आषाढ़ का महीना बीत चुका था और सावन भी मुट्ठी के रेत की भांति फिसलता जा रहा था, लेकिन आकाश एकदम साफ था। दूर-दूर तक बादलों का नामोनिशान तक नहीं दिखाई दे रहा था। रामनगर में उदासी की चादर फैली हुई थी। राजा शुद्धोधन और उसका दरबार चिंताओं के सागर में डूबा हुआ था। दरबार […]
