Child Care Tips: बच्चा जब तक घर के भीतर होता है, अभिभावक जितना ख्याल उसकी सेहत का रखते हैं, उतना ही संस्कारों का भी। चुनौतियों की शुरुआत तो तब होती है, जब बच्चा बाहरी दुनिया के संपर्क में आता है। सो जानिए बच्चे को बैड हेबिट्स से बचाने संबंधी उपायों के बारे में-
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‘बच्चा यह शब्द आस-पास के वातावरण में जीवतंता घोल देता है। जैसे पेड़-पौधे, फूल-पत्ते प्रकृति को नवजीवन देते हैं, वैसे ही बच्चे घरों में माता-पिता, दादा-दादी एवं परिवार के लिए आशा का दीपक, घर की रौनक, परिवार की खुशी की लहर एवं सपनों की शुरुआत होते हैं। एक बच्चे का जन्म दो आत्माओं के संस्कार, विचार, सोच, तेज और प्रेम का परिणाम ही नहीं होता अपितु वह भविष्य की कल्पनाओं एवं आने वाले समय का निर्माता भी होता है। भविष्य और संवेदनाएं किसी एक शिखर पर जाकर मिल जाती हैं। मनुष्य की संवेदनाएं प्रेम से उपजे बीज का पालन-पोषण कर उसे संपूर्ण वृक्ष या यों कहे कि फलदार वृक्ष बनाने के लिए माता-पिता एवं समाज का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, माता-पिता के सपनों का घेरा भी बड़ा होता जाता है। माता-पिता
को बच्चों की देखभाल करते समय प्रतिदिन अपने रिश्ते को प्रगाढ़ करने की आवश्यकता है। बचपन
से लेकर उसके खान-पान, पहनने-ओढ़ने, अच्छे-बुरे की समझ को बढ़ाने में उनकी मदद करनी चाहिए। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, वे माता-पिता से दूरी बनाने लगते हैं। इनके कारणों को समझने की आवश्यकता है। माता-पिता को बच्चों के साथ-मित्रवत व्यवहार करते हुए उचित समय बिताना चाहिए। बच्चों का भी आत्म-सम्मान होता है, माता-पिता को उसे ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए। उनके निर्णय, उनके विचार उनकी सोच को पूरी तरह सुनना, समझना और स्थान देना चाहिए।
आज समय बदल रहा है, माता-पिता होने के नाते बढ़ती उम्र में बच्चों से दूरी बनाने के स्थान पर उन्हें दोस्त बनाने की आवश्यकता है। दोस्त बनाने के लिए बच्चे के शारीरिक, मानसिक एवं परिवेश में आने वाले बदलावों को ध्यानपूर्वक देखने और समझने की आवश्यकता होती है।
बच्चे इमोशनल होते हैं। जो व्यक्ति, मित्र या कोई जान-पहचान वाला उसके विचारों को, उसकी बातों को ध्यानपूर्वक सुनता, समझता है, वे उसे ही अपना सबकुछ समझने और मानने लगते
हैं। उनमें अच्छे-बुरे, सही-गलत करने की शक्ति होने पर भी वह इमोशंस के चलते दब जाती है। यहीं पर माता-पिता का मुख्य रोल है। वे बढ़ती उम्र में बच्चों के अंदर आ रहे शारीरिक और मानसिक बदलावों को समझें। बच्चे टीनेज में आत्मनिर्भर बनना चाहते हैं। वे दूसरों के प्रति आकर्षित होते हैं, जिसके चलते वे अपने मित्रों के करीब होते जाते हैं और माता-पिता को अपने व्यवहार और तरीकों में भी बदलाव लाने की आवश्यकता है। बच्चो की रुचि, अभिव्यक्ति, सोचने, विचार की परीक्षा न ली जाए, अपितु प्रत्येक विषय पर उनको पूरा-पूरा महत्त्व और स्पेस दिया जाना चाहिए।

आज विज्ञान की प्रगति ने मोबाइल, इंटरनेट, कंप्यूटर आदि सुविधाओं के चलते बच्चे एक क्लिक से पूरे संसार की जानकारी हासिल करने में सक्षम हैं। यह ज्ञान का एक बड़ा भंडार एकत्र करने का साधन तो है, किंतु साथ-ही-साथ एक क्लिक पर वह सब जानकारी भी उपलब्ध है जो सही मार्गदर्शन न मिलने पर बच्चे को गलत दिशा में भी लेकर जा सकती है। बढ़ती उम्र में बच्चे के साथ जोर-जबरदस्ती से नहीं अपितु मित्रवत व्यवहार से सही निर्णय लेने में मदद करनी चाहिए। उनके निर्णय लेने के आत्मविश्वास को बढ़ाते हुए सही मार्गदर्शन उनका माता-पिता की ओर न केवल सम्मान को बढ़ाता है, बल्कि बढ़ने वाली दूरी को भी पाटता है।
