Kabhi to Samajh bhi Jao
Kabhi to Samajh bhi Jao

Hindi Love Story: स्कूल के दिनों में रजनी उन बच्चों में से थी, जिनका लक्ष्य बचपन से ही तय होता है। रजनी को दसवीं में, बारहवीं में अस्सी प्रतिशत से ऊपर नम्बर चाहिए थे, आए भी। लड़कों ने पथभ्रमित करने की बहुत कोशिशें की पर सब व्यर्थ…..!!!

एकाध तो पिटे भी हैं बड़े भैया से। कॉलेज में भी सेम रहा। रजनी और उसकी किताबें… बस ये ही था जीवन उसके लिए। या तो रजनी क्लासरूम में वर्डसवर्थ के साथ उलझी रहती या फिर लाइब्रेरी में शेक्सपीयर को ढूँढा करती। दूसरों को उसकी जिंदगी बोरिंग लगती पर रजनी ख़ुश थी।
अब वो कॉलेज में लेक्चरर बनकर अहमदाबाद आई है तो यहॉं भी स्टूडेंट्स को शैली और कीट्स की कविताएँ पढ़ाते-पढ़ाते वो खो जाती है कहीं उनकी प्रेम कविताओं में। भाभी उसे ही यहॉं सेट करने आई हुई हैं। रात की ट्रेन से वो भी चली जाएँगीं।
तो रजनी मैडम के पास है उनकी औरेंज स्कूटी जिस पर वो कॉलेज जाती है। आज वो बीच रास्ते पर अचानक बंद पड़ गई। रजनी हैरान परेशान कि क्या करें? तभी “क्या हुआ? मैडमजी!” पीछे से रौबदार लेकिन अपनेपन से भरी मर्दानी आवाज़ सुनकर वो मुड़ी।

अरे! ये तो चंद्र है,कॉलेज प्रेसीडेंट। सुना है इसके बारे में कि टॉपर रहा हुआ है, अभी जॉब में है और कंपनी की ही तरफ़ से ही किसी डिग्री के लिए यहॉं आया है। स्टूडेंट्स और फ़ैकल्टी में पहले से ही फ़ेमस था तो बस आते ही प्रेसीडेंट बन गया।
“ कुछ नहीं, स्कूटी स्टार्ट नहीं हो रही।”
“आप कहो तो हम देख लें।”
वो आया और मिनटों में……. नहीं, स्कूटी तो स्टार्ट नहीं हुई पर चंद्र ने लिफ़्ट देकर उसे मिनटों में कॉलेज के दरवाज़े पर ला दिया।
“तुम बहुत तेज बाइक चलाते हो। एक्सीडेंट हो सकता था। ध्यान से चलाया करो।”
“मैडमजी! आपने कह तो दिया पर हमारी बात भी सुनती जाइए आप। एक तो अपना दुपट्टा सँभालकर बैठा कीजिए.. पूरे रास्ते हम ही जानते हैं कि कैसे सँभाला है ख़ुद को और दूसरा अपने परफ्यूम का नाम बता दीजिए।”
रजनी को तो ये समझ ही नहीं आया कि वो तारीफ़ कर रहा है या फ़्लर्ट। लेकिन पास से गुज़रती आरती मैम ने ये सब सुनकर जवाब दिया “चंद्र, तुम अभी और इसी वक़्त प्रिंसिपल सर के रूम में आओ… अब वो ही तुम्हें दुपट्टे सँभालना भी सिखाएँगे और परफ़्यूम का नाम भी बताएँगे।”
“मैम…. हम तो सिर्फ़…!!!! पर ठीक है, आते हैं हम वहीं पर ही।”
रजनी उम्र और तजुर्बे दोनों में ही छोटी थी , ऊपर से कॉलेज में भी नई सो बात को बिना बढ़ाए वहॉं से चली गई। थोड़ी देर बाद प्रिंसिपल सर ने रूम में आने का बुलावा भेजा। वहॉं जाकर देखा तो चंद्र पहले से ही था।
“रजनी मैम, आप बताइए सर को कि चंद्र बाहर आपसे बदतमीज़ी कर रहा था। कॉलेज मे लड़कियॉं कम थी जो ये अब लेक्चरर्स के साथ भी फ़्लर्ट करने लगा।” आरती मैम भड़की हुई थी।
“मैडमजी, आप बताओ… क्या हमने आपसे बदतमीज़ी की? आपके परफ़्यूम का नाम इसलिए पूछा क्योंकि अगले हफ़्ते छोटी बहन का जन्मदिन है, हमें ख़ुशबू अच्छी लगी तो सोचा यही उसको गिफ़्ट कर देंगे। दुपट्टे वाली बात का मतलब था कि हवा की वज़ह से दुपट्टा उड़ रहा था और हमें गाड़ी चलाने में दिक्कत हो रही थी। बाक़ी हमने कुछ नहीं किया, आप बताइए इनको।” उसने बोलते-बोलते एक बार रजनी की तरफ़ देखा। रजनी लगातार उसे ही देख रही थी।
ऊँचा ललाट, बिखरे से बाल, गोरा रंग, काली-भूरी सी आँखें……..!!!! “रजनी मैम, बताइए।”
”नहीं, सर! इसने कोई बदतमीज़ी नहीं की, शायद आरती मैम को ग़लतफ़हमी हो गई थी।”
“ओके, यू मे गो नाऊ! पर आगे से भी कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए।”
“सर, हम ज़िम्मेदार इंसान हैं और ऊपर से कॉलेज के प्रेसीडेंट भी। हमें अपनी ज़िम्मेदारियों का पूरा अहसास है… जिस तरह से आज हम ग़लत नहीं थे वैसे ही आगे भी नहीं होंगे।”

