भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
खीमाणा गांव में मानो काला कहर हो गया। हरेक हिंदु बच्चा मारे डर के घर में छिप गया। हरेक मुहल्ले में हाथ में बंदूकें लिऐ सिंध से आये सिंधी खडे थे। वे हिंदुओं को मारना नहीं चाहते थे, घर भी नहीं लूटने थे लेकिन गायें ले जानी थी। हिंदु का धर्म जिसे पवित्र मानता है उन गायों को ले जाकर….
काल की परछाइयां मानो खीमाणा में उतर आई थी। जो बलवान थे वे खेतों में काम पर थे। वृद्ध-वृद्धाएं और अन्य स्त्रियां ही गांव में थे। इसी स्थिति में दस सिंधी गांव में घुस गये। हवा में दन..दन… गोलियां बरस रही थी। बाल-बच्चे चीख कर घरों में छिप गये। खिडकियां बंद हो गई। अपनी लम्बी और बडी मूछों पर ताव देते हुए खीमाणा के बाजार में खिड़की खुलवा कर गायों को छोड़ कर दो ही घण्टों में पचास गायों को इकट्ठा कर चौराहे पर लाये, उस वक्त खेत से लखधीर वापिस आ रहा था। बंदूकों की दनादन ने चौराहे के मोरों को डरा दिया था। मोरों ने चित्कार कर सारी सीम को हिला दिया था। बंदूकों की आवाज सुनकर सीम में हल चला रहे किसानों को भी स्तम्भित कर दिया। वे सब दौडते हए गांव की ओर आ रहे थे. जिनमें सोंढा जाति का लखधीर भी था।
गांव में आते ही लम्बे शीशम जैसे सिंधियों को देखकर लखधीर को बात समझ में आ गई। खेत में से आये जवान दांत भींच रहे थे, तब लखधीर ने ऊंची आवाज में कहा- “मर्द होकर खड़े क्यों हो? जाओ.. जंग लगी तलवारें लेकर आओ।”
लखधीर भा के ललकारने से खेत में हल छोड़ कर भाग आये जवान खीमाणा वास में शस्त्र लेने दौड़े। लखधीर सोंढा की पीठ में तो हमेशा तलवार लटकती रहती थी। उसने सिंधी को ललकारा। सिंधी ने बंदूक का घोड़ा दबाया और बंदूक फूटी लेकिन लखधीर ने उसका निशाना चुका दिया और उठ रहे धुएं में से ही कूद कर उसने झपट कर सिंधी के हाथ से बंदूक छीन ही ली। और जिस तरह छोटा बच्चा खिलौने को तोड़ देता है उसी तरह उसने दो हाथ में पकड कर बंदूक को तोड़ दिया। दूसरा सिंधी अभी जामगरी बंदूक में भर ले इससे पहले तो उसने लपक कर उसकी बंदूक भी छिन ली और बंदूक के जोर पर मुस्ताक सिंधी घबरा उठे। एक ने तलवार निकाली और सोंढा पर टूट पड़ा। जवान लोग अभी चौराहे पर पहुंचे, इससे पहले बड़ा युद्ध हो गया। मौत को देख, सिंधी पीछे हटते गये।
लखधीर सोंढा दस-दस सिंधियों के विरुद्ध तलवारों से ताली ले रहा था। सिंधी भागते रहे और लखधीर ने दो सिंधियों को तो जमीं पर पटक दिया। उसका शरीर तलवार और छुरी के घावों से छलनी-छलनी जैसा हो गया था फिर भी वह अभी भी टक्कर ले रहा था। भाग रहे सिंधियों के पीछे रक्त-रंजित सोंढा पड़ा। वह मानो पागल हो चुका था। दुम दबाकर भाग रहे सिंधी लखधीर की चपेट में आते ही तलवार के घाव से कट जाता था। मानो कोई नरवीर की सिंदूरी खांभी सजीवन होकर दौड रही हो, ऐसा आभास उठ रहा था। लखधीर सोंढा खीमाणा से सिंधियों के पीछे-पीछे आठ योजन तक गया था। भाग रहे सिंधी अब मुश्किल में पड गये थे। अगर सोंढा को खत्म न किया गया तो एक भी सिंधी बच नहीं सकेगा। ऐसा सोच कर सिंधियों ने खीमाणा से आठ योजन दूर और बुकाणा से एक योजन दूर खडे रह गये। एक वृक्ष के नीचे छिप कर पांच सिंधी खडे रहे। सिर में से बह रहे रक्त की धार होंठ पर आती तो सोंढा उसे थूक देता था। बचे-खुचे