बुलंद हौंसलों की मिसाल

सिया तायल (समाजसेविका)

आज के इस दौर में जिस तरह हर शख्स तालीम के बगैर अधूरा है, ठीक उसी तरह हमारी जि़ंदगी भी नेकियों के बगैर बेमानी है। खुद का मुस्तकबिल, माता-पिता की सेवा और खानदान से लगाव आम बात है। मगर क्या ऐसा रिश्ता हम अपने समाज, प्रकृति या फिर उन लोगों से कायम कर पाते हैं, जो हमारे अपने नहीं हैं, शायद नहीं। मगर ऐसी ही एक शख्सियत है- सिया तायल, जो अपनी जि़ंदगी समाज की बेहतरी, प्रकृति की देखरेख और दूसरों की चाहतों को पूरा करने में गुज़ार रही हैं। पंद्रह साल की नन्ही सी उम्र में स्कूली तालीम हासिल करने के साथ-साथ हिसार की सिया ने अपने मुस्तकबिल को संवारने की बजाए, जरूरतमंदों की मदद करना जरूरी समझा और इसी को अपनी जि़ंदगी का मकसद बना लिया। सिया वेस्ट कपड़े एकत्र कर उनसे बैग बनवाने का काम करती हैं। दरअसल, सिया का मकसद प्रकृति को प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचाना तो है ही, साथ ही जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार दिलाना भी है। इन बैग्स की खासियत यह है कि कपड़े से तैयार होने के साथ-साथ इनकी कीमत महज सौ रुपये रखी गई है। सिया अब तक दो हज़ार से ज्यादा वेस्ट कपड़े से तैयार बैग बेच चुकी हैं। अपने समाजसेवी कार्यों की बदौलत सिया को अब तक इंडिया वालेंटियर नेटवर्क अंडर 18 वीमेन कैटेगरी और स्टूडेंट इनोवेटर अवार्ड समेत कई इनामात से नवाज़ा जा चुका है। पढ़ाई के साथ-साथ समाज सेवा को पूरा वक्त देने वाली सिया को केवल भारत में नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब सम्मान हासिल हुआ है। उनके प्रयासों के मद्देनजर युनाइटेड नेशंस जिनेवा हेडक्वार्ट्स में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया जा चुका है। जेनेवा में भी सिया तायल के पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों की खूब सराहना की गई। पर्यावरण संरक्षण हो या औरतों को खुद मुख्तार बनाने की बात हो, हर काम में सिया बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। सिया तकरीबन छ: सालों से समाज सेवी कार्यों में जुटी हुई हैं। उनके इस नेक काम में उन्हें अपने परिवार वालों का भी पूरा सहयोग हासिल हुआ है।

कौन कहता है हर मकाम हासिल हो नहीं सकता हिम्मत तो करके देखो एक बार

अमृतपाल कौर (कॉमनवेल्थ कराटे चैम्पियन-2015)

