"मायका और भाई"-गृहलक्ष्मी की लघु कहानी
Mayka aur Bhaai

Hindi Kahani: उसके घर बीसों साल बाद गया था। देखते ही वह मुझे पहचान गई; मैं भी बिना किसी से पूछे बेहिचक उसके पैर छुए।

मैं भी पहचान गया था, क्यों न पहचानता उसे वह मुझे अपने गोद में लेकर घुमाने ले जाती और खेल खिलाया करती थी।
आज उसका गोरा चिट्टा चेहरा झुर्रियों से परिपूर्ण होकर भी दगदगा रहा था; रुतबा भी वही था। उसके कुछ दांत गिर गए थे। और सुनाई भी कुछ कम पड़ता था।
उसकी आंखों से आंसू बहने लगे थे। उसने अपना सारा घर सिर पर उठा लिया और अपनी बहुओं से कहने लगी कि, “मेरा भाई आया है!”
मेरी भी आंखें छलक आईं थीं। यह मेरी बहन थी जो पिता पर संकट आया देख नौ साल की उम्र में एक डंडा से मार – मार कर दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए थे। जब तक वह दुश्मन जिया था तब तक उसका हाथ सीधा नहीं हुआ।
अपने पिता के ऊपर जबरदस्त दुश्मन को देखकर कि, यह मेरे बापू को मार डालेगा! तब एक डंडा लेकर उस पर रणचंडी की तरह टूट पड़ी थी। ले धुनाधुन दिया और उसका हाथ टूट गया। तब उसकी पकड़ ढीली हो गई और बापू छूट गये थे। वह दुश्मन भी ‘नौ दो ग्यारह हो गया था!’
मैंने देखा कि, मैं अब भी उसके लिए एक छोटा सा बालक हूं। वह इसी प्रयास में रही कि, क्या खिला दूं अपने भाई को!
जब मैं उसके घर से चलने लगा तो उसने बहुत सारी चीजें मेरे गाड़ी में रखवा दिया था।
मुझे यह आभास हुआ, इस बात का पता लगा कि, मायका और भाई कितने प्यारे होते हैं

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