सीता के लक्ष्मण रेखा से बाहर आते ही रावण ने उनका अपहरण कर पुष्पक विमान में बैठाकर लंका ले जाने लगा तब सीता ने उच्च स्वर में राम और लक्ष्मण को पुकारा। सुरक्षा की गुहार लगायी। जटायु नामक एक विशाल गिद्ध ने रावण से युद्ध किया। बलशाली रावण अपने अमोघ खड्ग से जटायु के दोनों पंख काट दिया। जटायु नि:सहाय हो कर पृथ्वी पर गिर पड़ा। रावण पुष्पक विमान में सीता जी को लेकर आगे बढ़ने लगता है। सीता जी ने वायुमार्ग से जाते समय अपने आभूषणों को धरती पर फेंके। राम और लक्ष्मण सीता की खोज में दर-दर भटक रहे थे। तब उनकी भेंट हनुमान और सुग्रीव नामक दो वानरों से हुई। यह कथा हम सभी बचपन से सुनते आ रहे हैं। रामलीला में देखते हैं। इसके उपरान्त हमें राम का एक अलग चरित्र दृष्टिगोचर होता है।
रावण का वध
भवानराव बाळासाहेब पंतप्रतिनिधि अपनी पुस्तक ‘रावण का वध’ में उल्लेख करते हैं – “रामायण में सीता के खोज में सीलोन या लंका या श्रीलंका जाने के लिए 48 किलोमीटर लम्बे 3 किलोमीटर चोड़े पत्थर के सेतु का निर्माण करने का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसको रामसेतु कहते हैं।” सीता को को पुनः प्राप्त करने के लिए राम ने हनुमान, विभीषण और वानर सेना की सहायता से रावण के सभी बंधु-बांधवों और उसके वंशजों को पराजित किया तथा लौटते समय विभीषण को लंका का राजा बनाकर अच्छे शासक बनने के लिए मार्गदर्शन किया।
अयोध्या वापसी
राम ने रावण को युद्ध में परास्त किया। लंका राजा विहिन नहीं रहे उसे ध्यान में रखते रावण के छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया।
अयोध्या वापसी और राज्याभिषेक
राम, सीता, लक्षमण और कुछ वानर जन पुष्पक विमान से अयोध्या की ओर प्रस्थान किये। वहां सबसे मिलने के बाद राम और सीता का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ। पूरा राज्य कुशल समय व्यतीत करने लगा।
भारत के ही नहीं बल्कि हजारों वर्ष के विश्व इतिहास में अनेक महापुरुषों के चरित्र ने जनमानस को प्रभावित किया, उनमें राम का नाम प्रमुखता लिया जाता है। राम से पूर्व हमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश के साथ अनेक महर्षियों ऋषियों और अन्य देवियों के नाम मिलते हैं। इन सभी ने विश्व के मानव समुदाय को न केवल वैज्ञानिक जीवनशैली दी अपितु ज्ञान का वह भंडार दिया जिसके बल पर आज संपूर्ण विश्व के वैज्ञानिक नवीनतम अन्वेषण में व्यस्त हैं। बाइबल में लिखा है कि ‘राम के युग में सारे संसार में एक ही भाषा व वाणी थी। उस समय हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, यहूदी आदि एवं धर्म, मत, संप्रदाय नहीं थे। न ही आज के समान जाति-आधारित सामाजिक दीवारें। तब मनुष्य समाज के दो ही भाग थे आर्य व अनार्य। जो चरित्रवान व विद्वान न था वही अनार्य (राक्षस) था। तब सारी मानव जाति की एक ही संस्कृति थी।’
मंदिर व मृण्मूर्तियां
देश-विदेशों में राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान आदि के सैंकड़ों मंदिरों का निर्माण किया गया। कंबोडिया में 11वीं शताब्दी में निर्मित अंकोरवाट मंदिर की दीवारों पर रामायण व महाभारत के दृश्य अंकित हैं। इसी तरह 9वीं सदी में निर्मित जावा के परमबनन (परमब्रह्म) नामक विशाल शिवमंदिर की भित्तिकाओं पर रामायण की चित्रावली अंकित है। रामायण से संबंधित सैकड़ों मृण्मूर्तियां (टैराकोटा) हरियाणा प्रदेश के सिरसा, हाठ, नचारखेडा (हिसार), जींद, संथाय (यमुनानगर), उत्तर प्रदेश के कौशांबी (इलाहाबाद), अहिच्छत्र (बरेली), कटिंघर (एटा) तथा राजस्थान के भादरा (श्रीगंगानगर) आदि जगहों से प्राप्त हुई है। इन मृण्मूर्तियों पर वनवास काल की प्रमुख घटनाओं को बहुत सुंदर रूप से दिखाया गया है। इनमें मुख्य है राम, सीता, लक्ष्मण का पंचवटी गमन दर्शाया गया है। मारीच मृग, त्रिशिरा राक्षस द्वारा