जज्बातों से ख्यालों तक का सफर आसान होता है, मगर ख्यालों को हकीकत की शक्ल देना शायद उतना आसान नहीं होता, मगर कुछ कर गुज़रने के जज्बे, बेमिसाल हौसले और आगे बढ़ने की चाहत में अमृतपाल कौर आज उस मकाम पर हैं, जहां पहुंच पाना सबके लिए मुमकिन नहीं है। अपने शौक को अपने जुनून की शक्ल देना और हर मकाम पर खुद को साबित करना अमृतपाल कौर की फितरत है। वो जिस काम को करने की ठान लेती हैं, उसे पूरी शिद्दत के साथ अंजाम तक पहुंचाती हैं। शुरुआत से ही स्पोर्टस की तरफ उनका खासा रुझान रहा है। नन्ही उम्र में अमृतपाल बैडङ्क्षमटन सीखना चाहती थीं। मगर बैडमिंटन सीखने के दौरान उनका मन धीरे-धीरे कराटे सीखने की ओर मुड़ने लगा। हालांकि सेल्फ डिफेंस के हिसाब से उन्होंने कराटे की ट्रेनिंग लेनी शुरू की थी। मगर देखते ही देखते उन्होंने पहले इसे अपना शौक बनाया और फिर वो देश के लिए खेलीं और कई इनामात को अपने नाम किया। शुरुआती दिनों में स्कूली पढ़ाई के साथ-साथ कराटे की तालीम हासिल कर रहीं अमृतपाल को पहले पहल अपने पेरेंट्स का पूर्ण सहयोग हासिल नहीं हुआ था। मगर उनके जुनून ने और भरपूर आत्मविश्वास ने उनके परिजनों को कराटे के प्रति उनके जज्बे से वाकिफ करवाया और फिर उन्होंने अमृतपाल का उनकी मंजिल तक पहुंचने में पूरा साथ दिया। अमृतपाल कौर ने अपने हुनर की बदौलत कॉमनवेल्थ कराटे चैम्पियनशिप (2015) में स्वर्ण पदक जीता और पिछले तीन वर्षों से लगातार दक्षिण एशियाई चैंपियनशिप में शीर्ष स्थान पर चल रही हैं। अमृतपाल कौर, अभी भी ज्यादा से ज्यादा प्रतियोगिताओं में भाग लेने की ख्वाहिश रखती हैं और आगे प्रशिक्षण के लिए तुर्की जाना चाहती हैं। अमृतपाल कौर के लिए जिनका दिन सुबह 5 बजे शुरू होता है- ध्यान, तीन घंटे का प्रशिक्षण, ब्रेक और पांच घंटे का प्रशिक्षण फिर से उनके लिए कराटे उनका जुनून है। अपने स्कूल के वर्षों के दौरान टॉपर रही और स्कॉलरशिप पा चुकीं अमृतपाल कौर ने जब राजधानी के जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज में इंग्लिश ऑनर्स कोर्स में दाखिला लिया, तब तक युवा खिलाड़ी राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी योग्यता साबित कर चुकी थीं, जिसकी बदौलत दिल्ली सरकार ने उसे छात्रवृत्ति दी। जज्बे और हौसलों से भरपूर अमृतपाल का जीवन युवाओं के लिए किसी मार्गदर्शन से कम नहीं है।

चहुंमुखी प्रतिभा की धनी 

सुनीता बुद्धिराजा (समाजसेविका एवं लेखिका)

