Mother’s Day Special: ‘मां’ केवल जन्मदात्री नहीं है बल्कि ‘मां’ निर्मात्री भी है। मां का ओहदा सभी धर्मों में सबसे ऊपर माना गया है। ‘मां वो है जिसके आगे देवता भी सिर झुकाते हैं। ‘मां वो है जिसके ममता के आंचल में सारा संसार समा सकता है। प्रस्तुत है मां महत्त्व को उजागर करता यह लेख।
इंसान की जिंदगी में बहुत अहमियत रखता है मां और मां का रिश्ता। इंसान की पैदाइश से पहले ही इस रिश्ते के मां-बच्चे के बीच तार जुड़े होते हैं। मां अपने लख्ते जिगर को अपनी कोख में नौ माह तक अपने रक्त से पालती-पोसती है, उसे बड़ा करती है। यही एकमात्र रिश्ता है जिसमें संतान और मां नौ माह तक एक शरीर दो जान बन जाते हैं। मां की अपनी औलाद के प्रति प्रेम, स्नेह, लगाव, जुड़ाव, ममता, त्याग सहित अनेकानेक गुणों और खूबियों के मद्देनजर ही दुनिया के तमाम बड़े और महत्त्वपूर्ण धर्मों ने मां को विशेष दर्जा और औहदा दिया है। विभिन्न धर्म ग्रंथों में मां की महिमा बताई गई है। दुनियावी रिश्ते में एकमात्र मां ही है जिसका उल्लेख विभिन्न धर्मग्रंथों में अन्य रिश्तों के मुकाबले कहीं अधिक और विस्तारित रूप से किया गया है।
मां के समान अन्य कोई देवता नहीं…..
वैदिक धर्म और भारतीय संस्कृति में नारी का गौरवपूर्ण वर्णन है। सभी शास्त्रों में माता
के रूप में नारी को अभिनन्दनीय बताया गया है।
वेद संहिताओं में ‘माता निर्माता भवति’ कहकर माता को जीवन निर्मात्री की उपाधि दी गई है। वेदों में पांच देवों की पूजा का विधान है, उनमें से चार देवता धरती के और पांचवां देवता देवाधिदेव परमेश्वर है। उन चार देवताओं में प्रथम स्थान माता का है। उपनिषद में लिखा है
‘मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव।’
‘कूर्म पुराण’ में है, ‘नास्ति मातृ समं दैवम’अर्थात् मां के समान अन्य कोई देवता नहीं है। ‘ऋग्वेद’ में परमेश्वर को माता और पिता कहा गया है- ‘त्वं हि न: पिता त्वं माता शत क्रतो बभूविथ। माता ही बच्चों में संस्कार डालती है। वही उन्हें सीधी राह दिखाती है। इसलिए माता को बच्चे की प्रथम गुरु कहा गया है। ‘मातृमान् पितृमान् आचार्यवान् पुरुषो वेद’ अर्थात् प्रथम गुरु माता, दूसरा गुरु पिता और तीसरा गुरु आचार्य है। अथर्ववेद में जन्मभूमि को भी मां कहा गया है। महाभारत में वेदव्यास ने तो माता
को भूमि से भी बड़ा बताया है- ‘माता गुरुतरा भूमे:।’
जन्नत मां के कदमों के नीचे है
कुरान और हदीस’ (जिसमें मोहम्मद के कथन और कर्म हैं) में कई जगह मां के बारे में बताया गया है और औलाद को बाखबर किया गया है कि वे अपनी वालिदा (मां) की सेवा बंदगी करते रहें।
अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल. फरमाते हैं-
‘जन्नत मां के कदमों के नीचे है अल्लाह ने अपनी किताब (कुरानपाक) में मां-बाप के मामले में इस तरह हुक्म दिया’तुम्हारे रब ने तुमको हुक्म दे दिया है कि तुम सिर्फ उसी की इबादत करो, और अपने मां-बाप के साथ अच्छा बर्ताव करो। अगर उनमें से एक या दोनो बुढ़ापे की उम्र में पहुंच