सिंधी वृक्ष के नीचे खडे थे। आंख के आसपास खून की अर्धपारदर्शक रेखा अंकित हो जाने से सोंढा को स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था। आंखों में खून धंस जाने से उसकी आंखों में दाह पैदा हो गई थी। खून से भीगी हुई आंखे मसलते हुए लखधीर को सिंधी न दिखें और आवेश में ही आगे बढ़ गया। सिंधियों ने पीछे से जाकर उसका सिर काट दिया। बायें स्कंध पर से होती हुई आगे बढी तलवार ने सोंढा का बांया हाथ भी काट दिया। लखधीर डगमगाया। दायें हाथ में रही तलवार जमीन में घुस गई और लखधीर का धड़ नीचे गिरते अटक गया। उसका मस्तक उड़ के एक वृक्ष पर जा अटका। सिंधी अब भागे। उन्हें पता था कि गांव में से दूसरे जवान सोंढा की सहाय में आ रहे थे। ठीक उसी वक्त सोंढा का धड डोल उठा। तलवार खींचाई और धड़ सिंधियों के पीछे पड़ा।
लखधीर सोंढा अपने जीवन के दौरान ही चमत्कारिक माना जाता था। किसी अनजाने आये जोगी की उसने खूब सेवा की फिर उस जोगीराज ने अपनी उच्छिष्ट राब पिलाई तब से लखधीर कोई रहस्यमय आदमी बन गया था।
सिर कट गया फिर भी धड़ पीछे पड़ा देखकर सिंधियों को लगा कि जिन्हें हम खवीस कहते हैं, वह यही होगा। सिंधी खीमाणा से सिंध की ओर उतर गये थे और भागत-भागते बोरडिया बेट तक पहुंच गये थे। बोरडिया बेट वाव के खीमाणा गांव से बाइस माइल दूर होता है। गैंडे के जितनी ताकतवाले सिंधियों की सांसे फूल गई। तब भी लखधीर का धड़ उनके पीछे गया था। बोरडिया बेट तक पहुंचते-पहुंचते सिंधी थक कर लोट-पोट हो गये। कुछ उधर ही गिर पड़े। कुछ मौत को भेटने खुद-ब-खुद तैयार हो गये। धड वहां पर आया और हरेक सिंधी को काट दिया। और फिर लखधीर सोंढा का धड़ भी उधर गिर पड़ा।
लखधीर के पीछे आये जवान उसकी बहादुरी देखकर दंग रह गये। उन लोगों ने अत्यंत मानपूर्वक लखधीर सोंढा का धड लिया और उसे खीमाणा लेकर आये। लखधीर भा का मस्तक कहां पर गिर गया था। यह बात किसी को पता नहीं थी। ढोल के निनाद में अत्यंत आदरपूर्वक चार-चार जवानों की कांध पर लखधीर का धड शमशान में लाया गया। अबील और गुलाल की हेली हो रही थी। जब उस नरवीर को अग्नि दी गई तब गांव के हर एक आदमी की आंखें बह रही थी।
धड को तो अग्नि दिया गया लेकिन सोंढा का मस्तक और हाथ अभी भी केर के वृक्ष में थे। उस रात ही खीमाणा गांव के मुखिया को सपना आया कि बुकाणा गांव से एक गाउं दूरी पर मेरा सिर और हाथ पड़े हैं। अगर मेरे हाथ की अंगुली पर दिये जलते देखो तो मानना कि मैं पीर हूं। मुझे लखधीर के बदले लाखों पीर कहना!”
कहा जाता है कि ऐसा सपना खीमाणा में उस रात बहुतों को आया था। दूसरे दिन सभी लोगों ने मिल कर खोज शुरु की। खोजते-खोजते उसी स्थान पर पहुंचे और देखा तो निशानी के मुताबिक लखधीर भा का मस्तक पड़ा था। हाथ की अंगुली पर दिये जल रहे थे। गांव के लोग उचित सम्मान के साथ लखधीर सोंढा का मस्तक ले आये। दूसरे दिन मस्तक को भी अग्नि दी गई। और सच ही में लखधीर सोंढा लखा पीर बने।
मलासर तालाब के पास लाखा पीर की दरगाह आज भी मौजूद है। उसे सवाई दरगाह के नाम से भी जाना जाता है। आज भी अनेक लोग उस दरगाह पर अपनी मन्नते मांगने आते हैं। लाखा पीर इस इलाके में जीते-जागते चमत्कारिक महापुरुष माने जाते हैं।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