बाल्यावस्था के बाद किशोरवस्था का आरंभ 12-13 वर्ष से 18 वर्ष तक रहता है। इस अवस्था के शारीरिक-मानसिक बदलावों को ध्यान में रखते हुए हॉर्मोनल बदलावों के कारण वे अनेक बार शीघ्र तनाव, क्रोध, संवेग, उत्तेजना, भय, भ्रमित होना आदि लक्षण प्रकट करते हैं। यदि इस समय उनसे दोस्ताना व्यवहार न किया जाए तो वे विद्रोही हो जाते हैं और गलत काम की तरफ अग्रसर हो जाते हैं। माता-पिता सामाजिक स्टेट्स के चलते अनजाने में अपने सपनों को बच्चों पर लादने लगते हैं। बच्चों से उनकी राय, उनकी सोच, उनकी अभिव्यक्ति और रुचि को यथास्थान रखने का अवसर देना आवश्यक है। दूसरे बच्चों से उनकी तुलना उनको दूसरों से कम आंकना बच्चों को गलत दिशा की ओर व माता-पिता से दूरी बनाने का मौका देता है। वे अपने अंदर चल रहे विचारों
को खोलकर माता-पिता के सामने रखने से कतराने लगेंगे। बच्चों की आंतरिक क्षमताओं, उनकी अभिरुचियों, संचरनात्मक विशेषताओं को जानकर, समझकर ही निर्णय लेने चाहिए। अपने सपनों का पुलिंदा बच्चों के सिर पर जबरदस्ती नहीं रखना चाहिए। टीनेज में बच्चे गलत आदतों का शिकार न हो जाएं। इसके लिए बच्चों के माता-पिता को बहुत सावधानी रखनी चाहिए। बच्चे प्रतिबंध स्वीकार नहीं करते। उन्हें आज़ादी से जीना अच्छा लगता है। अकसर बच्चे दोस्तों को देखकर या उनके दबाव में कुछ गलत आदतें सीख लेते हैं जैसे चोरी करना, झूठ बोलना, बहानेबाजी और बुरे और गंदे (गालियां) शब्दों का इस्तेमाल। पीयर प्रेशर के कारण वे बिना सोचे-समझे उनका अनुसरण करने लगते हैं। गलत संगति में कई बार एल्कोहल, सिगरेट और ड्रग्स जैसी चीजें का सेवन करने लगते हैं। इन आदतों के पीछे अनेक कारण होते हैं, जैसे माता-पिता जब ज्यादा सख्ती बरतते हैं तो विद्रोही भावनाएं उन्हें ऐसा करने पर मजबूर करती हैं। माता-पिता का प्यार, अपनेपन की कमी उन्हें माता-पिता से दूर मित्रों के अधिक करीब ले जाती है। दोस्तों की घनिष्ठता और घर से दूरी उन्हें गलत बातें सीखने का मौका देती है, इसलिए आवश्यक है बच्चे के साथ नियमित रूप से बातचीत की आदत विकसित करें। उसके व्यवहार को बारीकी से देखें एवं ध्यान दें। जब वह पीयर प्रेशर में हो तो उसे सही और गलत को समझने में मदद करें। बच्चों को समय-समय पर समझाना कि दूसरों की नकल नहीं करनी चाहिए। बढ़ती (टीनेज) में बच्चों के मित्रों पर नज़र रखनी चाहिए एवं उनके परिवार का पता चले एवं कोई समस्या आने पर बातचीत से उसे सुलझाया जा सके। बच्चों में स्वतंत्र चुनाव, निर्णय लेना आदि विकसित करना चाहिए एवं माता-पिता को अपने सही मार्गदर्शन से उनके निर्णय, चुनाव और आत्मवश्विास को बढ़ाने में मदद करनी चाहिए। इससे बच्चे न केवल आत्मनिर्भर बनते हैं, अपितु निर्णय लेने से पहले उसके परिणामों के विषय में भी अवश्य सोचते हैं।
मनोवैज्ञानिक गैलेस के अनुसार- ‘किशोरों के संवेग प्राय: तीव्र, अनयिन्त्रि अभिव्यक्ति वाले और विवेक शून्य तो होते हैं, लेकिन उनके संवेगात्मक व्यवहार में प्राय: प्रतिवर्ष सुधार होता जाता है। उदाहरण स्वरूप चौदह वर्ष वाले किशोर प्राय: चिड़चिड़े होते हैं। एक वर्ष के बाद किशोर भावों पर नियंत्रण करने योग्य हो जाते हैं और फिर उदास भी होने लगते हैं।
मनोवैज्ञानिक विराजिनिया एम. एकसलिन के अनुसार- ‘जब एक बच्चे से जबरदस्ती की जाती है कि वह स्वयं को योग्य सिद्ध करे तो परिणाम भयंकर होते हैं। बच्चे को प्रेम, अपनेपन और समझने की आवश्यकता होती है। वह टूट जाता है, जब उसे संदेह से देखा जाता है और लगातार उसकी परीक्षा ली जाती है।
भारतीय मनोवैज्ञानिक अभिजीत नासकर कहते हैं कि ‘परीक्षा में पास होने के लिए वह जो शिक्षा विद्यालय में ले रहे हैं, लेने दीजिए, किंतु घर में उसके विचारों को व्यापक बनाने के लिए ऐसी शिक्षा दीजिए, जिससे वह गलत पूर्वग्रहों से निकले और संसार का सामना कर सके। उन्हें अपने व्यक्तित्व और अस्तित्व को निर्मित करने और संभाल कर रखने के लिए जि़म्मेदार बनाइए।
