इस्लाम धर्म के पैगम्बर हजरत मुहम्मद एक बार एक बगीचे में गये। वहाँ बंधा हुआ था एक ऊँट। जैसे ही उसने पैगम्बर को देखा, वह अत्यन्त करुण स्वर में डराने लगा। उसकी आँखें बरसने लगी।
उसका वह करुण स्वर मुहम्मद साहब को कहीं गहरे छू गया। वह तुरन्त उसके पास पहुँचे। उसे पुचकारा। उसके सिर पर, गर्दन पर हाथ फेरा। उसे बार-बार सहलाया, थपथपाया। तब कहीं जाकर वह शान्त हुआ।
उसके बाद मुहम्मद साहब ने उसके मालिक को बुलवा भेजा। कहा, “यह ऊँट पशु है। बोल नहीं सकता। इसलिए क्या तुम इस पर अत्याचार करते ही रहोगे? अल्लाह से भी नहीं डरोगे? अल्लाह ने ही तो तुम्हें इसका मालिक बनाया है।”
ऊँट के मालिक ने पूछा, “पर मैंने इस पर क्या अत्याचार किया है?”
मुहम्मद साहब बोले, “इसने शिकायत की है कि तुम इससे जरूरत से ज्यादा काम लेते हो। इसे भूखा रखते हो। क्या तुम्हारे ऐसा करने से इसे दुःख नहीं होता? क्या इसके जिस्म में जान नहीं है, वैसे ही जैसे तुम्हारे जिस्म में है, मेरे जिस्म में है? तुमको पूरा खाना न मिले तो।” सुनकर मालिक ने सिर झुका लिया।
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