भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
आषाढ़ का महीना बीत चुका था और सावन भी मुट्ठी के रेत की भांति फिसलता जा रहा था, लेकिन आकाश एकदम साफ था। दूर-दूर तक बादलों का नामोनिशान तक नहीं दिखाई दे रहा था। रामनगर में उदासी की चादर फैली हुई थी। राजा शुद्धोधन और उसका दरबार चिंताओं के सागर में डूबा हुआ था। दरबार में गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था।
अचानक महामंत्री बोले- राजन, यदि ऐसा ही चलता रहा तो निश्चित ही राज्य में अकाल पड़ जाएगा। यह सुनते ही वित्त मंत्री जी बोले- हे राजन! यदि अकाल पड़ता है तो उस स्थिति में हम कहीं के नहीं रहेंगे। हमारा खजाना और अन्न भंडार तो पहले ही खत्म होने की कगार पर है। वित्त मंत्री की यह बात सुनकर महाराज शुद्धोधन के माथे पर चिंता की लकीरें और गहरी होती चली गई।
अचानक राजपुरोहित बोला- राजन, लगता है हमारी किसी भूल के कारण हमसे इंद्रदेव क्रोधित हैं, इसीलिए तो राज्य में वर्षा नहीं हो रही। राजपुरोहित का तर्क सुनकर राजा बोले- राजपुरोहित जी, यदि ऐसा है तो आप ही इसका कोई उपाय ढूंढ़कर बताओ। राजपुरोहित कुछ सोचते हुए बोला- राजन, इसका तो केवल एक ही उपाय है कि हमें इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए एक विशाल यज्ञ करना होगा। राजा बोले- जब आपके पास उपाय है तो देर किस बात की। इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ की तैयारी की जाए। समस्या का समाधान पाकर राजा ने यज्ञ करने का तुरंत ही आदेश देते हुए कहा कि पूरे नगर में मुनादी करवा दी जाए कि कल राजभवन की यज्ञशाला में एक विशाल यज्ञ होने जा रहा है। सभी नगरवासी यज्ञ में शामिल हो।
अगले दिन सभी नगरवासी अपने-अपने घरों से घी और धन लेकर के राजभवन की यज्ञशाला में एकत्रित हो गए। राजपुरोहित ने यज्ञ शुरू किया, मंत्रोच्चारण होने लगे। दोपहर बाद अचानक यज्ञ अग्नि से इंद्रदेव प्रकट हुए और बोले- राजन, मैं तुम्हारे यज्ञ से प्रसन्न हुआ। मांगो, वरदान मांगों। इंद्र भगवान को अपने सामने पाकर राजा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और राजा इंद्रदेव को एकटक देखते रहे। इंद्रदेव बोले- राजन, क्या सोच रहे हो? वरदान मांगो, वरदान। इंद्रदेव की आवाज सुनकर राजा की तंद्रा भंग हुई और दुखी स्वर में बोले- हे भगवान! मेरे राज्य में कई महीनों से वर्षा नहीं हुई है, जिसके कारण राज्य में भयंकर अकाल की स्थिति बन गई। मेरी प्रजा दुखी है। हे देव, मुझे अपने लिए तो कुछ भी नहीं चाहिए, बस आप मेरे राज्य में वर्षा करवा दो।
तथास्तु- कहकर के इंद्रदेव अंतर्ध्यान हो गए।
थोड़ी देर पश्चात ही आकाश बादलों से घिर गया, बादलों ने सूरज को ढक लिया व अंधेरा सा छाने लगा। बादल धरती को चूम-चूम कर जाने लगे। बादलों को देखकर लोग खुशी से पागल हुए जा रहे थे, लेकिन यह क्या? धीरे-धीरे अंधेरा छटने लगा और देखते ही देखते सारे बादल बिना बरसे ही न जाने कहां गायब हो गए। आसमान एकदम साफ हो गया और सूरज फिर से चमकने लगा। नगरवासी त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगे। यह देखकर राजा शुद्धोधन ने पुनः यज्ञ आरंभ करने का आदेश दिया।
यज्ञ फिर शुरू हुआ, फिर से मंत्रोच्चारण दुगने जोश से गाए जाने लगे। इंद्रदेव पुनः प्रकट हुए और बोले- राजन, अब क्या चाहिए? राजा ने इंद्रदेव को सारी बातें बताते हुए कहा- हे इंद्रदेव! आपके बादल आए जरूर लेकिन बिना वर्षा किए ही वापस लौट गए। इंद्र बोला- हां राजन, मुझे बादलों ने बताया था कि वो आपके राज्य में आये तो थे, मगर वर्षा नहीं कर पाए। राजा बोला, महाराज, आपके कहने के बाद भी उन्होंने मेरे राज्य में वर्षा क्यों नहीं की? यह सुनकर इंद्रदेव ने कहा कि आपके राज्य में तो पेड़ नाम मात्र ही हैं, जबकि बादलों को पेड़ बड़े प्यारे होते हैं, जहां अधिक पेड़ होते हैं, वहां अधिक वर्षा करते हैं और जहां पेड़ नाम मात्र या नहीं होते, वहां वर्षा भी नाममात्र या बिलकुल नहीं करते। अतः बादलों को वर्षा करने के लिए पेड़ ही मजबूर करते हैं। मेरे आदेश पर बादल आपके राज्य में तो आए लेकिन पेड़ ना होने के कारण वह आपके राज्य में चाहकर भी नहीं बरस पाए और वापस लौट गए।
यह सुनकर राजा मायूसी से बोला- हे भगवान! अब हमें क्या करना चाहिए? इंद्रदेव ने सलाह दी कि राजन आपको अपने राज्य में अधिक से अधिक पेड़ लगवाने चाहिए ताकि आपके राज्य में कभी भी वर्षा की कमी ना हो। राजा बोला- हे इंद्रदेव! मैं आपको वचन देता हूं कि अपने राज्य में मैं स्वयं भी पेड़ लगाऊंगा और अपनी प्रजा को पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करूंगा। राजा के इतना कहते ही इंद्रदेव वहां से अंतर्ध्यान हो गए और इंद्रदेव के अंतर्ध्यान होने के थोड़ी देर बाद ही आकाश पुनः बादलों से घिर गया। बिजलियां कड़कने लगी। बादलों ने जोर की गड़गड़ाहट के साथ मूसलाधार बारिश की। नगरवासी खुशी से बारिश में नहाने लगे। राजा ने महामंत्री से कहा- पौधे मंगवाए जाए। हम इस पावन वर्षा में खुद पौधा लगा करके अपने राज्य में पेड़ लगाओ अभियान की शुरूआत करेंगे।
शिक्षा : पर्यावरण बचाने के लिए पेड़ अवश्य लगाए।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
