एक बार पैगम्बर मुहम्मद साहब तथा उनके दामाद हजरत अली- साथ-साथ जा रहे थे कि रास्ते में एक आदमी मिला, जिसकी हजरत अली से पुरानी दुश्मनी थी। वह हजरत अली को देखते ही गालियाँ देने लगा। कुछ देर तक तो हजरत अली उसके दुर्वाक्यों को सुनते रहे, किन्तु पश्चात् उन्होंने भी उसे गालियाँ देनी शुरू की। यह देख मुहम्मद साहब आगे बढ़ गये। हजरत अली ने देखा कि वे आगे निकल गये हैं।
अतः वह भी झगड़ना छोड़कर उनके पास जा पहुँचा। उसने उनसे कहा, “आप मुझे उस दुष्ट के पंजे में अकेले छोड़कर कैसे चले आए?” मुहम्मद साहब ने जवाब दिया, “सुनो अली, जब वह तुम्हें गालियाँ दे रहा था और तुम चुप थे, तो मैंने देखा कि दस फरिश्ते तुम्हारी रक्षा कर रहे थे और उसका जवाब देते थे। किन्तु जब तुम भी गालियों पर उतर आये, तो वे सब फरिश्ते एक-एक कर हट गये, फिर भला मैं क्यों ठहरता? याद रखो, मनसा वाचा कर्मणा किसी के भी चित्त को दुःख नहीं देना चाहिए।
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