Jataka Story in Hindi : वाराणसी नगर में एक भिश्ती रहता था। वह लोगों के घरों में पानी पहुँचाता था। पूरा दिन कड़ी मेहनत करने के बाद भी गुजारा मुश्किल से होता था। काफी गरीबी में दिन कट रहे थे।
एक दिन उसने एक व्यापारी के घर सारा दिन मेहनत करके टनों पानी पहुँचाया। उन्होंने बदले में सोने का एक सिक्का दिया। वह उसे पा कर बेहद खुश हुआ। उसने स्वयं से पूछा-‘‘मुझे इस खजाने को कहाँ छिपाना चाहिए?’’
वापसी पर उसे राजा का महल दिखा। उसने सोचा, हाँ! महल की इन ईंटों के पीछे मेरा खजाना सुरक्षित रहेगा। उसने दीवार से एक गीली ईंट निकाली व सिक्का उसके पीछे रख दिया। यह महल की द्वार की बाईं दीवार की ईंट थी।
कई साल बीत गए। उसका विवाह हुआ। उसने महल के दक्षिणी द्वार के पास ही झोंपड़ी बना ली। पति-पत्नी उस कुटिया में खुशी-खुशी रहने लगे। एक दोपहर उसकी पत्नी बोली-‘‘शहर में एक मेला लगा है। अगर हमारे पास पैसे होते तो मैं भी उसका मज़ाा लेती।’’
भिश्ती अपनी पत्नी का दिल नहीं तोड़ना चाहता था। उसने कहा-‘‘उदास मत हो। मैंने महल की एक दीवार में सोने का सिक्का छिपा रखा है। मैं उसे ले आता हूँ। फिर हम दोनों मेले में चलेंगे।’’
इसके बाद वह कड़ी दोपहर में कुटिया से निकल पड़ा ताकि अपना छिपा खजाना निकाल सके।

राजा अपने महल के बरामदे में विश्राम कर रहे थे।
उन्हें यह देख कर हैरानी हुई कि एक व्यक्ति धूप से तपती राह पर अकेला चला जा रहा है और मस्ती में गा भी रहा है।
उन्होंने सैनिकों को हुक्म दिया कि उस युवक को पकड़ लाएँ। सिपाहियों ने उससे जा कर कहा-‘‘राजा ने बुलाया है। इसी वक्त साथ चलो।’’
भिश्ती ने साथ जाने से इंकार कर दिया। सिपाही उसे जबरन पकड़ ले गए। उसे देख, राजा ने कहा-‘‘धरती तवे की तरह तप रही है। तुम इतनी कड़ी धूप की परवाह न करते हुए भाग रहे हो और गाना भी गा रहे हो?’’ भिश्ती ने जवाब दिया, ‘‘महाराज! मेरी इच्छा इस धूप से कहीं तेज़ है।’’

राजा ने आश्चर्य से पूछा-‘‘क्या मैं तुम्हारी इच्छा जान सकता हूँ, जिसने तुम्हें इतनी धूप में निकलने पर मजबूर किया।’’
‘‘महाराज! मैं महल की उत्तरी दीवार में छिपा अपना खजाना निकालना चाहता हूँ। मुझे अपनी पत्नी को खुश करना है।’’
राजा ने हैरानी से पूछा, ‘‘तुम्हारा छिपा खजाना क्या है, एक लाख सोने के सिक्के?’’
‘नहीं महाराज, इतना नहीं है।’’
‘‘तो पचास हजार?’’
‘नहीं श्रीमान’

फिर यह सुन कर चौंक गया ‘‘क्या, सिर्फ एक सिक्का?’’ ‘‘जी, मैं उस एक सिक्के से पत्नी को मेला दिखाने ले जाऊँगा व कुछ खरीद दूँगा।’’
महाराज ने उसे सोने का सिक्का देते हुए कहा ‘‘भले मानुस! इतनी दोपहर में खजाना निकालने की जरूरत नहीं है। ये सिक्का लो व घर लौट जाओ।’’
भिश्ती ने सिक्का तो ले लिया किंतु राजा से बोला- ‘‘मैं इसे ले लेता हूँ पर मुझे अपना सिक्का तो पाना ही पड़ेगा।’’
राजा ने सोचा कि उसे और धन चाहिए। वे उसे और धन देते रहे पर भिश्ती अपनी जिद पर अड़ा रहा कि वह कड़ी मेहनत से कमाया गया सिक्का लेने अवश्य जाएगा।
अंत में उन्होंने कहा ‘‘तुम अपनी हठ छोड़ दो तो आधा राज्य देने को तैयार हूँ।’’

भिश्ती ने विनम्रता से उनकी पेशकश पर हामी भर दी। राज्य देने से पहले राजा ने पूछा।
‘‘तुम राज्य का कौन सा आधा हिस्सा लेना चाहोगे?’’
भिश्ती एक पल सोच कर बोला ‘‘महाराज! मुझे राज्य का दक्षिणी हिस्सा चाहिए।’’
महाराज उसका उत्तर सुन कर हँसे व कहा,’’ मैं न केवल तुम्हारे धीरज बल्कि बुद्धिमता की भी प्रशंसा करता हूँ।’’
इस तरह भिश्ती को न सिर्फ आधा राज्य मिला, वह दक्षिणी द्वार की दीवार में से अपना छिपा खजाना पाने में भी सफल रहा।
शिक्षा:- दृढ़ता व पक्का निश्चय ही जीवन में सफलता की कुँजी है!