समाज में खुद की पहचान कायम करने के लिए हम हर कोशिश करते हैं। मगर बात जब हमारी सभ्यता, संस्कृति और राति-रिवाजों को महफूज़ रखने की आती है, तो केवल मुट्ठी भर लोग ही ऐसे हैं, जो खुलकर सामने आते हैं। उन्हीं में से एक है सुनीता बुद्धिराजा। एक हंसमुख, खुशमिज़ाज और कला की सच्ची कदरदान हैं सुनीता जी। इसमें कोई दोराय नहीं कि भारतीय संस्कृति की झलक पेश करती साड़ी दिन-ब-दिन अपनी पहचान खोती जा रही है। महिलाएं कामकाजी होने के कारण खुद को साड़ी की बजाय वेस्टर्न आउटफिट्स और सलवार सूट में कम्फर्टेबल महसूस करने लगी हैं। ऐसे में साड़ी की डिमांड दिनों दिन कम हो रही है, जिसका असर उन बुनकरों की रोज़ी रोटी पर पड़ रहा है, जो काम कम होने के कारण इस पेशे को छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इन्हीं पहलुओं को ध्यान में रखते हुए और समाज को एक नई दिशा प्रदान करने की जुगत में तकरीबन छ: साल पहले सुनीता जी ने ‘सिक्स यार्ड्स ऐंड 365’ नामक फेसबुक कैम्पेन शुरू किया। केवल तीन सदस्यों से आरंभ हुए इस कैम्पेन में आज दुनिया भर की 32,000 से अधिक महिला सदस्य हैं, जिसमें नामी कलाकार, लेखिका, थिएटरकर्मी, शिक्षाविद, उद्यमी, डॉक्टर, एनजीओकर्मी, मीडियाकर्मी और कुशल गृहणी तक सभी वर्गों की महिलाएं हैं। ये सारी महिलाएं हैंडलूम कॉटन साड़ी पहनने पर जोर देती हैं और रोज नए-नए लुक में अपनी फोटोज पोस्ट करती हैं। इसी मुहिम के तहत वे कई सेमिनार और मीटिंग्स भी अरेंज करते हैं, जिसमें विभिन्न प्रतियोगिताओं के तहत महिलाओं को सर्टिफिकेट भी दिए जाते हैं। इस तरह के सेमिनार का मकसद ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को जागरूक करना और बुनकरों की भी हर संभव मदद करना है। इसके अलावा इन्होंने बुनकरों की मदद के मद्देनजर एक ट्रस्ट की भी बुनियाद रखी है। साथ ही साड़ी की बढ़ रही डिमांड के कारण सुनीता जी ने ऑनलाईन स्टोर की भी शुरुआत की है। इन कार्यों के साथ-साथ सुनीता जी लेखन के क्षेत्र में भी अपनी कला का लोहा मनवा चुकी हैं। शॉ वैलेस, यूबी ग्रुप, नागार्जुन ग्रुप और आजोन ग्रुप में बतौर कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन हैड के रूप में नेतृत्व कर चुकीं सुनीता जी एक सफल लेखिका भी हैं। उनके सात वर्षों के परिश्रम के उपरांत 534 पेज की किताब ‘रसराज पंडित जसराज’ तैयार हुई, जिसे 2018 में वाणी प्रकाशन ने प्रकाशित किया। इसके अलावा उन्होंने कई अन्य किताबें भी लिखीं, जो खूब पसंद की गईं। लेखन और समाज सेवी कार्यों के तहत सुनीता जी को कई पुरस्कार मिल चुके हैं, जिनमें शिरोमणि पुरस्कार, शिरोमणि महिला पुरस्कार, सुपर स्टार अवॉर्ड, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पुरस्कार, पीआर पर्सन आफ द ईयर अवार्ड, ग्लोबल वूमन एचीवर अवॉर्ड शामिल हैं। समाचार पत्र अमर उजाला द्वारा उन्हें वर्ष 2018 के लिये ‘शब्द सम्मान’ से नवाजा जा चुका है।

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बुलंद हौंसलों की मिसाल

सिया तायल (समाजसेविका)