वो दिन गुज़र गया। रात को भाभी भी चली गई। सोने के लिए जैसे ही लाइट ऑफ़ की, चंद्र का चेहरा सामने आ गया। ये क्या कर रही हूँ मैं..? अपने ही स्टूडेंट के बारे में सोच रही हूँ …. छी: ….!!!!! वो ख़ुद को ही डाँटने सी लगी।

अगले दिन क्योंकि स्कूटी तो पहले से ही ख़राब थी तो टैक्सी से जाने का सोचा। रास्ते में रेड सिग्नल पर टैक्सी के बाज़ू में बाइक भी रुकी। उस पर बैठे लड़के ने दाहिने हाथ से सैल्यूट जैसा किया, क्या…. ये चंद्र था… हॉं, वही था .. कल भी उसने रजनी को ऐसे ही हैलो किया था। चेहरा नहीं देख पाई थी, हेलमेट पहना था उसने। रजनी के चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कान आई…!!!

उसे आज शैली की ‘लवज् फिलोसफ़ी’ पढ़ाना था। उसे लिट्रेचर में लव पोयम्स हमेशा से ही बहुत पसंद थी, पर आज इसको समझाते उसका दिल धड़क रहा था… पहली बार।
पर किसके लिए… उस स्टूडेंट के लिए… !!! पूरे दिन वो उसकी एक झलक के लिए तरसती सी रही। वो आर्ट्स में तो है नहीं इसलिए उसका इस फ़्लोर पर कोई काम नहीं.. ये ही सोचती वो स्टाफ़रूम में घुसी।
अरे! आज तो कुछ और ही मॉंग लेती… वो सामने ही था। पास से गुज़रते एक बार फिर दाहिने हाथ से सैल्यूट सा करता वो गुज़र गया। कितनी प्यारी मुस्कुराहट है इसकी, रजनी मानो ख़ुद से ही बातें करती बैठने लगी।

“रजनी मैम, आप जानती हैं क्या इसको?” रजनी अपने स्वप्नमहल से बाहर निकली।
“किसे ?”
“अरे, चंद्र को।”
“ नहीं तो…! क्यों, आपने क्यों पूछा?”
“क्योंकि ये किसी को हैलो,हाय,गुडमॉर्निंग, कुछ भी नहीं करता। एक तो कॉलेज का टॉपर, ऊपर से कम्पनी ने रिकमंड किया है तो सैलेरी के साथ पढ़ाई और रहा सहा अब प्रेसिडेंट भी ….. सिर पर सवार है इसके सफलता। स्टूडेंट्स के बीच बहुत पॉपुलर है। आपको सैल्यूट मारा तो सोचा कि कोई पुरानी जान-पहचान होगी इसकी आपसे नहीं तो कॉलेज में आए तो आपको अभी कुछ ही दिन हुए हैं।”
“वो ऐसे ही कर लिया होगा…” पता नहीं क्यों रजनी कन्नी काट गई। कभी-कभी हमारा झूठ प्रतिध्वनित होकर हमारे ही कानों में गूँजने लगता है। रजनी के साथ भी यही हुआ। जब वो किसी का भी अभिवादन नहीं करता तो मुझसे क्यूँ? क्या मैं भी उसके लिए स्पेशल हूँ…. मैं भी…ये ‘भी’ क्यों लगाया मैंने?

