जिंदगी एक पहेली
आज उसके जन्म दिन पर उसके बेटे और पति ने एक शानदार नेम प्लेट बनवाकर उसे तोहफे में दी थी
Hindi Sad Story: घर के दरवाज़े पर लगी नेम प्लेट शानदार लग रही थी। ये घर था 28 साल के वंश जोशी का, ऐसा वंश की माँ कविता का कहना था। दोनों माँ बेटे अक्सर इस नेम प्लेट को लेकर झगड़ पड़ते थे। कविता कहती थी अब तुम बच्चे नहीं रहे, डॉक्टर बन गए हो। घर के बाहर लगी नेम प्लेट पर सबसे पहले तुम्हारा होना चाहिए। लेकिन वंश और उसके पिता गर्वित का कहना था, जिन लोगों ने तुम्हे इस हद तक परेशान किया की एक समय तुम अपनी पहचान खो बैठीं थी, आज जब भी वो ये नेम प्लेट देखेंगे तो उन्हें समझ आ जाएगा की हमारी ज़िन्दगी में तुम ख़ास थी हो और हमेशा रहोगी। ना सिर्फ नाम प्लेट बल्कि गर्वित और वंश हर जगह सबसे पहले कविता को ही आगे करते, जहाँ कविता जाने को उत्साहित रहती वो दोनों भी ख़ुशी-ख़ुशी चल पड़ते।
आज उसके जन्म दिन पर उसके बेटे और पति ने एक शानदार नेम प्लेट बनवाकर उसे तोहफे में दी थी।
बस यही नाम प्लेट दरवाज़े पर अपने हाथ से लगाते हुए कविता को उसके पुराने दिन याद आ गए थे।
सालों पहले जब कविता और उसके पति गर्वित ने वंश का स्कूल में एडमिशन करवाया था, तब से लेकर आज उसके डॉक्टर बन जाने के बाद भी दोनों पति-पत्नी वंश के साथ हर पल साये की तरह खड़े रहते थे।

आज उनकी ज़िन्दगी बहुत खुशनुमा और आसान थी, लेकिन सालों पहले ऐसा नहीं था। जब कभी कविता के मायके में कोई प्रोग्राम होता तो कविता साफ़ शब्दों में मना कर देती थी, माँ वंश की पढाई है मै नहीं आ पाऊंगी, मायके गए हुए कई बार तो सालों बीत जाते थे, लेकिन उसके भाई-बहन और माँ-पापा कभी उस पर इस बात को लेकर न नाराज़ होते न अफ़सोस करते।
उन्हें गर्व था उनकी बेटीऔर दामाद बच्चे को शानदार परवरिश दे रहे हैं। कविता के मायके और ससुराल के बहुत से लोग न जाने कितनी ही नेगेटिव बातें करते थे।
लेकिन कविता और गर्वित सबकी बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए माता-पिता का कर्त्तव्य भखूबी निभा रहे थे।
एक समय ऐसा भी आया जब कविता डिप्रेशन की गोलियां खाने लगी थी। कुछ रिश्तेदारों ने उसके ससुराल वालों के कान भर दिए और उसे असामाजिक कहने लगे। गर्वित ने उन्हें समझाने की भरपूर कोशिश करी लेकिन नाकाम रहे।
आज वही रिश्तेदार कविता के घर आने वाले थे, उनके आते ही कविता ने बड़े प्यार से उन्हें बैठाया और सबने उनका खूब ख्याल रखा।
कविता महसूस कर पा रही थी, उसके रिश्तेदार कुछ कहना चाह रहे हैं। उसने पूछा, बताइये ना आप फ़ोन पर कुछ कहना चाहते थे, हम आपकी मदद कर पाएंगे तो हमें भी अच्छा लगेगा।
उन्होंने बस इतना कहा कविता, ज़िन्दगी एक पहेली है, पहले हमने तुम्हे बहुत परेशान किया और अब ये हमें परेशान कर रही है, हमारी बेटी के दोनों घुटने पूरी तरह से ख़राब होने वाले हैं, ऑपरेशन ही एक आखिरी रास्ता है। लकिन हमें किसी और पर यकीन नहीं है।
वंश एक बार सुरभि की रिपोर्ट्स देख लेता तो हमें तसल्ली हो जाती, जिस बच्चे के संस्कारों पर हम सवाल उठा रहे थे आज उसी से अपने सवालों का जवाब मांगने आए हैं।
वंश ने सारी रिपोर्ट्स देखने के बाद कहा, मै हूँ न , ऑपरेशन करने के बाद सुरभि बिल्कुल ठीक हो जाएगी। बस आप उसके साथ हमेशा साये की तरह खड़े रहिएगा ठीक मेरे माँ-पापा की तरह। इतना कह कर वंश ने उन्हें गले लगा लिया।