आज के इस दौर में जिस तरह हर शख्स तालीम के बगैर अधूरा है, ठीक उसी तरह हमारी जि़ंदगी भी नेकियों के बगैर बेमानी है। खुद का मुस्तकबिल, माता-पिता की सेवा और खानदान से लगाव आम बात है। मगर क्या ऐसा रिश्ता हम अपने समाज, प्रकृति या फिर उन लोगों से कायम कर पाते हैं, जो हमारे अपने नहीं हैं, शायद नहीं। मगर ऐसी ही एक शख्सियत है- सिया तायल, जो अपनी जि़ंदगी समाज की बेहतरी, प्रकृति की देखरेख और दूसरों की चाहतों को पूरा करने में गुज़ार रही हैं। पंद्रह साल की नन्ही सी उम्र में स्कूली तालीम हासिल करने के साथ-साथ हिसार की सिया ने अपने मुस्तकबिल को संवारने की बजाए, जरूरतमंदों की मदद करना जरूरी समझा और इसी को अपनी जि़ंदगी का मकसद बना लिया। सिया वेस्ट कपड़े एकत्र कर उनसे बैग बनवाने का काम करती हैं। दरअसल, सिया का मकसद प्रकृति को प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचाना तो है ही, साथ ही जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार दिलाना भी है। इन बैग्स की खासियत यह है कि कपड़े से तैयार होने के साथ-साथ इनकी कीमत महज सौ रुपये रखी गई है। सिया अब तक दो हज़ार से ज्यादा वेस्ट कपड़े से तैयार बैग बेच चुकी हैं। अपने समाजसेवी कार्यों की बदौलत सिया को अब तक इंडिया वालेंटियर नेटवर्क अंडर 18 वीमेन कैटेगरी और स्टूडेंट इनोवेटर अवार्ड समेत कई इनामात से नवाज़ा जा चुका है। पढ़ाई के साथ-साथ समाज सेवा को पूरा वक्त देने वाली सिया को केवल भारत में नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब सम्मान हासिल हुआ है। उनके प्रयासों के मद्देनजर युनाइटेड नेशंस जिनेवा हेडक्वार्ट्स में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया जा चुका है। जेनेवा में भी सिया तायल के पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों की खूब सराहना की गई। पर्यावरण संरक्षण हो या औरतों को खुद मुख्तार बनाने की बात हो, हर काम में सिया बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। सिया तकरीबन छ: सालों से समाज सेवी कार्यों में जुटी हुई हैं। उनके इस नेक काम में उन्हें अपने परिवार वालों का भी पूरा सहयोग हासिल हुआ है।

कौन कहता है हर मकाम हासिल हो नहीं सकता हिम्मत तो करके देखो एक बार

अमृतपाल कौर (कॉमनवेल्थ कराटे चैम्पियन-2015)

जज्बातों से ख्यालों तक का सफर आसान होता है, मगर ख्यालों को हकीकत की शक्ल देना शायद उतना आसान नहीं होता, मगर कुछ कर गुज़रने के जज्बे, बेमिसाल हौसले और आगे बढ़ने की चाहत में अमृतपाल कौर आज उस मकाम पर हैं, जहां पहुंच पाना सबके लिए मुमकिन नहीं है। अपने शौक को अपने जुनून की शक्ल देना और हर मकाम पर खुद को साबित करना अमृतपाल कौर की फितरत है। वो जिस काम को करने की ठान लेती हैं, उसे पूरी शिद्दत के साथ अंजाम तक पहुंचाती हैं। शुरुआत से ही स्पोर्टस की तरफ उनका खासा रुझान रहा है। नन्ही उम्र में अमृतपाल बैडङ्क्षमटन सीखना चाहती थीं। मगर बैडमिंटन सीखने के दौरान उनका मन धीरे-धीरे कराटे सीखने की ओर मुड़ने लगा। हालांकि सेल्फ डिफेंस के हिसाब से उन्होंने कराटे की ट्रेनिंग लेनी शुरू की थी। मगर देखते ही देखते उन्होंने पहले इसे अपना शौक बनाया और फिर वो देश के लिए खेलीं और कई इनामात को अपने नाम किया। शुरुआती दिनों में स्कूली पढ़ाई के साथ-साथ कराटे की तालीम हासिल कर रहीं अमृतपाल को पहले पहल अपने पेरेंट्स का पूर्ण सहयोग हासिल नहीं हुआ था। मगर उनके जुनून ने और भरपूर आत्मविश्वास ने उनके परिजनों को कराटे के प्रति उनके जज्बे से वाकिफ करवाया और फिर उन्होंने अमृतपाल का उनकी मंजिल तक पहुंचने में पूरा साथ दिया। अमृतपाल कौर ने अपने हुनर की बदौलत कॉमनवेल्थ कराटे चैम्पियनशिप (2015) में स्वर्ण पदक जीता और पिछले तीन वर्षों से लगातार दक्षिण एशियाई चैंपियनशिप में शीर्ष स्थान पर चल रही हैं। अमृतपाल कौर, अभी भी ज्यादा से ज्यादा प्रतियोगिताओं में भाग लेने की ख्वाहिश रखती हैं और आगे प्रशिक्षण के लिए तुर्की जाना चाहती हैं। अमृतपाल कौर के लिए जिनका दिन सुबह 5 बजे शुरू होता है- ध्यान, तीन घंटे का प्रशिक्षण, ब्रेक और पांच घंटे का प्रशिक्षण फिर से उनके लिए कराटे उनका जुनून है। अपने स्कूल के वर्षों के दौरान टॉपर रही और स्कॉलरशिप पा चुकीं अमृतपाल कौर ने जब राजधानी के जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज में इंग्लिश ऑनर्स कोर्स में दाखिला लिया, तब तक युवा खिलाड़ी राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी योग्यता साबित कर चुकी थीं, जिसकी बदौलत दिल्ली सरकार ने उसे छात्रवृत्ति दी। जज्बे और हौसलों से भरपूर अमृतपाल का जीवन युवाओं के लिए किसी मार्गदर्शन से कम नहीं है।

