krodh par kabu
krodh par kabu

एक बार एक साधु एक घर के दरवाजे पर भिक्षा के लिए पहुँचा।

गृहिणी कुछ खाने की सामग्री लेकर आ गई। भिक्षा देते हुए उसने कहा कि साधु महाराज, कृपया मेरी यह जिज्ञासा शांत करें कि लोग एक-दूसरे से क्यों झगड़ते हैं? साधु ने उत्तर दिया कि वह यहाँ भिक्षा माँगने के लिए आया है, ऐसे मूखर्तापूर्ण प्रश्नों के उत्तर देने के लिए नहीं। यह सुनकर

गृहिणी अवाक रह गई और सोचने लगी कि साधु कितना असभ्य है! गुस्से में वह बोली कि तुम कितने घमंडी हो कि मैं तुम्हें इतने प्यार से भोजन दे रही हूँ और तुम इतनी बदतमीजी से जवाब दे रहे हो। इस तरह वह बहुत देर तक उसे खरी-खोटी सुनाती रही। जब वह शांत हो गई तो साधु मुस्वफ़ुराया और बोला-माता, जैसे ही मैंने कुछ बोला, आप गुस्से से भर गईं। यही क्रोध सभी झगड़ों का मूल है। यदि हम सब अपने गुस्से पर काबू रखना सीख जाएं तो कहीं किसी का किसी से कोई झगड़ा न होगा।

सारः क्रोध पर काबू रखकर अनेक अप्रिय स्थितियों से बचा जा सकता है।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)