manviyata
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एक बार एक आदमी पैगम्बर हजरत मुहम्मद के पास आया। उसके पास एक दरी थी। उसमें कुछ बंधा हुआ था। मुहम्मद साहब ने पूछा, “क्या बंधा है तुम्हारी इस दरी में? “उस आदमी ने जवाब दिया, “ऐ रसूलल्लाह, मैं जंगल के बीच में से जा रहा था। एकाएक चिड़ियों के बच्चों की आवाज मेरे कानों में पड़ी। उधर जाकर देखा तो वहाँ कई बच्चों को पाया। उन्हें उठा कर मैंने दरी में बांध लिया। तभी आ पहुँची उनकी माँ। बच्चों को बंधा हुआ देखकर वह तड़फड़ा उठी। मैंने दरी खोल दी। माँ बच्चों से आ मिली। मैंने उसे भी दरी में लपेट लिया। वे ही सब इस दरी में बन्द…”

इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाता, मुहम्मद साहब ने उसे आदेश दिया, “जाओ, तुरन्त इस चिड़िया माँ और इसके बच्चों को वहीं छोड़ कर आओ, जहाँ से पकड़ कर लाये हो”। वह आदमी तुरन्त उल्टे पैरों लौट गया।

मुहम्मद साहब ने इन घटनाओं के माध्यम से मानों कहा है, “पशु मूक हैं। वे अपने दर्द की बात नहीं बता सकते। उनकी आँखों की भाषा पढ़ो और उनके साथ मानवीयता का बर्ताव करो। उन्हें बन्दी मत बनाओ। यही मानवीय संवेदना है। यही मानवीय करुणा है”।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)