ओशो का मेरे जीवन में बहुत बड़ा योगदान है: Osho Life Journey
Osho Life Journey

Osho Life Journey: ओशो के तर्कों ने मुझे प्रभावित किया। ओशो का मेरे जीवन में बहुत बड़ा योगदान है, क्योंकि मैंने कवि होने का निश्चय उन्हीं की पुस्तक को पढ़कर लिया। सच कहूं तो ओशो की एक किताब ने मेरी दिशा ही बदल दी जिसके कारण मैं आज कवि बना इंजीनियर नहीं और वह थी ‘मैं मृत्यु सिखाता हूं’ यह पुस्तक मुझे अपनी इंजीनियरिंग के शुरुआती दौर में मिली। यूं तो इस पूरी पुस्तक ने मुझे प्रभावित किया लेकिन एक पंक्ति जिसने मेरा जीवन बदला वह थी कि ‘अपनी नियति के, अपनी प्रकृति के विपरीत मत जाइये, क्योंकि प्रकृति ही ईश्वर है और आप प्रकृति के विपरीत जाएंगे तो उस मार्ग पर भगवान भी आपका साथ नहीं देगा।’ तो मैंने अपने आप से सवाल किया कि मैं क्या बनना चाहता हूं? तो मैंने जाना कि मैं कवि बनना चाहता हूं और पढ़ क्या रहा हूं तो उसी क्षण मैंने निर्णय किया कि मुझे स्नातक साहित्य से करना है।
मैंने ओशो को खूब पढ़ा जिसमें मुझे ओशो की ‘भारत के जलते प्रश्न’, ‘गीता दर्शन’, मीरा आदि पुस्तकें भी बहुत अच्छी लगीं।
इतना ही नहीं ओशो ने मेरे शिक्षण काल में भी बहुत मदद की। जब 1993 में यूनिवर्सिटी में मैं पढ़ाने आया तो मेरे पाठ्ïयक्रम में मीरा, कबीर थे लेकिन मैं ग्रेजुएशन के दौरान ओशो के माध्यम से मीरा और कबीर पहले ही पढ़ चुका था। मैंने स्वयं महसूस किया कि मीरा और कबीर को पढ़ाने में मेरी एक खास रुचि थी जो ओशो के कारण ही थी। और तो और मुझे लगता है मंै लाओत्से और कन्फ्यूशियस पर भी बहुत बाद में पहुंचता या मैं फिलॉसफी में पी.जी. करता तब पहुंचता लेकिन मैं बी.ए. के पहले-दूसरे साल में ही पहुंच गया, क्योंकि ओशो मुझे वहां ले जा रहे थे। यहां तक कि जे. कृष्णमूर्ति को भी मैंने ओशो के माध्यम से ही पढ़ा व जाना है। रहा सवाल ओशो के प्रभाव का, मुझे याद है ओशो ने एक जगह अपने प्रवचन में कहा है कि ‘मेरा प्रेमी लाखों लोगों में भी अलग से पहचाना जाएगा।’ मुझे इस बात का सौभाग्य है कि मंैने देश-विदेश में तीन हजार से ज्यादा परफॉर्मेन्स दिए हैं। मेेरे पास ऐसे सैकड़ों संस्मरण हैं जहां समारोह के बाद लोगों ने मुझसे निजी तौर पर या मैसेज से, फेसबुक या ट्ïविटर आदि पर पूछा है कि आप कहीं ओशो के संन्यासी तो नहीं हैं? ओशो से कहीं कोई संपर्क तो नहीं रहा है? तो मैं इस बात के लिए कृतज्ञता महसूस करता हूं कि ओशो ने मुझे भीतर तक इस कदर छुआ है कि लोग इसे पहचान जाते हैं। ओशो ने मुझे क्रांति और प्रेम सिखाया तथा दोनों का मुझे अंतर संबंध सिखाया।
ओशो के साथ एक और बढ़िया बात है जीवन के प्रति सभी आयामों में स्वीकार भाव तन, मन या आत्मा किसी भी तल पर किसी भी बात को तिरस्कृत नहीं किया, व्यक्ति को अपमानित नहीं किया, किसी बात को लेकर ओशो अपराध बोध नहीं देते। मैंने ओशो की पुस्तक ‘संभोग से समाधि की ओर’ कई बार पढ़ी है बल्कि जीवन के हर चरण में पढ़ी है। मजे की बात तो यह है इसमें जो सम्भोग शब्द है वह केवल टाइटल पर है। पुस्तक में सारी बातें समाधि की हैं, ऊर्जा की हैं उसके रूपांतरण की हैं, जो बताती हैं शरीर की ऊर्जा को आत्मिक रूपांतरण में तथा आत्मा की ऊर्जा को शरीर में कैसे रूपांतरित करें। मेरे विचार में जीवित ओशो इतने प्रभावपूर्ण नहीं थे जितने वह शरीर त्याग के बाद हुए हैं। अज्ञेय का जीवन उनके जीवित रहते समय में बहुत विवादित था परंतु समय बीतने के बाद लोगों में उनकी निजता के किस्से व निजता के संदर्भों को लेकर रुचि कम होती गई है। धीरे-धीरे जो लोग अज्ञेय के जीवनशैली की आलोचना करते थे वह अब अज्ञेय को पहचान रहे हैं, उनके कार्य में रुचि ले रहे हैं। ऐसे ही कबीर का व्यक्तिगत जीवन कैसा था, प्रेमचंद का व्यक्तिगत जीवन कैसा था इसमें लोगों की रुचि अब कम हो गई है। लोग उनके काम को जानना चाहते हंै। ऐसे ही लोगों को यह देखना चाहिए कि ओशो ने मनुष्य जगत को क्या दिया है। उनका जीवन कैसा था, कितना विवादित था या कितने आरोप थे इस बात पर ध्यान नहीं देना चाहिए, जो कि पहले उनके जीवित रहते दिया गया। ओशो को व्यक्ति के रूप में नहीं एक शक्ति के रूप में देखने की जरूरत है।
ओशो भारतीय तपस्वियों की, ज्ञानियों की, चमत्कारिक बुद्धों की श्रृंखला में सबसे ताजा नाम है परंतु अभी भी वे भारत में और विश्व में ठीक से रेखांकित नहीं हुए हैं। ओशो के बारे में जो सच्चे-झूठे प्रसंग या बातें फैलीं उनके अंधेरे में, उनके धुएं में ओशो के विद्या की जो द्युति है वह काफी छुप गई है। मुझे लगता है जैसे-जैसे समय बीतेगा उनकी व्याखाओं के बारे में चर्चा और घनी होती जायेगी। ओशो अपनी वाणी से हमें मुक्त करते जायेंगे।