मैं रेलगाड़ी में सफर कर रही थी। मेरे सामने की बर्थ पर एक संभ्रांत परिवार बैठा था। थोड़ी देर में ही हम आपस में घुलमिल गए। एक स्टेशन पर मैंने मूंगफली खरीदी और सामने बैठे बच्चों को भी दी। मैं मूंगफली छीलकर छिलकों को रेल के फर्श पर ही फेंकने लगी। सामने बैठे एक बच्चे ने मुझसे कहा, ‘आंटीजी, आप टीवी तो देखती हैं न!

मैं मूंगफली खाने में इतनी मशगूल थी कि उसका आशय समझ नहीं सकी, लेकिन सहमति से सिर हिलाया। मुझे सिर हिलाते देखकर वह बोला, ‘तब फिर आप गाड़ी को गंदा क्यों कर रही हैं? अब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। वह बच्चा अपनी गोद में तौलिया रखे हुए था और मूंगफली के छिलके उसमें रख रहा था। मैं शर्म से लाल हो रही थी और उसकी आंखों में देखने का साहस मुझमें न था।