काफल पाको-21 श्रेष्ठ लोक कथाएं उत्तराखण्ड: Kafal Story
Kafal Story

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

Kafal Story: बहुत समय पहले सुदूर गांव में एक औरत और उसकी बेटी रहते थे। दोनों एक-दूसरे का एकमात्र सहारा थे। मां जैसे-तैसे घर का गुजारा किया करती थी। ऐसे में गर्मियों के मौसम में जब पेडों पर काफल आया करते थे तो वह उन काफलों को तोड़कर बाजार में बेचा करती थी। पहाड़ों पर काफल से रोजगार का साधन हुआ करता था। एक दिन जब वह काफल तोड़कर लाई तो बेटी का मन उन लाल-लाल रसीले काफलों की ओर आकर्षित हुआ तो उसने मां से उन्हें खाने की इच्छा जाहिर की लेकिन मां ने उन्हें बेचने का कह उसे काफल नहीं खाने दिए। काफलों की छापरी (टोकरी) आंगन में रखकर वह खेतों में काम करने चली गई और बेटी से काफलों की रखवाली करने को कह गई।

दिन में जब धूप ज्यादा तेज हुई तो काफल धूप में सूख कर कम दिखने लगे। मां जब घर लौटी तो बेटी सो रही थी। मां सुस्ताने बैठी कि उसे काफलों की याद आई। उसने आंगन में रखी काफलों की छापरी देखी तो उसे काफल कम लगे। गर्मी में काम करके और भूख से परेशान वह पहले से ही चिड़चिड़ी हो रही थी कि काफल कम होने पर उसे गुस्सा आ गया। उसने बेटी को उठाकर गुस्से से पूछा कि काफल कम कैसे हुए? तूने खा लिए ना इस पर बेटी बोली, नहीं मां मैंने तो चखे भी नहीं। पर मां ने उसकी एक भी नहीं सुनी, उसका गुस्सा बहुत बढ़ गया और उसने बेटी की पिटाई शुरू कर दी। बेटी रोते-रोते कहती रही कि मैने काफल नहीं चखे, पर मां ने उसकी एक नहीं सुनी और लगातार उसे मारती रही जिससे बेटी अधमरी-सी हो गई और मारते-मारते मां ने बेटी के सिर पर जोर से मारा कि वह छटककर दूर आंगन में पड़े पत्थर से टकरा गई और उसका सर फूट गया और वहीं उसकी मृत्यु हो गई।

धीरे-धीरे जब मां का गुस्सा शांत हुआ तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, उसने बेटी को गोद में उठाकर उससे माफी मांगनी चाही लेकिन तब तक वह मर चुकी थी। इधर धूप ढलने के बाद काफल भी उतने ही हो गये जितने तोड़ते समय थे तो मां को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ। इस पश्चाताप में उसने अपने भी प्राण त्याग दिए।

कहा जाता है कि वो मां-बेटी मरकर पक्षी बन गये और जब काफल पकते हैं तो एक पक्षी बड़े करूण भाव से गाता है- ‘काफल पाको, मैल नी चाखो’ (काफल पके हैं, पर मैंने नहीं चखे हैं) और तभी दूसरा पक्षी चीत्कार कर उठता है-‘पुर पुतई पुरै पुर’ (पूरे हैं बेटी पूरे हैं)।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’