जाए तो तुम उनको उफ तक न कहो, और न उनको झिड़को। उनसे बड़े अदब के साथ बात किया करो। उनके सामने अजीजी के साथ मोहब्बत भरे अंदाज में झुके रहा करो और उनके लिए यूं दुआ करते रहा करो कि ऐ मेरे पालनहार तू मेरे मां-बाप पर ऐसे ही रहम फरमा जैसा कि उन्होंने बचपन में मुझे बड़ी मोहब्बत से पाला था।’
कुरान मां के दर्जे का एहसास इन्सान को इस तरह दिलाता है हमने इंसान को मां-बाप के हक मानने की ताकीद की है, खासतौर पर मां के हक की। उसकी मां उसको कमजोरी पर कमजोरी
बर्दाश्त करते हुए उठाए-उठाए फिरी’
(सूराह लुकमान) अल्लाह के रसूल हजरत मोहम्मद के इस फरमान से भी इस्लाम में
मां के दर्जे का एहसास नुमायां तौर पर नजर आता है।
‘एक मर्तबा एक शख्स ने हजरत मुहम्मद से मालूम किया कि ऐ अल्लाह के रसूल मेरे अच्छे बर्ताव का सबसे ज्यादा हकदार कौन है? हजरत मोहम्मद ने फरमाया कि तेरी मां। उसने कहा फिर कौन? पैगम्बर ने फिर फरमाया कि तेरी मां…..! उसने कहा फिर कौन पैगम्बर ने तीसरी बार फरमाया कि
तेरी मां। उसने कहा फिर कौन? मोहम्मद ने फरमाया तेरा बाप और फिर दर्जा बदर्जा तेरे करीबी लोग।’
एक ही सवाल के जवाब में भले बर्ताव के हकदार लोगों में पहले तीन मर्तबा मां को हकदार बताना यह जाहिर करता है कि इस्लाम में मां का दर्जा कितना ऊंचा रखा गया है।
एक मर्तबा एक शख्स ने हुजूर मोहम्मद सल. की खिदमत में आकर बयान किया कि हुजूर
मैंने अपनी बूढ़ी मां को अपने कंधों पर बिठाकर सात मर्तबा हज कराया है अब तो उसकी खिदमत का हक अदा हो गया होगा? मोहम्मद ने फरमाया कि अभी तो तुमने अपनी मां का उतना मुआवजा भी नहीं दिया जितना तुम्हारी मां ने तुम्हें गीले से उठाकर सूखे में लिटाया था। (हदीस)
मांओं ने बनाए महापुरुष
बाइबल औलाद को अपनी माता का आज्ञाकारी होने, उसके बताए मार्ग का अनुसरण करने और उन्हें दुख नहीं पहुंचाने की प्रेरणा देती है। बाइबल में आया है ‘जो अपने माता-पिता को कोसता है, उसका दीया बुझ जाता है और अंधकार हो जाता है।’
नीति वचन 20:20 (बाइबल)
एक जगह और आया है-
अपने जन्म देने वालों की सुनना और जब तेरी मां बूढ़ी हो जाए, तब भी उसे तुच्छ न जानना।
नीतिवचन 23:22 (बाइबल)
बाइबल में परमेश्वर के प्रेम की तुलना मां के प्यार से की गई है। बाइबल में उल्लेख है
‘जिस प्रकार मां अपने बच्चे को शान्ति देती है, वैसे ही परमेश्वर तुम्हें शान्ति देता है
यशायाह 66:13 (बाइबल)
बाइबल में आए उल्लेखों के अनुसार अनेक महापुरुष अपनी माताओं के कारण ही शिखर पर पहुंचे। हन्ना की प्रार्थनाओं और त्याग के फलस्वरूप सेम्यूल महापुरुष बने। इस प्रकार स्पष्ट है कि ईसाई धर्म में भी मां को विशिष्ट स्थान दिया गया है।
मां ही खोलती हैं मोक्ष का द्वार
सिख धर्म में भी मां को सर्वश्रेष्ठ और पूजनीय माना है। घर-परिवार में सबसे अहम्ï दर्जा मां
को दिया गया है।
गुरु हरगोविन्द सिंह ने तो ‘मां’ को ईमान कहा है। आध्यात्मिक क्षेत्र में गृहस्थ जीवन
का नेतृत्व करते हुए गुरु साहिबानो ने समूची मानव जाति को ‘मां’और परमात्मा को पिता
के रूप में प्रतिबिम्बित किया है। यथा
‘इस जग महि पुरखु एकु है होर सगली नारि सबाई’
(श्री गुरुग्रंथ साहिब जी)
गुरुवाणी में मां को ‘ऊतमों महि ऊतम’ तथा ‘सभ परवारै माहि सरेसट। अर्थात् परिवार में
सर्वेश्रेष्ट माना है। गुरु अमरदास जी ने मां को ‘बत्तीह सुलखणी कहकर सम्मानित किया