कॉलेज से लौटते समय रजनी को स्कूटी भी उठानी थी पर ऑटो मिले तो ना। एक तो शहर भी नया है और ऊपर से घर थोड़ा दूर है। भाभी को हमेशा सब कुछ अच्छा ही पसंद आता है तो घर भी उन्होंने अच्छे के चक्कर में दूर ही ले लिया। वो सोच में डूबी थी कि तभी बाइक की वो ही आवाज़…फिर से दिल की धड़कनों पर पकड़ कम सी महसूस हुई रजनी को।
क्या ये चंद्र की बाइक है…?? ओफ्फो़.. वो कॉलेज गर्ल नहीं है, जो अभी ऐसी बचकानी बातें सोचे…..पर अभी चौबीस की ही तो है वो…. अमूमन लड़कियॉं इस उम्र में कॉलेज में ही पढ़ती है….!!!! रजनी ख़ुद ही गुनहगार थी और ख़ुद ही वकील भी।

बाइक की आवाज़ चंद्र की आवाज़ में बदल गई।
“अरे मैडमजी! आप फिर से हमें मिल गई। अबकी बार क्या हुआ? स्कूटी तो दिखाई नहीं दे रही है आपकी…?”

रजनी का मन तो किया कि बोले सुबह नहीं देखा था क्या टैक्सी में, जो स्कूटी के बारे में पूछ रहे हो।
“नथिंग…वेटिंग फ़ॉर ऑटो..!” वो इतना कहकर सड़क की तरफ़ देखने लगी। उसके साथ दो लड़के बाइक पर बैठे थे। “भाई लोगों , उतरो ज़रा। मैडमजी को ऑटो तक छोड़कर आता हैं।”

“नहीं,प्लीज़, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, मैं इंतज़ार कर सकती हूँ।” उसने खीजकर कहा।
“आप कर सकती है, पर हम नहीं….!”
“बैठ जाइए मैडमजी, इस तरफ़ ऑटो कम ही मिलते हैं। चन्द्र आपको ऑटो स्टैंड तक छोड़ देगा।”
ना नुकूर करते-करते रजनी एक बार फिर बैठ ही गई उसकी बाइक पर। इस बार बड़े ध्यान से उसने अपना दुपट्टा सँभाले रखा।
“आप बेसिकली कहॉं से हैं मैडमजी ?”
“ मुरादाबाद, यूपी से”
“ ओह्हो, तभी हम सोचें कि हमारा कनेक्शन क्या है? आप तो अपनी ही हैं….!”
कानों में पिघलता सा महसूस हो रहा था चन्द्र का एक-एक शब्द।
“क्या तुम भी…??
“हॉं , मेरठ से। पर पापा-मम्मी यहीं सैटल हैं तो अब यहीं के।”
“लीजिए मैडमजी, आ गया आपका टैक्सी स्टैंड। कभी भी कोई काम हो तो बता दीजिएगा… नंबर ले लीजिए हमारा।”

ऐसा लग रहा था कि रजनी एक छोटी बच्ची है जिसकी देखरेख का ज़िम्मा चंद्र के ऊपर है। घर पहुँची। कानों में चंद्र के ही शब्द तबला बजा रहे थे।
“ मैं इंतज़ार नहीं कर सकता… कनेक्शन… आप तो अपनी ही हैं”
क्या बोल गया वो…. कहीं ये कोई संकेत हैं या सिर्फ़ परिस्थिति वश कही गयीं बातें…!!!!!!
रजनी अब इश्क़ नामी जादूगर की गिरफ़्त में थी। दिन दीदार में निकलते गए, रातें इंतज़ार में। चंद्र की वो ही सैल्यूट वाली अदा…. अभी तक उसने पलटकर रजनी से उसका नंबर नहीं मॉंगा था। यही तो सबसे ज़्यादा प्रभावित करने वाली बात हुई थी उस दिन। नहीं तो लड़के नंबर देते नहीं, लेने की कोशिश करते हैं। उसकी ऑंखें चंचल हिरणी सी कॉलेज में चंद्र को खोजती,  पता नहीं पर न जाने क्यों रजनी को हर बार ऐसा लगता था कि चंद्र के नैन भी उसे ही तलाशते हैं। रजनी को देखकर उसकी आँखों में हमेशा एक सुकून सा दिखा है।
क़ाश! उसके ऊँचे ललाट पर गेरूँआ तिलक कर दूँ… उसके बिखरे बालों को और बिखेर दूँ….उसके बारे में सब जान लूँ और अपना सब कुछ उसे बता दूँ… काश मैं उसे कॉल कर पाती, कर भी दूँ पर क्या सोचेगा और मैं क्या कहूँगी…??सोशल साइट पर ढूँढ़ा भी.. पर बस उसने अकाउंट बना रखा था और कुछ नहीं था। रजनी स्वप्न महल की दीवारों में घिर रही थी। जादूगर अपने जादू से उसे पागल बनाए जा रहा था….!!!!