चहुंमुखी प्रतिभा की धनी 

सुनीता बुद्धिराजा (समाजसेविका एवं लेखिका)

समाज में खुद की पहचान कायम करने के लिए हम हर कोशिश करते हैं। मगर बात जब हमारी सभ्यता, संस्कृति और राति-रिवाजों को महफूज़ रखने की आती है, तो केवल मुट्ठी भर लोग ही ऐसे हैं, जो खुलकर सामने आते हैं। उन्हीं में से एक है सुनीता बुद्धिराजा। एक हंसमुख, खुशमिज़ाज और कला की सच्ची कदरदान हैं सुनीता जी। इसमें कोई दोराय नहीं कि भारतीय संस्कृति की झलक पेश करती साड़ी दिन-ब-दिन अपनी पहचान खोती जा रही है। महिलाएं कामकाजी होने के कारण खुद को साड़ी की बजाय वेस्टर्न आउटफिट्स और सलवार सूट में कम्फर्टेबल महसूस करने लगी हैं। ऐसे में साड़ी की डिमांड दिनों दिन कम हो रही है, जिसका असर उन बुनकरों की रोज़ी रोटी पर पड़ रहा है, जो काम कम होने के कारण इस पेशे को छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इन्हीं पहलुओं को ध्यान में रखते हुए और समाज को एक नई दिशा प्रदान करने की जुगत में तकरीबन छ: साल पहले सुनीता जी ने ‘सिक्स यार्ड्स ऐंड 365’ नामक फेसबुक कैम्पेन शुरू किया। केवल तीन सदस्यों से आरंभ हुए इस कैम्पेन में आज दुनिया भर की 32,000 से अधिक महिला सदस्य हैं, जिसमें नामी कलाकार, लेखिका, थिएटरकर्मी, शिक्षाविद, उद्यमी, डॉक्टर, एनजीओकर्मी, मीडियाकर्मी और कुशल गृहणी तक सभी वर्गों की महिलाएं हैं। ये सारी महिलाएं हैंडलूम कॉटन साड़ी पहनने पर जोर देती हैं और रोज नए-नए लुक में अपनी फोटोज पोस्ट करती हैं। इसी मुहिम के तहत वे कई सेमिनार और मीटिंग्स भी अरेंज करते हैं, जिसमें विभिन्न प्रतियोगिताओं के तहत महिलाओं को सर्टिफिकेट भी दिए जाते हैं। इस तरह के सेमिनार का मकसद ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को जागरूक करना और बुनकरों की भी हर संभव मदद करना है। इसके अलावा इन्होंने बुनकरों की मदद के मद्देनजर एक ट्रस्ट की भी बुनियाद रखी है। साथ ही साड़ी की बढ़ रही डिमांड के कारण सुनीता जी ने ऑनलाईन स्टोर की भी शुरुआत की है। इन कार्यों के साथ-साथ सुनीता जी लेखन के क्षेत्र में भी अपनी कला का लोहा मनवा चुकी हैं। शॉ वैलेस, यूबी ग्रुप, नागार्जुन ग्रुप और आजोन ग्रुप में बतौर कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन हैड के रूप में नेतृत्व कर चुकीं सुनीता जी एक सफल लेखिका भी हैं। उनके सात वर्षों के परिश्रम के उपरांत 534 पेज की किताब ‘रसराज पंडित जसराज’ तैयार हुई, जिसे 2018 में वाणी प्रकाशन ने प्रकाशित किया। इसके अलावा उन्होंने कई अन्य किताबें भी लिखीं, जो खूब पसंद की गईं। लेखन और समाज सेवी कार्यों के तहत सुनीता जी को कई पुरस्कार मिल चुके हैं, जिनमें शिरोमणि पुरस्कार, शिरोमणि महिला पुरस्कार, सुपर स्टार अवॉर्ड, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पुरस्कार, पीआर पर्सन आफ द ईयर अवार्ड, ग्लोबल वूमन एचीवर अवॉर्ड शामिल हैं। समाचार पत्र अमर उजाला द्वारा उन्हें वर्ष 2018 के लिये ‘शब्द सम्मान’ से नवाजा जा चुका है।