है, क्योंकि मां में बत्तीस गुण- धैर्य, संयम, उद्यम, उदारता, सेवा-सुश्रुषा, दया, निष्कपटता आदि विद्यमान है। वह सुलखणी है। श्री गुरुग्रंथ साहिब में पवित्र आदेश है कि मनुष्य के संबंध में ‘मति’ माता है तो ‘संतोष’ पिता।
‘मति माता संतोखु पिता सरि सहज समायउ।
आजोनी संभविअउ जगतु गुर बचनि तरायउ।’
(श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी)
अर्थात् राजा-महाराजाओं को भी उसी मां ने जन्म दिया है फिर वह पूजनीय क्यों न हो।
भाई गुरदास जी के अनुसार मां मोक्ष का द्वार खोलने वाली देती है। उनके अनुसार’लोकवेद गुण गिआन बिचु अरध शरीरी
मोख दुआरी।
गुरूनानक देवजी के अनुसार परिवार में मां का स्थान उस कमल के फूल के समान है
जिसकी सुगंध से घर और आंगन महक उठता है।
गुरु गोविन्द सिंह जी ने मीठे बताशे माता की मधुरता के रूप में स्वीकार किए और कहा
कि ‘भलो भयो तू चलकर आई। नीर माहि मधुराई पाई।
मां का अर्थ है ममता
जैन धर्म के आचार्यो के अनुसार मां का अर्थ है ममता। ममता ने आकार लिया और मां की
सृष्टि हो गई। मां और संतान में अद्वैत है। यह अद्वैत अनिर्वचनीय है। इसके लिए न कोई प्रवचन न कोई व्याख्या।
अद्वैत जब द्वैत बनता है तब दो हो जाते है-
एक मां और एक संतान।
संतान ने गर्भ के पहले क्षण में जिस अद्वैत का अनुभव किया, वह मातृत्व का अविस्मरणीय
क्षण है। उसे शब्दों में कैसे बांधा जा सकता है, इसलिए यह विषय जितना अनुभवगम्य है
उतना वचनगम्य नहीं है।
कहानी ‘मदर्स डे’ की
मदर्स डे तो हम सब मानते है, पर मां को समर्पित इस खास दिन की शुरूआत के बारे में जानना भी खासा दिलचस्प है। 1600 ई0 में ग्रीक साम्राज्य में मदर्स डे मनाए जाने का उल्लेख मिलता है। तब
ग्रीक देवताओं की मां रेया के सम्मान में मदर्स डे मनाया जाता था इसके बाद इंग्लैंड में ईस्टर के चालीस दिनों बाद पहले पड़ने वाले रविवार को जीजस क्राइस्ट की मां ‘मरियम’ की याद में यह
दिन मनाया जाने लगा। इस तेज चर्च में विशेष प्रार्थनासभा की आलोचना होता था और लोग अपने घरों में स्पेशल केक बनाते थे, जिसे ‘मररिंग केक’ कहा जाता था। इंगलैंड में सामंतो के यहां काम करने वाले मजदूरों को पूरे साल छुट्टी नहीं मिलती थी। मदर्स डे वाले शनिवाररविवार को उन्हें अपनी मां से मिलने के लिए छुट्टी देने की परंपरा विकसित हुई। इसके बाद अमेरिका की समाजिक
कार्यकर्ती जलिया वार्ड हॉवे ने 1870 ई0 में वहां फैले गृहयुद्ध के विरोध में अमेरिका की महिलाओं की ओर से एक शांति घोषणा पत्र जारी किया और उसमें कहा गया कि युद्ध से सबसे ज्यादा निर्दोश
महिलाओं और मासूम बच्चे प्रभावित होते हैं, इसलिए उन्होंने ‘मदर्स डे’ को ‘मदर्स डे आफ पीस’ का नाम दिया। इस प्रयास को जाविस नाम की सामाजिक कार्यकर्ता ने आगे बढ़ाया। उन्होंने परिवार में
भावनात्मक बंधन को मजबूत बनाने के उद्देश्य से मां को उपहार और विशेष सम्मान देने जैसी बातों को भी मदर्स डे की इस परंपरा में शामिल किया। इन्ही प्रयासों के बाद पूरे यूरोप और अमेरिका
में पहली बार 1908 में 10 मई को मदर्स डे मनाया गया। उसी के बाद से यह दिन
पूरे विश्व में मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाने लगा।
