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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

आषाढ़ पागल-सा बनकर धरती पर बरस रहा था और किसानों के दिल में मानो मोर केका कर रहे थे। खेतों में मानो गांव बस गया और यह गांव सारी सीम का दोस्त बन गया था। बिरहा ललकारते हुए हाथ में रस्सी लेकर खेत जोत रहे हरेक किसान के दिल में आनंद की होली बरस रही थी। उस वक्त देवीदान गढवी नामक एक आदमी अपने खेत में खड़ा बार-बार मानो आहे भर रहा था। खेत जूते तो कैसे जूते? उसके पास केवल एक ही बैल था! एक ही बैल से भला खेत कैसे जोता जा सकता है? निराश होकर खडे देवीदान गढवी के पास आकर उसकी पत्नी ने कहा, ऐसे बैठे रहने से क्या होगा? ऐसे थोड़े बीज बो सकोगे? ऐसा करो, बैल की एक ओर मैं जुत जाती हूं। देवीदान के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वह मानने को तैयार नहीं था। उसने अपने कान को हिलाया। फिर पत्नी से कहा- “नहीं-नहीं देवी! भला ऐसा थोडे ही किया जा सकता है?”

  • “लेकिन क्या बुनाई बाकी रखने से चलेगा? ठीक मौके पर बरसात हुई है और अगर बीज नहीं बोयेंगे तो फिर सारे बरस तक खाएंगे क्या?” पत्नी ने अपने पति को समझाते हए कहा। देवीदान भी इसी चिंता में था लेकिन अभी. इस वक्त हर एक किसान अपने-अपने खेत जोत रहा होगा। ऐसी स्थिति में भला उसे बैल कौन दे सकता है? देवीदान के पास दूसरा बैल खरीदने की कोई स्थिति नहीं थी। कोई और चारा न देखकर उसने अपनी पत्नी को दूसरी धोंसरी पर जोड़ दिया।

सप्रेडा गांव में देपालजी गोहिल का राज था। आषाढ सुदी चौथ के पवित्र दिवस पर राजा देपाल जी मोतिसरी तालाब की ओर घूमते-घूमते चारण के खेत के पास से निकले। यकायक उनकी नजर एक दृश्य पर अटक गई। उन्होंने देखा कि हल की एक ओर बैल है और दूसरी ओर औरत! इस तरह कोई अपना खेत जोत रहा है। देपालजी कुछ देर तो स्तंभित खड़े रह गए। ऐसा भी भला हो सकता है क्या? उनके दिल में मानो दाग पड़ गया और वे दौड़ पडे। उन्होंने उतावली से कहा- “अरे चारण! यह क्या? अपने ही लोगों पर ऐसा जुल्म?”

  • “सप्रेडा के राजवी! तुम्हारे राज में हल के साथ जोतने के लिए बैल कहां मिलता है?”

सर ऊंचा कर अपने राजा की आंखों में आंख मिलाकर चारण ने कहा। राजा चुपचाप सुनते रहे तो चारण ने आगे कहा- “और दूसरा करे भी क्या? वावणी और तावणी क्या किसी की राह देखते हैं भला?”

  • “ठीक कहते हो! मेरे राज की प्रजा को बुवाई के लिए बैल भी नहीं मिलते और हल पर औरतें जोतनी पड़ती है! चारण! अब इस पाप का प्रायश्चित मुझे ही करने दे। मैं खुद ही जुत जाता हूं तेरे हल से।”

– “अरे महाराज!” चारण आश्चर्य से कहता रहा लेकिन देपाल जी ने उसकी बात न सुनी और हल को रोक दिया। चारण की स्त्री को धोंसरी से निकल जाने को कहा और खुद वहां जुड़ गए। चारण के मुंह से तुरंत ही एक दोहा निकल गया-

“चारणी जोड़ी सांतीये, जेणा वावणी टाणा जाय

देपालजी धरम सम्भार्यो, जुसरे लई कांध पर धर्यो!”

गंगाजलिये गोहिलों में धर्म के अवतार माने जाने वाले देपाल जी ने धूसरी के साथ जोतकर जार के दो चास बो कर बुनाई का काम खत्म किया। अपने घर जाकर उन्होंने तुरंत ही एक बैल चारण को भेजा।

सर्दी के दिनों में खेत में मोल लहरा रहा था। हवा को भी निकलने की जगह ना हो इस तरह से मोल की कटिया झूल रही थी। तब देवीदान के खेत में दो चासो में मानो सच्चे मोती पक्के हो, ऐसा हाल था। जहां पर देपाल जीने अपनी गर्दन धर कर बीज बोए थे, वहां तो इतनी जार पक्की थी कि देवीदान के मुंह से निकल गया।

“ए जाणत तणावरे सत ताहरे मोती थाय

तो सप्रेडाना धणी हळ हाकत आखं ताहरे कांधथी”

तेरे सिर से जब मोती पकते हैं ऐसी खबर पहले से होती तो ओ सप्रेडा के मालिक देपालजी! सारे खेत में हम तेरे पास ही हल चलवाते।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’