Hindi Kahani: “पापा ! जरा ये मटर छील दीजिए मां नहीं हैं तो मुझे समय ही नहीं मिल रहा ” कहते हुए विश्वास की बहू जुही ने एक तसले में मटर की फलियां लाकर विश्वास जी के सामने छीलने के लिए रख दीं ।
” हां हां बेटा ! क्यों नहीं बस एक तसला और दे दो जिसमें मटर के छिलके रख दूंगा बाद में बाहर जानवरों को खिला दूंगा ।
कमल जी आश्चर्य से मुंह बाए विश्वास जी और उनकी बहू को देखें जा रहे थे। ये कैसे ससुर बहू हैं ना बहू को अपने ससुर जी से कहते हुए संकोच लगा और ना ही ससुर जी ने बहू की बात का बुरा माना कि बहू अपने ससुर से काम में मदद मांग रही है । उनसे रहा नहीं गया तो बहू के जाने के बाद अपने दोस्त विश्वास जी से बोल ही दिए ” कैसी बहू है जिसे शर्म नहीं आई अपने वृद्ध ससुर जी से मटर छीलने के लिए कहते हुए इस उम्र में तू घर के कामकाज कर रहा है वाह भई ! मुझे तो देखकर ही अच्छा नहीं लग रहा । तू तो बहू बेटे के साथ बिल्कुल बेचारा बनकर रह गया है । पता चल गया तेरे बच्चे तेरी कितनी कद्र करते हैं । मुझे तो आश्चर्य हो रहा है कि तूने अपना दुख दर्द आज तक मुझसे कभी नहीं बांटा ” कमल जी ने बड़ी ही सहानुभूति के साथ विश्वास जी से कहा ।
दरअसल कमल जी अपने दोस्त विश्वास जी के साथ उनके गार्डन में बैठे बातचीत कर रहे थे । वो लोग रोज पार्क में मिलते थे आज विश्वास जी पार्क में टहलने नहीं गए तो कमल जी उनसे मिलने चल ही चले आए ।
” जब दुख दर्द होगा तब तो बांटूंगा तेरे साथ तू गलत समझ रहा है मुझे मेरे बहू बेटे के साथ कोई दुख दर्द नहीं है आजकल तुम्हारी भाभी जी अपने मायके गई हुई है और चलते समय मुझे समझाकर गई थी कि घर के कामों में बहू की मदद कर दिया करना वो बेचारी अकेले छोटे बच्चों के साथ परेशान हो जाएगी ” विश्वास जी हंसते हुए बोले ।
” क्या मतलब तुझे घर के काम करते हुए कोई तकलीफ़ नहीं होती और वो भी बहू की मदद ,भाभी जी के साथ तो कभी काम करते नहीं देखा । घर के काम करना और घर की औरतों की सहायता करना तू कब सीख गया “?
” सीखने की कोई अंत नहीं होता मेरे दोस्त ,जब जागो तभी सवेरा ,बहू को तो मुझसे काम कहते हुए बहुत संकोच होता था लेकिन अब मैं जब घर पर होता हूं तो खुद ही उससे पूछ लेता हूं वैसे भी पौधों में पानी देना ,पानी भरना , सब्जियां लाना उन्हें छांटकर धोकर रखना फिर सूखने पर फ्रिज में लगाना , दूध लेकर आता हूं तो ये इन्तजार नहीं करता कि उसे बहू ही आंच पर चढ़ाए मैं खुद ही चढ़ा देता हूं । ज़रूरत पड़ने पर सब्जियां भी काट देता हूं ये छोटे—छोटे काम कर देता हूं बहू की बहुत मदद हो जाती है । अब रिटायर हो गया हूं तो समय ही समय है अपने लिए भी वक्त रहता है और घर के लिए भी ,खाली बैठकर ऊब जाऊंगा और शरीर भी बेकार हो जाएगा इसलिए जब तक शरीर चले चलाना चाहिए हम भी ख़ुश परिवार वाले भी खुश ”
विश्वास जी की बातें सुनकर कमलजी सोचने पर मजबूर हो गए और बोले ” यार ! घर का काम करना तो औरतों की जिम्मेदारी होती है बचपन से यही सुनते आए हैं अब मुझसे तो ये सब नहीं होता । तुम्हारी भाभी के गुजरने के बाद तकलीफें तो बहुत होती हैं बहू भी हर समय चिड़चिड़ाती रहती है लेकिन क्या करूं अब चाहूं भी तो मुझसे तो घर का कोई काम होता ही नहीं “।
” तो अब सीख ले सीखने का कोई अंत नहीं होता जब चाहो तब सीख लो कोशिश करो धीरे धीरे आदत में आ जाएगा । एक पते की बात बताता हूं घर के कामों में बहू की मदद कर दिया करो वो खुश रहेगी तो तुम्हें भी खुश रखेगी ।”
घर जाते समय कमल जी ने रास्ते से कुछ सब्जियां खरीदी और घर आकर अपने आप ही सब छांट बीनकर धोकर रख दी । बहू को देखा तो बच्चे को लेकर आराम कर रही थी तो कुछ नहीं बोले और अपने आप ही किचन में जाकर चाय बनाने लगे । खटर पटर की आवाज सुनकर बहू भागती हुई आई और उन्हें देखकर चिढते हुए बोली ” बाबूजी ! आपको भी घड़ी भर चैन नहीं है क्या कर रहे हैं कुछ आता जाता है नहीं बिगाड़ा और रख देते हैं “?
कमल जी ने पलटकर बहू की तरफ देखा तो उनकी आंखों में आंसू थे और बोले ” बहू ! तुम्हारी सास तो मुझसे रोते झींकते चली गई कि कभी तो घर के कामों में मेरी मदद कर दिया करो । मैं हूं तब तक तुम्हारे ये नाज नखरे उठा रही हूं मेरे जाने के बाद बहू बेटे के साथ तुम्हारी नहीं निपटेगी और तुम्हें ही सबसे ज्यादा तकलीफ़ होगी इसलिए अपना शरीर चलाया करो ” लेकिन मेरे कानों पर जूं नहीं रेंगती । आज अपने दोस्त विश्वास जी को देखकर समझ आया कि घर के कामों में मां बहन बीवी बहू सबकी मदद करनी चाहिए । मुझे तो कुछ आता भी नहीं तुम सिखाओगी मुझे और तुम्हें किसी भी काम में मदद चाहिए तुम बताओ बेझिझक बोलना तुम्हारी सास नहीं रही तो क्या हुआ ससुर तो अभी जिंदा है “
कमल जी की बातें सुनकर बहू भी भावुक हो गई ” बाबूजी ! विश्वास अंकल को मेरी तरफ से धन्यवाद कहिएगा जो काम मैं और मम्मी जी नहीं कर सकीं वो उन्होंने कर दिया । आपने सही कहा सीखने का कोई अंत नहीं होता “।।
