फोन पर बातें-गृहलक्ष्मी की कविता
Phone par Baate

Hindi Love Poem: तुम्हारा फोन पर मुझसे बात करना
मेरी आंखो में हज़ारों सितारों को रौशन कर देता है
तुम्हारे वो प्यारे मीठे शब्द जब मेरे कानों को छूते हैं तो
लगता है मानो ठीक कानों के पास तुम बैठे हो और
कानों से धीरे धीरे मेरे अंदर उतर रहे हो
मैं गुदगुदा जाती हूं, जब तुम कहते हो तुम बहुत प्यारी हो
मेरी धड़कने तेज़ हो कर पायल सी झंकृत हो उठती है
और मेरा दिल बेरोक हो कर खूब हंसता है
तुम्हारा एक एक शब्द मुझे
ऐसे अपने अंदर समेट लेता है जैसे छुईमुई का फूल
और मेरी आंखे दर्पण को देख ख़ुद पर ही इतराने लगती है
तब ऐसा लगता है जैसे
तुम्हारे होंठों की गुलाबी स्याही
मेरे गालों को छूती हुई मेरे सांवले पन को धो रही हो
और मेरा रूप निखर कर चमकीला श्वेत हो गया हो
तुम्हरे शब्द मेरे रोम रोम में ऐसे उतर जाते हैं
जैसे ये नील गगन अपने अंदर पूरी सृष्टि को ओढ़ लेता है
तुम स्वाति नक्षत्र की बूंद की भांति मुझमें ऐसे समाते हो
की मैं धीरे धीरे एक श्वेत मोती में परिवर्तित हो
झिलमिलाने लगती हूं
वो घंटो तुमसे बतियाना अब मेरी आदत
और आदत से जिंदगी का हर वो पल बन जाता है जो
बस चाहता है की ये मीठी चाशनी हर वक्त कानो की
प्यास में मिठास भरती रहे
तुम यूंही मुझसे बातें करते रहो और मैं यूंही
तुम्हारी बांहों में फोन पर सिमटी रहूं…बस यही ख्वाइश है तुम से

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