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सिया तायल (समाजसेविका)

आज के इस दौर में जिस तरह हर शख्स तालीम के बगैर अधूरा है, ठीक उसी तरह हमारी जि़ंदगी भी नेकियों के बगैर बेमानी है। खुद का मुस्तकबिल, माता-पिता की सेवा और खानदान से लगाव आम बात है। मगर क्या ऐसा रिश्ता हम अपने समाज, प्रकृति या फिर उन लोगों से कायम कर पाते हैं, जो हमारे अपने नहीं हैं, शायद नहीं। मगर ऐसी ही एक शख्सियत है- सिया तायल, जो अपनी जि़ंदगी समाज की बेहतरी, प्रकृति की देखरेख और दूसरों की चाहतों को पूरा करने में गुज़ार रही हैं। पंद्रह साल की नन्ही सी उम्र में स्कूली तालीम हासिल करने के साथ-साथ हिसार की सिया ने अपने मुस्तकबिल को संवारने की बजाए, जरूरतमंदों की मदद करना जरूरी समझा और इसी को अपनी जि़ंदगी का मकसद बना लिया। सिया वेस्ट कपड़े एकत्र कर उनसे बैग बनवाने का काम करती हैं। दरअसल, सिया का मकसद प्रकृति को प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचाना तो है ही, साथ ही जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार दिलाना भी है। इन बैग्स की खासियत यह है कि कपड़े से तैयार होने के साथ-साथ इनकी कीमत महज सौ रुपये रखी गई है। सिया अब तक दो हज़ार से ज्यादा वेस्ट कपड़े से तैयार बैग बेच चुकी हैं। अपने समाजसेवी कार्यों की बदौलत सिया को अब तक इंडिया वालेंटियर नेटवर्क अंडर 18 वीमेन कैटेगरी और स्टूडेंट इनोवेटर अवार्ड समेत कई इनामात से नवाज़ा जा चुका है। पढ़ाई के साथ-साथ समाज सेवा को पूरा वक्त देने वाली सिया को केवल भारत में नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब सम्मान हासिल हुआ है। उनके प्रयासों के मद्देनजर युनाइटेड नेशंस जिनेवा हेडक्वार्ट्स में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया जा चुका है। जेनेवा में भी सिया तायल के पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों की खूब सराहना की गई। पर्यावरण संरक्षण हो या औरतों को खुद मुख्तार बनाने की बात हो, हर काम में सिया बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। सिया तकरीबन छ: सालों से समाज सेवी कार्यों में जुटी हुई हैं। उनके इस नेक काम में उन्हें अपने परिवार वालों का भी पूरा सहयोग हासिल हुआ है।

