संत एकनाथ कमंडलु में गंगा-जल भरकर काशी से रामेश्वरम् की यात्र कर रहे थे। गर्मी के दिन थे। मीलों तक पानी नहीं मिलता था। संत एकनाथ ने देखा कि एक गधा प्यास से तड़पकर मृतप्राय हो गया है। उन्होंने पानी का कमंडलु उसके मुँह में उड़ेल दिया। गधा जी उठा। शिष्यों ने देखा तो बोले, “यह आपने क्या कर दिया_ अब भगवान् शिव का अभिषेक कैसे होगा?”
एकनाथजी ने परम तृप्ति के आवेश में कहा “अरे! क्या तुमने नहीं देखा, स्वयं देवाधिदेव रामेश्वर (शिव) ही तो गधे के रूप में यहाँ आये थे! कितने कृपालु हैं वे! स्वयं ही आ गये और हमें वहाँ तक जाने का कष्ट नहीं दिया उन्होंने!”
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