“रजनी मैम, कॉलेज में कल्चरल इवेंट है अगले वीक से, तो आप एक बार चंद्र को चैक कर लेंगीं। उसने किसी इंग्लिश नॉवल या स्टोरी पर प्ले तैयार करवाया है।”
“पर वो तो मैनेजमेंट का बंदा है ना, उसका साहित्य में क्या काम..??”

“अरे वो तो बड़ा ही फ़नकार है… कला का पारखी। कितनी ही कहानी, कविताएँ तो मुखज़ुबानी है उसको। कॉलेज टाइम में लड़कियॉं दीवानी थी उसकी। अवनी के साथ तो लम्बा अफ़ेयर भी चल चुका है उसका। हो सकता हैं कि अभी भी हो।”

गला सूख सा गया था रजनी का। अफ़ेयर…, मतलब जिसको मन मंदिर में प्रेम के देवता का स्थान दे दिया, वो तो पहले ही किसी का देवता बन चुका है, उसकी मंज़िल तो कोई और ही है।
“मैंने तो ये भी सुना है कि वो विदेश में ही सैटल होने वाला है, उसके साथ शादी के बाद…..तो बस जब तक यहॉं है, उसके टैलेंट को यूज करो…।”
मीरा मैम तो हँसते हुए चली गई पर जो तीर चलाया था वो सीधा रजनी के दिल पर लगा। ये क्या कर बैठी वो? आज तक कभी प्यार हुआ नहीं और हुआ तो भी उससे जो पहले से ही किसी का हो चुका है।
हे भगवान! क्या प्यार के सारे रंग यहीं दिखाने थे… पर इज़हार, इकरार तो हो जाने देते…!!! आँखें डबडबा आईं कि तभी “मैडमजी, चलिए” की आवाज़ सुन बस बहने से रुक गईं। भरी आँखों से ऊपर देखा। चंद्र की आँखों में उसे कुछ महसूस हुआ मानो कह रहीं हो कि आई हेट टीयर्स …..
“कुछ हुआ है क्या?”
“नहीं तो… चलो।”
ये प्यार भी ना बड़ा मनमौजी होता है, बिल्कुल बच्चे के समान। कहॉं तो रजनी उसके साथ तो तरसा करती थी और आज जब समंदर ख़ुद सामने है तो प्यासा ही रहना चाहती है।
चंद्र ने ‘मी बीफॉर यू’ नॉवल का कुछ पार्ट प्ले के लिए रेडी किया था। रजनी जब डायलॉग्स पढ़ रही थी, तभी वो धीरे से बोला…. ‘कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर’
रजनी का रिएक्शन वैसा ही था जैसे ठिठुरती रात में बर्फ़ की डली हाथ में ले लेना।
“क्या कहा तुमने अभी?”
“कुछ भी तो नहीं, मैडमजी! बस…पूछ रहे थे कि ये लाइनें भी…डाल दें क्या प्ले में?” पहली बार शायद वो अचकचाया था बात करते समय।
कुछ तो ज़रूर था दोनों के बीच…!!! सपनों के टूटने का असर रजनी के दिल के साथ बदन ने भी महसूस कर लिया था। तेज़ बुखार आया उसको, शायद आँसुओं की गर्मी शरीर पर चढ़ गई।
वो कॉलेज नहीं जा पाई। काश… ऐसे में चंद्र होता मेरे पास..! पर उसे तो ख़बर ही नहीं। तभी फ़ोन घनघनाया और चंद्र का नंबर फ़्लैश हुआ स्क्रीन पर। क्या करूँ… उठाऊँ या नहीं… उसे मेरा नंबर कहॉं से मिला होगा… क्यों किया होगा फ़ोन … कुछ पर्सनल या फिर प्ले के बारे में…. पर्सनल जैसा तो कुछ है ही नहीं हमारे बीच… और जो था, वो भी मेरी तरफ़ से , उसे तो ख़बर भी नहीं….! ये लो फ़ोन ही कट गया। कितना सोचती हूँ ना मैं भी… एक तो उसने फ़ोन किया और ऊपर से मैंने….!!!
“हैलो… तुमने कॉल की थी, कोई काम था क्या?”
उधर से फुसफुसाती सी आवाज़ आई … “मैडमजी, आज आप कॉलेज क्यों नहीं आई?”
इतना क़रीब से चंद्र की आवाज़ सुनकर रजनी की धड़कनें एक बार फिर तेज़ हो गईं।
“आप ठीक तो है ना?”
“हॉं….नहीं, मेरा मतलब है कि हॉं, थोड़ा फ़ीवर है, बस।
“तुम्हें मेरा नंबर कैसे मिला?”
“आपने डॉक्टर को दिखाया?”
मैं क्या पूछ रही हूँ और वो क्या जवाब दे रहा है।
“तुम्हें मेरा नंबर किसने दिया…?”
“आप एड्रेस बताइए अपना, हम पहुँचते हैं वहॉं, फिर डॉक्टर के पास चलेंगे।”
“क्यों….????”
