Jeena Sikh Liya
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Motivational Story: राजा धुमसेन ओर रानी तारामती के वैभव की चर्चा दूर-दूर के राज्यों तक फैली हुई थी लेकिन राजा धुमसेन बहुत ही क्रोधी ओर लालची स्वभाव का था।
उनके दुःख का एक ही कारण था कि उसे कोई संतान नही थी वह संतान की चाह में बहुत ही व्याकुल रहता।
ना जाने कहाँ-कहाँ मंदिरों में जा-जा कर मनंते मांगता।
रानी की व्याकुलता उससे देखी न जाती।
एक दिन वह दोनों दुर्गा मन्दिर से लौट रहे थें तभी रानी की नज़र एक भिखारन औरत पर पड़ी उसके साथ उसकी पांच साल की बेटी भी थी।
रानी उस भिखारन लड़की को देखकर राजा से बोली-“क्यों ना हम किसी बच्चे को गोद ले ले।
इससे हमें पुत्र प्राप्ति हो जायेगी।
राजा को रानी का विचार पसंद आया, बोले- “लेकिन हम बच्चा लायेंगे कहां से इस पर रानी ने इशारा करते हुए उस लड़की की ओर संकेत किया।राजा की नज़र जब उस लड़की पर पड़ी तो राजा उसे देखकर बहुत प्रसन्न होकर वह लड़की मैली,कुचैली थी लेकिन नैन नक्श उसके किसी राजकुमारी से कम नहीं थे वह उस औरत के पास गया कहने लगा- ” ए,औरत.. तुम भीख मांगकर अपना जीवन यापन करती हो,इस पुत्री की देखभाल करने में तुमको बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता होगा, तुम अपनी बेटी हमें दे दो।
हम इसकी अच्छे से देख भाल करेंगे।
राजा की बात सुनकर भिखारन घबरा गई।
बोली-“मालिक मेरे पास तो मेरी बेटी के सिवाय कुछ नहीं इसे में आपको दे दूगी तो जीवित नहीं रह पाऊंगी।
राजा ने उसकी बात सुनी तो दहाड़ उठा।
कहने लगा “हम इस नगर के राजा है,हम जो चाहे कर सकते है।
और जोरजबरदस्ती से सैनिकों द्वारा उस लडक़ी को उठाकर रानी के साथ पालकी में बैठकर महल ले आया।
वह लड़की अपनी माँ की याद में दिन- रात आंसू बहा रही थी।
समय बीतता गया अब वह राजकुमारी की तरह महल में रहने लगी।
लोग आते उसे देखते उसे बड़ा अजीब लगता सभी सुख-सुविधाओं के होते हुए भी वह सुखी नहीं थी।
एक दिन अचानक बाग के पिछवाड़े उसे कोयल की कुकू सुनाई दी।
चारो ओर बुलन्द दरवाजे पहरेदारों का पहरा उसे वह कुक अपनी ओर आकर्षित कर रही थी वह बाग में टहलने लगी उसे फिर वही कुक सुनाई दी।
उसने एक बड़े से पेड़ पर चढ़कर आवाज की दिशा में देखा तो उसे बाहर एक पड़े के पीछे उसकी भिखारन माँ दिखाई दी. वह ख़ुशी से झूम उठी।
वह बाग की दीवार फांदकर भाग निकली।
माँ के गले लग वह खूब फूटफूटकर रोई अपने सारे आभूषण वहीं फेंक माँ के साथ भाग गई।
राजा धुमसेन को जब यह सूचना मिली तो वह आग बबूला हो उठा।और नगर में ढिंढोरा पिटवाया की जो कोई मेरी दत्तक पुत्री को वापस लाकर देगा उसे मुँह माँगा ईनाम दिया जाएगा।
इस बात को सुन रानी विलाप करने लगी।वह राजा से जिद्द करने लगी कि हमें उसी मंदिर चलना चाहिए।
राजा रथ पर सवार हो मंदिर की ओर चल पड़ा।उसने देखा कि वह लडकी अपनी माँ के साथ बैठ भीख मांग रही थी।
राजा ने उसे अपने साथ चलने को कहां-” वह रोने लगी।
रोने की आवाज सुनकर मंदिर के पुजारी जी बाहर आए।
जब उन्हें सारा वृतांत पता चला तो वह उससे पूछ बैठे।
“बेटा तुन्हें इतना ऐश्वय ओर सुख का खजना मिल रहा है,तो फिर.. तुम क्यों जाना नहीं चाहती….?,
इस पर वह बोली-“मेरे सुख का खजाना ऐश्वय ओर सुख नहीं..!
“मेरे सुख का खजना तो मेरी माँ है।यदि मेरी माँ को भी महल ले जाया जाए तो मैं ख़ुशी से चली जाऊँगी।रानी ने जब यह बात सुनी तो वह खुश होते हुए बोली-“मुझे मंजूर है।राजा क्रोध से बोला-“हम तुम्हारी माँ को नहीं ले जा सकते।
लेकिन रानी की जिद्द पर राजा धुमसेन को अपना क्रोध त्यागना पड़ा।
ओर वह उन दोनों को अपने साथ महल ले आया।
अब दोनों माँ बेटी बहुत खुश थी।उन्हें सुखी जीवन और रानी को उसके मातृत्व सुख का खजाना मिल गया था।