खर-दूषण से विचार-विमर्श है और राम द्वारा 14 राक्षसों के वध का वर्णन है। रावण द्वारा सीताहरण है। सुग्रीव-बाली युद्ध को दिखाया गया है। इसके अलावा राम द्वारा बाली वध, हनुमान द्वारा अशोक वाटिका को नष्ट किया जाना, त्रिशिरा राक्षस का वध, रावण पुत्र इंद्रजीत का युद्ध में जाना आदि-आदि दृश्य विद्यमान है। इन मृण्मूर्तियों पर गुप्त काल पूर्व की लिपि में वाल्मीकीय रामायण के श्लोक भी लिखे गए हैं। यह मृण्मूर्तियां झज्जर (हरियाणा) के पुरातत्व संग्रहालय में देखी जा सकती है। इसके अलावा सैकडों मृण्मूर्तियां भारत के विभिन्न संग्रहालयों तथा लंदन म्यूजियम में संग्रहित हैं।
काल गणना
राम का काल-प्राचीन भारतीय काल गणना तथा पुराणीयपरंपरा के अनुसार राम 24वें त्रेतायुग में पैदा हुए। वाल्मीकि रामायण तथा अन्य रामायणों रामचरित्रों के अतिरिक्त अन्य प्राचीन ग्रंथों में राम, रावण आदि के विषय में चार मुख्य संदर्भ वायु पुराण, महाभारत, हरिवंश पुराण और ब्रह्माण्ड पुराण में मिलते हैं। इन संदर्भो व प्रमाणों के आधार पर यही सत्य प्रतीत होता है कि राम, विश्वामित्र आदि युग पुरुष 24वें त्रेतायुग में थे। महाभारत के अनुसार राम त्रेता एवं द्वापर युगों के संधिकाल में हुए थे। ऊपर लिखे प्रमाणों के आधार पर हम अगर 24वें त्रेता की समाप्ति पर राम का काल माने तो युगों की वर्ष-गणना के हिसाब से श्रीराम का समय आज से 8, 69,108 वर्ष पूर्व का ठहरता है।
इतने लम्बे काल के बाद किसी भवन, मूर्ति, मुद्रा, हथियार आदि का अस्तित्व रह ही नहीं सकता। प्रत्येक मनुष्य के अस्तित्व के लिए प्रमाण दिए भी नहीं जा सकते। कोई घर है भी तो उसी ने बनाया था जब तक इसका दस्तावेज नहीं मिलता अथवा उसके बारे में कोई जनश्रुति नहीं मिलती तो कैसे सिद्ध किया जा सकता है?
आज के समय में देश में अथवा विदेशों में राज्य करने वाले प्रधानमंत्रियों तथा राष्ट्रपतियों के बारे में 1000 वर्षो के बाद में कोई प्रमाण मांगे तो उस समय उनके पास सिर्फ पुस्तकीय विवरण तथा जनश्रुति ही उनके इतिहास को बता सकती है। पिछले कुछ वर्षो में कम्प्यूटर का ज्ञान रखने वाले कुछ अति उत्साही लोगों ने वाल्मीकि कृत रामायण के बालकाण्ड में वर्णित राम के जन्म समय की प्लेनेटेरियम गोल्ड साफ्टवेयर के माध्यम से आधुनिक गणना की है। गणित ज्योतिष के हिसाब से लगभग 26000 वर्षाें में राशियां अपना एक चक्र पूरा कर लेती हैं। अर्थात एक राशि चक्र का अपने पूर्ववत स्थान पर आने के लिए लगभग 26000 वर्ष लगते हैं।
कामिल बुल्के
कामिल बुल्के ने तार्किक वैज्ञानिकता पर आधारित शोध किया था। उनका विषय था – “रामकथा : उत्पत्ति और विकास।” उन्होंने सिद्ध किया कि राम वाल्मीकि के कल्पित पात्र नहीं थे। इतिहास पुरूष थे। राम कथा पर प्रमाणिक शोध के लिए भारत सरकार ने उन्हें केंद्रीय हिंदी समिति का सदस्य बनाया था। कामिल बुल्के ने श्रीरामचरितमानस को समझने के लिए अवधी और ब्रज भाषा भी सीखी।
बुल्के ने अपने शोध ग्रंथ में पहली बार यह सिद्ध किया कि रामकथा केवल भारत में नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय कथा है। राम कथा वियतनाम से इंडोनेशिया तक फैली हुई है। इसी प्रसंग में फादर बुल्के अपने एक मित्र हॉलैन्ड के डाक्टर होयकास का हवाला देते हैं। डा होयकास संस्कृत और इंडोनेशियाई भाषाओं के विद्वान थे। एक दिन वह केंद्रीय इंडोनेशिया में शाम के वक्त टहल रहे थे। उन्होंने देखा एक मौलाना जिनके बगल में कुरान रखी है, इंडोनेशियाई रामायण पढ़ रहे थे। होयकास ने उनसे पूछा – “मौलाना आप तो मुसलमान हैं। आप रामायण क्यों पढते हैं”?
उस व्यक्ति ने केवल एक वाक्य में उत्तर दिया – “और भी अच्छा मनुष्य बनने के लिये।” राम का चरित्र सभी धर्मों से ऊपर है। लोक नायक राम के विषय में अनेक प्रसंग इस पुस्तक में आगे के अध्यायों में पढ़ने को मिलेगा।