कौन कहता है हर मकाम हासिल हो नहीं सकता हिम्मत तो करके देखो एक बार

अमृतपाल कौर (कॉमनवेल्थ कराटे चैम्पियन-2015)

जज्बातों से ख्यालों तक का सफर आसान होता है, मगर ख्यालों को हकीकत की शक्ल देना शायद उतना आसान नहीं होता, मगर कुछ कर गुज़रने के जज्बे, बेमिसाल हौसले और आगे बढ़ने की चाहत में अमृतपाल कौर आज उस मकाम पर हैं, जहां पहुंच पाना सबके लिए मुमकिन नहीं है। अपने शौक को अपने जुनून की शक्ल देना और हर मकाम पर खुद को साबित करना अमृतपाल कौर की फितरत है। वो जिस काम को करने की ठान लेती हैं, उसे पूरी शिद्दत के साथ अंजाम तक पहुंचाती हैं। शुरुआत से ही स्पोर्टस की तरफ उनका खासा रुझान रहा है। नन्ही उम्र में अमृतपाल बैडङ्क्षमटन सीखना चाहती थीं। मगर बैडमिंटन सीखने के दौरान उनका मन धीरे-धीरे कराटे सीखने की ओर मुड़ने लगा। हालांकि सेल्फ डिफेंस के हिसाब से उन्होंने कराटे की ट्रेनिंग लेनी शुरू की थी। मगर देखते ही देखते उन्होंने पहले इसे अपना शौक बनाया और फिर वो देश के लिए खेलीं और कई इनामात को अपने नाम किया। शुरुआती दिनों में स्कूली पढ़ाई के साथ-साथ कराटे की तालीम हासिल कर रहीं अमृतपाल को पहले पहल अपने पेरेंट्स का पूर्ण सहयोग हासिल नहीं हुआ था। मगर उनके जुनून ने और भरपूर आत्मविश्वास ने उनके परिजनों को कराटे के प्रति उनके जज्बे से वाकिफ करवाया और फिर उन्होंने अमृतपाल का उनकी मंजिल तक पहुंचने में पूरा साथ दिया। अमृतपाल कौर ने अपने हुनर की बदौलत कॉमनवेल्थ कराटे चैम्पियनशिप (2015) में स्वर्ण पदक जीता और पिछले तीन वर्षों से लगातार दक्षिण एशियाई चैंपियनशिप में शीर्ष स्थान पर चल रही हैं। अमृतपाल कौर, अभी भी ज्यादा से ज्यादा प्रतियोगिताओं में भाग लेने की ख्वाहिश रखती हैं और आगे प्रशिक्षण के लिए तुर्की जाना चाहती हैं। अमृतपाल कौर के लिए जिनका दिन सुबह 5 बजे शुरू होता है- ध्यान, तीन घंटे का प्रशिक्षण, ब्रेक और पांच घंटे का प्रशिक्षण फिर से उनके लिए कराटे उनका जुनून है। अपने स्कूल के वर्षों के दौरान टॉपर रही और स्कॉलरशिप पा चुकीं अमृतपाल कौर ने जब राजधानी के जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज में इंग्लिश ऑनर्स कोर्स में दाखिला लिया, तब तक युवा खिलाड़ी राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी योग्यता साबित कर चुकी थीं, जिसकी बदौलत दिल्ली सरकार ने उसे छात्रवृत्ति दी। जज्बे और हौसलों से भरपूर अमृतपाल का जीवन युवाओं के लिए किसी मार्गदर्शन से कम नहीं है।

चहुंमुखी प्रतिभा की धनी 

सुनीता बुद्धिराजा (समाजसेविका एवं लेखिका)