“मैं ख़ुद जा सकती हूँ, मुझे अपना ध्यान रखने के लिए किसी की ज़रूरत नहीं है…. !”
कैसे बोल गई रजनी इतनी कड़वी बातें अपने चंद्र से……… अपना नहीं है वो… तभी तो बोल पाई।
रजनी ख़ुद की ही दुनिया में थी और उधर से फ़ोन रखा जा चुका था। वो धम्म से बैठ गई। रोना तो ख़ैर जायज़ था सो रोई भी। क़रीब आधे घंटे के बाद फिर से स्क्रीन पर चंद्र कॉलिंग रिफ़्लेक्ट हुआ। नहीं उठाया रजनी ने। स्क्रीन पर मैसेज उभरा। “मैडमजी, नीचे खड़े हैं। प्लीज़ आ जाइए। शहर में डेंगू फैला है और ऐसे में लापरवाही ठीक नहीं….। चंद्र”
रजनी भी मजबूर थी दिल के हाथों और ऊपर से भैया-भाभी ने सख़्त हिदायत दी थी कि डॉक्टर के पास नहीं जा रही हो तो मुरादाबाद आ जाओ। अभी चंद्र से दूर जाने का सोच भी नहीं सकती थी। हॉं, उसका दिल टूटा था पर कसक तो बाक़ी थी ना।
वो नीचे आई। चंद्र ने आज अपनी चिर-परिचित सैल्यूट नहीं मारी थी रजनी को। एक बार फिर कुछ टूटा रजनी के दिल में।
दोनों चुपचाप डॉक्टर के पास पहुँचे, चुपचाप दिखाया, केवल फीवर ही था। दवाइयॉं ली, सब कुछ यंत्रवत हो रहा था मानो प्ले चल रहा था। वापिसी के टाइम रजनी ने कहा, “यहॉं से मैं ख़ुद चली जाऊँगी, तुम कॉलेज जाओ। थै़क्स फॉर कमिंग।”
“क्या एक-एक कप चाय पी सकते हैं ?”
“मैं चाय नहीं पीती”
“तो कॉफ़ी पी लीजिएगा, पर प्लीज़ ना मत कहिए।”
कैफ़े में ज़्यादा भीड़ नहीं थी।  
“दो कैपेचीनो “
“हमारे आने से पहले आप रोई थीं क्या?”
रजनी सकपका गई। ये कैसा सवाल था? इसकी तो उम्मीद भी नहीं थी रजनी को। इसे कैसे पता? कहीं ये… नहीं नहीं… !!!
“तुम्हें कैसे पता चला? “ ये क्या कह दिया मैंने.. कहना तो ये था कि क्यों पूछ रहे हो ये सब?
“आपकी ऑंखें चुगलखोर हैं, सब कुछ कह देती हैं।”
रजनी के पेट में बड़ी उमड़घुमड़ सी मचने लगी। हाथों में पसीना…
“तुम बताओ.. मेरा एड्रेस कैसे मिला?”
“आपकी सुई यहीं अटक गई है क्या ? इससे अलग भी कुछ सोचेंगी.. नंबर कैसे मिला, एड्रेस किसने दिया… अरे यार, ये कोई मुश्किल काम नहीं है… मुश्किल तो वो सब है जो आप कर रही हैं।” चिढ़ते हुए चंद्र बोला।
“मैं…. मैं क्या कर रही हूँ?”
“आपको नहीं मालूम, कल से अचानक क्या हुआ है आपको? खिले बसंत से मुरझाया गुलाब बन गईं है आप।”
“तुम मुझसे ये किस तरह की बकवास कर रहे हो..? शर्म नहीं आती तुम्हें..? “
रजनी वैसा बिहेव कर रही थी जैसे किसी ने उसे चोरी करते पकड़ लिया हो। अपना बचाव न कर पाने की स्थिति में सामने वाला पर ग़ुस्सा… यही तो करते हैं ना हम अक्सर।
“आप एक साथ सारा ग़ुस्सा लास्ट के लिए बचाकर रखें, पहले इत्मीनान से हमारी पूरी बात सुन लें, प्लीज़। एक तो आपको देखकर लगा नहीं था हमें कि आप इतनी ग़ुस्सैल होंगी। कॉफ़ी पीजिए और हमारी बात सुनिए, बिना रिएक्शन के।”
“जब हमने पहली बार आपको देखा था काला घोड़ा सर्किल के पास। आपने फ़ीरोज़ी सूट पहना था और पिंक दुपट्टा डाला हुआ था। आपकी तरफ़ नज़र इसलिए गई क्योंकि आजकल दुपट्टे वालियॉं दिखती ही कहॉं है शहरों में। पर नज़र पड़ने के बाद शाबाशी दी हमने अपनी नज़र को, क्लास है इनका भी कुछ। उस दिन भी आपका दुपट्टा आपके बस में नहीं था, हमेशा की तरह। दुपट्टे से नज़र हटाकर, दुबारा आपको देख पाते, उससे पहले आप गुम हो गई थीं भीड़ में। फिर अगले दिन कॉलेज के पार्किंग एरिया में आपको देखा। ऑफ़ व्हाइट सा कुछ रंग पहना था, कानों में वो लटकते हुए झुमके टाइप कुछ, चॉंदनी मूवी की याद आ गई थी आपको देखकर। पहले हमें लगा कि आप स्टूडेंट हैं।”
