kheta bhakt
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

एक ओर कच्छ का रेगिस्तान, दूसरी ओर बनासकांठा! ऐसी उभय सरहद, जिनके कलेजे में पिघल जाती है ऐसे मढुत्रा गांव के पास ही आशासरा नाम का तालाब है। इस तालाब के पास ही कच्छ के रेगिस्तान की गर्म हवा को झेलता हुआ ईश्वरा महादेव का एक बिना घुम्मट का प्राचीन शिवालय है। इस शिवालय में एक शिलालेख है। जिसमें खेता भक्त की आस्था और श्रद्धा को ताजी रखता हुआ लेख है। ईश्वरा महादेव के शिवालय में प्रतिष्ठित लिंग खेता भक्त की श्रेष्ठ भक्ति का प्रतीक है। यह लिंग खुद ही वहां आकर प्रगट हुआ था, ऐसा माना जाता है। वह पहले मढुत्रा से चार-पांच किलोमीटर दूर था।

खेता का जन्म अहीर कुल में हुआ था। वह एक मालधारी था। अपने बचपन से ही खेता मढुत्रा से थोड़ी दूर ईश्वरी तालाब के किनारे रहे तीन शिवलिंगों का दर्शन करने का नियम था। हर रोज वह लिंगों के दर्शन करने जाता था। अचानक एक दिन उसके पिता पाला अहीर ने उसे दर्शन करने जाने की ना बोल दी। सिंध के नगर पारकर में से मढुत्रा होकर गुजरात में घुसते परदेशियों के सैनिक लोगों को मारते हुए चले जाते थे। ऐसी स्थिति में अपना पुत्र खेता रेगिस्तान में अकेला ही दर्शन के हेतु जाये, यह उसके पिताजी को न भाया। लेकिन खेता ने अपनी बात पर डटे रह कर कहा-” बापू! मौत तो देह को है। आत्मा थोड़ी ही मरती है?”

पाला आहीर अपने पुत्र के जवाब से चुप हो गये। अपना एक ही पुत्र खुद ही मौत के मुख में चला जाये, यह बात उन्हें खलती थी। लेकिन खेता की श्रद्धा देख वे कुछ न बोले। पिता का विरोध मोल लेकर भी खेता ने अपना नित्यक्रम जारी रखा।

एक शाम को खेता अपने नित्यक्रम अनुसार ईश्वर दर्शन के लिए जा रहा था, तब उसने गायें देखी। गायों के शरीर पर लाठियों की मार निर्दयता से पड़ रही थी। घबराई हुई गायें इधर-उधर दौड़ रही थी। खेता ने ध्यान से देखा तो पाया कि गायें तो मदुत्रा की थी। गायों को ले जा रहे सिंधियों को खेता ने ललकारा। खेता आहीर की लाठी का स्वाद चख कर सारे सिंधी पारकरायों गायों को छोड़ कर भाग गये। खेता आहीर ने गायों को गांव की दिशा में हांक दिया। इस घटना से गांववाले डर गये। सभी का मानना था कि पारकरा सिंधी बदला लेने के लिए हमला जरूर करेंगे। ऐसी भीति से शाम होते ही कोई गांव के बाहर नहीं निकलता था। लेकिन अलख के आराधक खेता ने तो मौत का डर छोड कर अपना नित्यक्रम जारी रखा।

एक रात खेता को सपना आया। इसमें उसने साक्षात् शिवजी के दर्शन किए। ईश्वरा महादेव ने सूचना दी कि- “खेता! अब तू दर्शन करने मत आना। मैं तुझे तेरे ही गांव के तालाब के किनारे ही तुझे दर्शन दूंगा। आशासरा के बेरी के पेड़ के नीचे तू मेरा लिंग देख सकेगा।”

खेता एकदम से जाग उठा। स्वप्न की सच्चाई के बारे में उसे सारी रात उसे शंका-कुशंका होती रही। सुबह जल्दी से उठ कर वह आशासरा तालाब के किनारे पहुंचा। तालाब के पास ही झुकी बैरी के असंख्य पन्ने बैर-बिखेर थे। एक ओर पत्तियों का ढेर था। किसी अनजान प्रेरणा से खेता ने पत्ते हटाये तो उसके आश्चर्य के बीच शिवलिंग मिला। ईशवर तालाब के ऊपर थे जो तीन शिवलिंग थे, ठीक वैसा ही शिवलिंग! भक्त खेता ने फिर से शिवलिंग को ढंक दिया और घर आया। किसी भी तरीके से मन मानता नहीं था। ईश्वरा के दर्शन का वक्त हुआ फिर भी उसका हृदय मानता नहीं था। ईश्वरा के दर्शन का वक्त हुआ तो भक्त खेता तालाब पर पहुंचा और देखा तो वही लिंग अब स्वप्न की सारी चिंताए मिट गई। लिंग की विधि वत् प्रतिष्ठा की गई। और भगवान ईश्वर का मंदिर बनाया गया। भक्त खेता आजीवन इस मंदिर के शिवलिंग की पूजा करता रहा।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’