भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
बैल की पहचान-एक किसान और उसकी पत्नी बहुत मेहनती थे। अचानक किसान बीमार पड़ गया। उसने बैल क्रय कर लाने थे किन्तु बीमार आदमी मेले में कैसे जाए। बिना बैलों के किसान कैसा किसान। उसने अपनी पत्नी को नलवाड़ मेले से बैल क्रय करने को तैयार तो कर दिया पर वह बेचारी को तो बैल खरीदने का पता भी नहीं था। उसने बैल के रंग-ढंग, चाल-ढाल के विषय में किसान से पूछा। क्योंकि इन दिनों सभी लोगों को अपनी-अपनी पड़ी रहती है उसके साथ कौन जाता। किसान ने उसे इस तरह बताया खड़ी सिंगोटी, काली लंगोटी।
पीठी जो डोरी, मत पूछ दी होरी। किसान ने कहा जिन बैलों के खड़े सींग हों, नाभी कम और अंडकोष कसे हों, पीठ में डोरी की भान्ति सीध हो, जुआ रखने का खड़ा भाग हो वैसी बैल की जोड़ी लेना। किसी भी दूसरे को पूछने की कोई जरूरत ही नहीं।
तो जी किसान अकेले ही नलवाड़ी मेले में गई और जो पहचान बैलों की किसान ने बताई थी वैसे ही बैल लेके वह आ गई। अनजाने कार्य के लिए जानकार व्यक्ति से शिक्षा लेनी चाहिए फिर कोई हानि नहीं होती।
काला और गोरा
गेहूं और उड़द की शादी हो गई थी। पर जी, गेहूं अपने को बहुत सुन्दर समझती थी। अपने को गोरा गोरा कह कर आनंद में रहती थी जबकि उड़द को काला-काला कहकर हमेशा उसका अपमान करती रहती थी। उड़द उसे कुछ नहीं कहता था बस हंस कर टाल देता था। महीने बीत गए किन्तु गेहूं ने उसकी बेइज्जती करना न छोड़ी। एक दिन अचानक उड़द को गुस्सा आ गया। उसने गेहूं को इतने जोर का थप्पड़ मारा कि वह धड़ाम से गिर पड़ी और उसे गहरा निशान पड़ गया। सयाने कहते हैं कि गेहूं को वह निशान आज तक
एक गहरा सुस्कार भरकर उड़द ने उसे कहा- अच्छा है, तू गोरी और मैं काला हूं। परन्तु कुदरत ने सभी को सुन्दर-सुन्दर गुण दिए हैं। मैं अपनी प्रशंसा नहीं करता। बेशक मैं काला हूं किन्तु भली मानुष नवें अन्न, संक्राति-उत्सव, सहभोज-नामकरण, ब्याह-शादी, कथा-यज्ञ प्रत्येक शुभ कार्य में मेरा सत्कार होता है। तुमसे तो ज्यादा ही मेरे नए-नए पकवान बनते हैं और तो और मुझे पीस-गूंध कर मसाला बना चिनाई कर पत्थरों के बड़े-बड़े गढ़-किले अभी तक खड़े हैं। वे इतिहास बना रहे हैं। सभी तरह की आकांक्षा वाले लोग मुझे बहुत पसन्द करते हैं। परन्तु तुम तो मनुष्य-मनुष्य के बीच काले और गोरे का भेदभाव करती हो, अभद्रतापूर्वक अपमान करना ठीक नहीं। मैं भले ही काला हूं, काला ही ठीक हूं किन्तु तुम अपने गोरे रूप पर घमण्ड करती हो तो करती रहो।
गेहूं को थप्पड़ से अधिक उड़द की बातें कलेजे में चुभी। उड़द की बातें सुन उसे अक्ल तो आई ही साथ में शर्मीन्दगी भी बहुत हुई। उसका घमण्ड चूर-चूर था। उसने कसम खाई कि वह कभी भी अपने रूप का गर्व नहीं करेगी और न ही किसी को निम्न समझेगी। अब वह उड़द को बहुत प्यार से देखने लगी थी। उसका अन्त:करण स्वच्छ हो गया था।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