रजनी सुनकर हैरान थी, ये तो मुझे उस दिन से जानता है, जब मैं इस शहर में पहली बार आई थी। उसे सुनना अच्छा तो लग रहा था पर मन ही मन उधेड़बुन में भी थी कि आगे क्या बोलेगा।
कॉफ़ी ख़त्म हो गई थी। “क्या आपने यहॉं के ढ़ोकले खाए हैं ? “ रजनी के ना में सिर हिलाने पर चंद्र ने आर्डर देने को हाथ उठाया पर फिर रुक गया।
“पहले आप ठीक हो जाओ।”
“तुम बाहर जाने वाले हो क्या…?”
“आप कहो तो रुक जाऊँ।”
उफ़्फ़ ! रजनी समझ ही नहीं पाई, ये इज़हार था, इकरार था या कुछ और…!!!
चंद्र ने भरपूर नज़र रजनी पर डालकर मुस्कुराते हुए कहा, “आपने तो उस दिन बोला था कि आप इंतज़ार कर सकती हैं, पर आपको देखकर लगता तो नहीं कि आपमें ज़रा भी पेशेंस है।”
“ओह..!! तो इसे भी वो सारी बातें याद हैं। “
“हमने उस दिन कॉलेज में जब दुपट्टे के बारे में बात की आपसे तो आपको तो कुछ मालूम ही नहीं था। हर बार हमें ऐसा लगता कि आपकी ऑंखें हमसे कुछ कहना चाहती हैं पर ज़ुबान कह नहीं पा रहीं। हमने आपको अपना नंबर भी इसीलिए दिया कि शायद कभी तो आपकी तरफ़ से कोई पहल हो। आपसे मिलने की उम्मीद में, आपको देखने की उम्मीद में बार-बार कॉलेज में चक्कर काटते रहते। जब आपको पता चला कि मैं आपके अलावा किसी और को कभी हाय,हैलो नहीं करता क्या तब भी आपको नहीं लगा कि आप मेरे लिए स्पेशल हैं? कितनी बार आपको हिंट दिया, अपना भी बोला आपको, पर आपने तो ना समझने की मानो क़सम खा रखी हो। पहले आप हमारी इस कश्मकश को दूर करिए।”
“यहॉं बैठकर मुझसे ऐसी बातें बोलते हुए तुम्हें शर्म तो आ नहीं रही होगी ? लेकिन मैं तुम जैसे लड़कों से बात करना तो दूर, देखना भी पसंद नहीं करती।” रजनी को अचानक न जाने क्या हुआ था। जो बातें सुनने, कहने के लिए वो पिछले एक-डेढ़ महीने से मरी जा रही थी, आज वो सब कुछ हो रहा है तो…… शायद ये वो घाव था जो मीरा मैम के तीर से लगा था या कुछ और भी हुआ था। चंद्र की मीठी प्रेमपगी बातें उस घाव पर नमक का काम कर रही थीं।
प्यार भरी कविताओं में खोने वाली, हमेशा मीठा बोलने वाली रजनी क्यों इतना ज़हर उगल रही थी और वो भी उसके सामने जिसको वो अपना दिल दे बैठी है।
“मैडमजी, ये किस तरह से बात कर रही हैं आप। माना कि हम आपसे अपने दिल के अनछुए अहसास शेयर कर रहे हैं पर इसका मतलब ये तो क़तई ना निकालिएगा कि हमारा कोई सेल्फ़ रेस्पेक्ट नहीं है और ये ‘हमारे जैसे लड़के’ से आपका क्या मतलब है? क्या हमने कभी भी आपके साथ कोई बदतमीज़ी करी? अगर नहीं तो ये कैरेक्टर सर्टिफ़िकेट क्यों दे रही हैं आप हमें?”
“मैं तुम्हें कोई सर्टिफ़िकेट देना भी नहीं चाहती। पर क्या मैंने बुलाया था तुम्हें अपने घर पर? मैंने कहा था तुम्हें कि चलो… चाय…”
“कॉफ़ी….चाय तो आप पीती ही नहीं हैं।”
“तुम मुझे बीच में करेक्ट मत करो। कॉफ़ी पीने का इन्वीटेशन क्या मैंने दिया था तुम्हें….? एक तो पहले से रिलेशनशिप में हो पर फिर भी यहाँ मेरे साथ बैठकर ऐसी  घटिया बातें कर रहे हो।”
“आप इतना वीयर्ड बीहैव क्यों कर रही हैं… और एक मिनट… ये सब क्या था… रिलेशनशिप एंड ऑल… किसने करदी आपसे ये बकवास? देखिए मैडमजी.. ये जो कोई भी है ना आपका गूगल, यूज़लैस है एकदम। हमारे बारे में क्या जानना है आपको… डायरेक्टली हमसे पूछिए… कही सुनी पर विश्वास मत करिए।”
“मुझे कुछ नहीं जानना तुम्हारे बारे में।”
