भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
विजय नामक व्यक्ति मध्य प्रदेश के एक छोटे से शहर में रहता है। यही कुछ दिन पहले की बात है…
एक दिन ऑफिस से वापसी में उसको बहुत देर हो चुकी थी।
रात के दस बज रहे थे। बस से उतरके उसे रोज आधा किलोमीटर चलना पड़ता था घर जाने के लिए।
वह उस दिन भी बस से उतरके जल्दी-जल्दी घर की तरफ बढ़ने लगा। रास्ता बिलकुल सुनसान था।
दूर तक रास्ते में कोई न दिखाई दे रहा था। बस कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनाई दे रही थी। वैसे भी करोना काल में लोग रात को ज्यादा निकल नहीं रहे घर से.. उसने सोचा।
अचानक उसे तीन लोग दिखे जो रास्ते की साइड में बैठ के खुसर-फुसर कुछ बात कर रहे थे।
विजय ने सोचा मेरे पड़ोस के लोग तो नहीं है…
अगर कोई जान-पहचान वाला हो तो अच्छा है।
साथ चलेंगे। यही सोच कर वह थोड़ा करीब गया। अब पास जाके उसने जो देखा उसके तो होश उड़ गये।
वे तीन आदमी नहीं तीन छाया थे लेकिन जो बात कर रहे थे, वह विजय को स्पष्ट सनाई दे रही थी।
“अरे भाई, हम सब तो कोरोना से मरे हैं। इसलिए दोस्त बन गए हैं। अब यारों से क्या छिपाना… चलो अपनी-अपनी कहानी सुनाओ… की कैसे यह रोग लगा?
प्रथम छाया बोला..
मेरा नाम गड़बड़ सिंह है। मैं ट्रक ड्राइवर हूँ। कोरोना से मैं कभी न डरता था। जब सरकार ने मास्क पहनने की घोषणा की, तब भी मैं पहनता नहीं था। एक मास्क अपने पास रखता था पॉकेट में। पुलिस को देखने से पहनू वरना निकाल देता था।
बाप रे मास्क से तो साँस रुक जाती है। उसको कौन पहनेगा? अब एक दिन बिना मास्क के बाजार चला गया और घर आके बुखार और खांसी चढ़ी। बस एक हफ्ता में मेरी मौत हो गयी। अब सोच रहा हूँ काश मैं उस दिन मास्क पहना होता!
दूसरी छाया बोलने लगा..
मैं झटपट कुठारीलाल। मैं एक बिजनेसमेन था। मैं भी कभी न मास्क पहनता था।
मैं इतना हट्टा-कट्टा हूँ। मुझे थोड़ी कोरोना होगा। खूब विश्वास था अपनी सेहत पर। दोस्तों के साथ खूब छुपके पार्टी की। आसपास बैठ के खूब गप्पे मारे। सोशल डिस्टेंस सुन के हंसी आ रही थी। अरे… यार दोस्तों से कैसी दूरी?
मेरा एक फ्रेंड खांस रहा था। मैंने उसको न डरने की सलाह दी। अरे हम तो जवान है। कोरोना तो बूढो को होती है। उस दिन रात को मैं घर आया तो मुझे बुखार था।
और दो दिन में मैं हॉस्पिटल में खत्म हो गया।
तीसरी छाया बोला… मैं प्रेमी प्रीतम प्यारा। मैं सरकारी कर्मचारी था। करोना में मैं मास्क तो पहनता था, सोशल डिस्टेंस की बात भी मानी क्योंकि मुझे ज्यादा मिलना-जुलना अच्छा नहीं लगता था लेकिन यूँ बाहर जाके आने से बार-बार हाथ-पैर कौन धोएगा! मुझे वह बात पसंद नहीं।
मुझे बार-बार अपने मुँह को हाथ लगाना अच्छा लगता है।
मैं आखिर इतना सुन्दर जो हूँ। बस पता नहीं कैसे ये बीमारी आयी और मैं खत्म हो गया।
यही बात कर रहे थे कि वह सब विजय की तरफ मुड़े और कहने लगें… अरे वाह और एक दोस्त आया। ये तो हमारा पड़ोसी विजय है। ये तो कभी मास्क नहीं पहनता है, कभी सनीटाईजर यूज नहीं करता और खूब दोस्तों के साथ गप्पे मारता है। मैंने देखा है। अब नेक्स्ट ये आएगा अपनी टीम में।
वह तीनों विजय की तरफ बढ़ने लगे तो विजय वहां से खूब तेज भागा। घर पहुँच के उसकी जान में जान आयी लेकिन उसको अपनी गलती का एहसास भी हुआ।
कोरोना काल में सरकार जो हम को बार-बार सतर्क कर रही है, वह हम लोगों की भलाई के लिए ही। यह भीषण बीमारी से निपटने के लिए हमारा कदम ऐसा हो…
हमेशा बाहर जाते समय मास्क पहनें।
सोशल डिस्टेंस बनाये रखें।
सनीटाईजर को अपने पास रखा करें।
कुछ भी छुने के बाद हाथ साफ करें।
बार-बार मुँह और नाक पर हाथ न लगाया करें।
अपने कपड़े और हाथ-पैर घर वापस आने पर जरूर साफ करें।
अपने आसपास गंदगी न फैलायें और अपने दोस्तों को सचेत करें।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
