझसे फिर न विमुख होना।।

स्वत्व संग बहुतेरे फ़र्ज मेरे है,

उनको निभाने मुझे तुम देना।

श्वास रहें जब तक इस तन में,

संग प्रिये मेरे तुम भी रह लेना।।

सात फेरों का परिणय नहीं,

सात वचनों का हमारा बंधन।

हरपल बना रहे साथ यूँही,

करबद्ध करूं ईश से वंदन।।

चार दिन की सौगात जिंदगी,

हर जन्म में बस तुम्हें है पाना।

प्रेम बाहों में लिपटी तुम मुझसे ,

पत्नी धर्म तुम हर जन्म निभाना।।

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