“जानना तो है मैडमजी… वरना सीधे आप हमसे यू. एस.ए. जाने के बारे में नहीं पूछतीं।”
रजनी को समझ नहीं आ रहा था कि वो रिएक्ट कैसे करे? ये टॉपर किस तरह से अपना दिल खोलकर उसके सामने बैठा है।
“किस सोच में हो आप, अवनी के बारे में सोच रहीं हैं …  अरे यार! वो सब उसकी तरफ़ से था, हमारे लिए वो अच्छी दोस्त से ज्याद़ा कुछ नहीं थी। अब तो उसकी शादी भी हो चुकी है…..!!!!”
“और मेरी होने वाली है……!!!!!”
रजनी ने आख़िर कॉंपती आवाज़ से वो सच कह ही डाला…जिसको कहने से बचने के लिए वो ये सब ग़ुस्से और झगड़े का नाटक कर रही थी।
“हॉं….अब इन सारी बातों का कोई मतलब नहीं, कल रास्ते में भाभी का फ़ोन आया था, उनके कोई रिश्तेदार का बेटा है… जिसके साथ भैया-भाभी ने मेरी बात पक्की कर दी है। मैं उनको कभी मना नहीं कर सकती तो फिर जो कुछ हमारे बीच…..!!!!!!”
“मतलब आपकी तरफ़ से कुछ तो है हमारे लिए।”
“है नहीं था… और जो कुछ भी था, वो आज यहीं इसी कॉफ़ी टेबल पर ख़त्म। अपना ध्यान रखना, जैसे हो वैसे ही रहना।”
“एक मिनट, आप ये गुडबाय वाले डायलॉग मत मारिए।आपने हमारी तरफ़ की स्टोरी तो पूरी सुन ली पर अपना हाल-ए-दिल भी सुनाकर जाइए।”
“देखो,…,”
“चंद्र… ये नाम है हमारा.. आप बोल सकती है, ज़्यादा टफ़ नहीं है।”
रजनी ने भरी आँखों से चंद्र को देखा… बहुत कुछ था उन आँखों में। बदले में उसने चंद्र की आँखों में एक तरह की दृढ़ता देखी, एक पुरुष की पूर्ण दृढ़ता…!!!!
“इन सब बातों का अब कोई मतलब नहीं है.. मत कुरेदो उस घाव को, रिसने लगेगा।”
“रिसेगा नहीं तो भरेगा भी नहीं। प्लीज़।”
“चंद्र, मैंने भी तुम्हें जिस दिन से देखा, जिस पल से देखा, उसी पल तुमसे प्यार हो गया था। ये जानते हुए भी कि तुम मेरे स्टूडेंट हो, ये जानते हुए भी कि तुम मुझसे हर बात में बेहतर हो….मैंने अपनी कुँवारी फ़ीलिंग्स तुम्हारे नाम कर दीं थीं।” चंद्र की आँखें पनीली हो उठीं।
“तुम, तुम्हारा ये अट्रेक्टिव फ़िज़िक, तुम्हारा वो राइट हैंड से सैल्यूट करने का स्टाइल, तुम्हारा हम, हमारा बोलने का स्टाइल, तुम्हारी आँखों का ये काला-भूरा रंग, माथे पर गिरते तुम्हारे बाल, बाइक पर बैठकर बिना बात के घूं..घूं करते हुए रेस मारना, सब कुछ से मुझे प्यार हो चला था। शायद तुम्हारे लिए ही ये फ़ीलिंग्स बचा कर रखी थीं मैंने इतने साल।”
चंद्र के चेहरे पर आते-जाते भाव रजनी महसूस कर रही थी, उसकी आँखों में इज़हार की खुशी और अपने लिए बेइंतहा प्यार पढ़ पा रही थी पर अब…..!!!
कैफ़े में गाना चल रहा था..
“कभी तो नज़र मिलाओ, कभी तो क़रीब आओ
जो नहीं कहा है, कभी तो समझ भी जाओ……”
“मैडमजी, क्या हम एक बार आपको आपके नाम से बुला सकते हैं।”
नम आँखों ने मौन स्वीकृति दी।
“रजनी, क्या हम एक कोशिश नहीं कर सकते…?”
“नहीं, कल वो लड़का मुझसे मिलने आ रहा है।”
“अगर वो लड़का अभी मिलने आ जाए तो….”
“मतलब…”
“मतलब ये कि यार आपको लेक्चरर किसने बना दिया? सारा टाइम तो आप मतलब ही पूछती रहती हो। अरे,हमारी ट्यूबलाइट रानी!! जब हमने बताया था कि हम मेरठ से हैं, तब भी आपकी बत्ती नहीं जली। हमने कहा था कि आप तो हमारी अपनी हैं, तब भी नहीं और अब भी नहीं। आप कॉफ़ी पीने वाली लड़कियॉं ना बस नाम के लिए ही स्मार्ट होती हैं।आपकी रेस्पेक्टेड भाभीजी ने जो लड़का पसंद किया है आपके लिए, वो हम ही हैं। वो नंबर, घर का पता सब कुछ उन्हीं का दिया हुआ है हमें।” चंद्र ठठाकर हँस पड़ा।

