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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

“बेटे, खेत में जाकर कोस जोड दे। मैं आता हूं मोल को पानी पिलाने! इतने में पानी की रेल भी खेत तक पहुंचे।”

  • “जी, बापूजी! मै अभी ही जाता हूं। इतने में आप आइएगा!”

सर्दी के दिन थे। कडाके की ठंड से ठिठुर गये हाथी खान चावडा ने अंगीठी में हाथ सेकते हुए अपने बेटे से कहा। बेटा तुरंत ही खेत की ओर रवाना हुआ। धाणधार प्रदेश का चित्रासणी गांव आसपास में जंगल और पहाडी। और टीलों की यह भूमि। टीलेवालों की हरी धजाएं लहरा रही थी। इस मलक में रानी जानवरों का डर रहता था। शेर, चीता, जरख, भालू और नार जैसे हिंसक प्राणी आजादी से घूमते फिरते थे। चित्रासणी गांव बीच में था। यहां पर चीतों का त्रास रहा करता था इसलिए इस गांव का नाम चित्रासणी पड़ा था। सारे प्रदेश में चित्रासणी गांव के पानी में दम है, ऐसा सभी लोग मानते थे। इस धरती पर कई नरकेसरी ने जन्म लिया। चित्रासणी के सिंधी और चावडाओं की मर्दानगी यानी हाथी का पगला।

ऐसी धरती पर जन्में हाथीखान चावडा ने अपने खेत में गेहूं और चने की खेती की थी। खेतीबाडी कर अपना जीवन बिता रहे थे। हाथी खान अपने नाम के अनुसार ही बडे बलशाली थे। हाथ में अगर पत्थर लेकर मसले तो वह भी मिट्टी बन जाये, ऐसे वे शक्तिशाली थे। एक बार रात को अपनी बैलगाड़ी लेकर बालाराम के जंगल में लकड़ी काटने गये थे। बैलगाड़ी को छोड़ कर बैलों को जंगल में ही घास चरने के लिए छोड़ दिए। और लकडी काट-काट कर बैलगाड़ी में रखने लगे। सारे पेड नीले ही थे इसलिए उन्होंने रात के वक्त ही काटना मुनासिब समझा था। क्योंकि वास्तव में तो यह राज की चोरी ही थी। गाडी भर गई, बैलों को खोजे तो मालूम हुआ कि चरते चरते आगे निकल गये है। गाड़ी ऐसे ही पड़ी रखे तो सवेरे को राज के लोगों को खबर पड़ जाये। गाडी को जप्त कर ले। और बैलों को खोजने जाये तो सुबह हो जाये ऐसे में उन्होंने खुद ही गाड़ी को खींच कर घर पहुंचा दी। ऐसे ही हाथीखान बेटे ने कुएं पर जाकर कोस जोड़ दिया। पानी गेहुं के मोल में बह रहा है। बेटा कोस चला रहा है।हाथी खान घर से सिधे गेहूं के खेत में पानी देने पहुंच गये। गेहूं के खेत में जाकर देखते है तो पानी अभी तक खेत तक पहुंचा ही नहीं! उन्होंने तुरंत ही अपने बेटे से पूछा कि कोस जोड़ा उसे कितना वक्त हुआ। बेटे ने जवाब दिया- “पानी क्यारी तक आ गया होगा बापू! कोस को जोडा उसे काफी वक्त हुआ। फिर ऐसा तो नहीं की कहीं फट गई हो? देखना पडेगा।”

हाथी खान तुरंत ही देखने चले। थोडा ही चले कि उन्होनें पानी की नींक में शेर को बैठा हुआ पाया। वे शेर से सिर्फ पांच कदम दूर खड़े रह गये। शेर नींक के बीच में ही बैठ गया था इसलिए पानी अटक गया था। और इधर-उधर फिजूल में बह रहा था।

  • “धत्त तेरी की। यह तो पानी के बीचोबीच कुत्ता बैठा है!” बोल कर शेर को भगाने उन्होंने मुंह से खास आवाज निकाली। एक मनुष्य की आवाज सुनकर शेर की नजर हाथी खान पर स्थिर हुई। उसने जम्हाई ली। और हाथी खान को मारने के लिए कूदा। हाथी खान शेर की कूद से बचने के लिए थोडे दूर तो हटे लेकिन विलम्ब हो चुका था। शेर के नाखून हाथी खान की पीठ में घुस गये थे। और उसके वजन से हाथी खान गिर ही पड़े थे। लेकिन जिस तरह कमान में से तीर छूटे, उसी तरह हाथी खान तुरंत ही खड़े हो गये और शेर के साथ भिड़ ही गये। और इस तरह शेर हाथी खान की मजबूत पकड़ में खुद फंस गया। और अब स्थिति ऐसी थी कि उस पकड में से छूटने के लिए वह जोर लगाने लगा। दोनों के बीच मानो शक्ति की स्पर्धा चली! एक बार हाथी खान शेर को पटकते हैं तो दूसरी बार शेर उन्हें पटकता है। ऐसा चल रहा है पर हाथी खान अपनी पकड़ छोड़ते नहीं है। बेटा शेर की दहाड़ सुनकर कुएं से बंदूक लेकर अपने पिताजी की मदद के लिए दौड़ा।
  • “बापू! सम्भालना! शेर को म
    ैं गोली मारता हूं!”
  • “जल्दबाजी मत कर बेटे! कहीं निशाना चूक गया तो गोली मुझे लग जायेगी और शेर अगर जख्मी हुआ तो और बिगड़ेगा! मैं मौके की तलाश में हूं। तूं चिंता मत कर!”

शेर पर हाथी खान ने अपनी शक्ति आजमाई और उसे गिरा दिया। फिर तो शेर के जबड़े उनके हाथ में आ गये। शेर तो नीचे गिर ही गया था, अब हाथी खान ने उसके एक जबड़े पर अपना पैर रख दिया और दूसरे जबड़े को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर खींचा। शेर को गले तक चीर ही डाला। शेर थोड़ी देर तड़पा और फिर मर गया। हाथी खान को शेर के नाखून से जो घाव पड़े थे, उधर वैद्य को बुलाकर टांके लगवाये। थोड़े दिनों मे वे पहले की तरह ही अलमस्त हो गये। शेर को मारने के बाद भी वे काफी जिये। फिर अल्लाह का बुलावा आ जाने पर जन्नत में गये।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’