समाज में खुद की पहचान कायम करने के लिए हम हर कोशिश करते हैं। मगर बात जब हमारी सभ्यता, संस्कृति और राति-रिवाजों को महफूज़ रखने की आती है, तो केवल मुट्ठी भर लोग ही ऐसे हैं, जो खुलकर सामने आते हैं। उन्हीं में से एक है सुनीता बुद्धिराजा। एक हंसमुख, खुशमिज़ाज और कला की सच्ची कदरदान हैं सुनीता जी। इसमें कोई दोराय नहीं कि भारतीय संस्कृति की झलक पेश करती साड़ी दिन-ब-दिन अपनी पहचान खोती जा रही है। महिलाएं कामकाजी होने के कारण खुद को साड़ी की बजाय वेस्टर्न आउटफिट्स और सलवार सूट में कम्फर्टेबल महसूस करने लगी हैं। ऐसे में साड़ी की डिमांड दिनों दिन कम हो रही है, जिसका असर उन बुनकरों की रोज़ी रोटी पर पड़ रहा है, जो काम कम होने के कारण इस पेशे को छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इन्हीं पहलुओं को ध्यान में रखते हुए और समाज को एक नई दिशा प्रदान करने की जुगत में तकरीबन छ: साल पहले सुनीता जी ने ‘सिक्स यार्ड्स ऐंड 365’ नामक फेसबुक कैम्पेन शुरू किया। केवल तीन सदस्यों से आरंभ हुए इस कैम्पेन में आज दुनिया भर की 32,000 से अधिक महिला सदस्य हैं, जिसमें नामी कलाकार, लेखिका, थिएटरकर्मी, शिक्षाविद, उद्यमी, डॉक्टर, एनजीओकर्मी, मीडियाकर्मी और कुशल गृहणी तक सभी वर्गों की महिलाएं हैं। ये सारी महिलाएं हैंडलूम कॉटन साड़ी पहनने पर जोर देती हैं और रोज नए-नए लुक में अपनी फोटोज पोस्ट करती हैं। इसी मुहिम के तहत वे कई सेमिनार और मीटिंग्स भी अरेंज करते हैं, जिसमें विभिन्न प्रतियोगिताओं के तहत महिलाओं को सर्टिफिकेट भी दिए जाते हैं। इस तरह के सेमिनार का मकसद ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को जागरूक करना और बुनकरों की भी हर संभव मदद करना है। इसके अलावा इन्होंने बुनकरों की मदद के मद्देनजर एक ट्रस्ट की भी बुनियाद रखी है। साथ ही साड़ी की बढ़ रही डिमांड के कारण सुनीता जी ने ऑनलाईन स्टोर की भी शुरुआत की है। इन कार्यों के साथ-साथ सुनीता जी लेखन के क्षेत्र में भी अपनी कला का लोहा मनवा चुकी हैं। शॉ वैलेस, यूबी ग्रुप, नागार्जुन ग्रुप और आजोन ग्रुप में बतौर कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन हैड के रूप में नेतृत्व कर चुकीं सुनीता जी एक सफल लेखिका भी हैं। उनके सात वर्षों के परिश्रम के उपरांत 534 पेज की किताब ‘रसराज पंडित जसराज’ तैयार हुई, जिसे 2018 में वाणी प्रकाशन ने प्रकाशित किया। इसके अलावा उन्होंने कई अन्य किताबें भी लिखीं, जो खूब पसंद की गईं। लेखन और समाज सेवी कार्यों के तहत सुनीता जी को कई पुरस्कार मिल चुके हैं, जिनमें शिरोमणि पुरस्कार, शिरोमणि महिला पुरस्कार, सुपर स्टार अवॉर्ड, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पुरस्कार, पीआर पर्सन आफ द ईयर अवार्ड, ग्लोबल वूमन एचीवर अवॉर्ड शामिल हैं। समाचार पत्र अमर उजाला द्वारा उन्हें वर्ष 2018 के लिये ‘शब्द सम्मान’ से नवाजा जा चुका है।

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