“मतलब कि तुम ये सब जानबूझकर कर रहे थे मेरे साथ?”
“हॉं तो। कितना टाइम से आपको फ़ॉलो कर रहे हैं, हिंट दे रहे हैं, बोल भी दिया था कि हम नहीं कर सकते इंतज़ार पर आप तो इस गाने की तरह चाह रही थीं… “जो नहीं कहा है, कभी तो समझ भी जाओ… हम भी तो हैं तुम्हारे, तुम्हारे सनम। पर बिना सब कुछ सुने और बताए हमें भी आगे नहीं बढ़ना था। अब हम पूरी तरह से आपके हैं मैडमजी…।” सैल्यूट मारता हुआ चंद्र बोला।
“क्या मैं तुम्हारे गले लग सकती हूँ, प्लीज़ !” भरी आँखों से रजनी ने कहा। बदले में चंद्र ने अपनी बाँहें फैला दी। जैसे रात को चॉंद से ही पूर्णता मिलती है वैसे ही हमारे चंद्ररजनी की प्रेमकहानी को भी पूर्णता मिल गई।
कैफ़े में अब बज रहा था.
“साथिया, तूने क्या किया, बेलिया, ये तूने क्या किया
मैने किया तेरा इंतज़ार, इतना करो ना मुझे प्यार….”