sati by munshi premchand
sati by munshi premchand

मुलिया को देखते हुए उसका पति कल्लू कुछ भी नहीं है। फिर क्या कारण है मुलिया संतुष्ट और प्रसन्न है, और कल्लू सशंकित और चिंतित।

मुलिया को, कौड़ी मिली है, उसे दूसरा कौन पूछेगा? कल्लू, को रत्न मिला है, उसके सैकड़ों ग्राहक हो सकते हैं। खासकर उसे अपने चचेरे भाई राजा से बहुत खटका रहता है। राजा रूपवान है, रसिक है, बातचीत में कुशल है, स्त्रियों को रिझाना जानता है। इससे कल्लू मुलिया को बाहर बहीं निकलने देता। उस पर किसी किसी की निगाह भी पड़ जाये, उसे यह असह्य है। वह अब रात-दिल मेहनत करता है, जिससे मुलिया को किसी बात का कष्ट न हो। उसे न जाने किस पूर्व जन्म के संस्कार से ऐसी स्त्री मिल गयी है। उस पर प्राणों को न्यौछावर कर देना चाहता है। मुलिया का कभी सिर भी दुखता है तो उसकी जान निकल जाती है। मुलिया का भी यह हाल है कि जब तक यह घर नहीं आता, मछली की भांति तड़पती रहती है। गाँव में कितने ही युवक हैं, जो मुलिया से छेड़छाड़ करते रहते हैं, पर उस युवती की दृष्टि में कुरूप कलुआ संसार भर के आदमियों से अच्छा है।

एक दिल राजा ने कहा- भाभी, भैया तुम्हारे जोग न थे।

मुलिया बोली- भाग में तो वह लिखे थे, तुम कैसे मिलते?

राजा ने मन में समझा, बस अब मार लिया है। बोला-विधि ने यही तो भूल की।

मुलिया मुस्कराकर बोली- अपनी भूल तो वही सुधारेगा।

राजा निहाल हो गया।

तीज के दिन कल्लू मुलिया के लिए लट्ठे की साड़ी लाया। चाहता तो था कोई अच्छी साड़ी ले, पर रुपये न थे और बजाज ने उधार न माना।

राजा भी उसी दिन अपने भाग्य की परीक्षा करना चाहता था। एक सुंदर चुनरी लाकर मुलिया को भेंट की।

मुलिया ने कहा- मेरे लिए साड़ी आ गई है।

राजा बोला- मैंने देखी है। तभी मैं इसे लाया। तुम्हारे लायक नहीं है। भैया को किफायत भी सूझती है, तो ऐसी बातों में।

मुलिया कटाक्ष करके बोली- तुम समझा क्यों नहीं देते?

राजा पर एक कुल्हड़ का नशा चढ़ गया। बोला- बूढ़ा तोता कहीं पढ़ता है?

मुलिया- मुझे तो लट्ठे की साड़ी पसंद है।

राजा- जरा यह चुनरी पहनकर देखो, कैसी खिलती है।

मुलिया- जो लट्ठा पहनाकर खुश होता है, वह चुनरी पहन लेने से खुश न होगा। उसे चुनरी पसंद होती, तो वह चुनरी लाता।

राजा- उन्हें दिखाने का काम नहीं है।

मुलिया विस्मय से बोली- मैं क्या उनसे बिना पूछे ले लूंगी?

राजा- इसमें पूछने की कौन-सी बात है। जब वह काम पर चला जाये, पहन लेना। मैं भी देख लूंगा।

मुलिया ठट्ठा मारकर हँसती हुई बोली- यह न होगा, देवरजी। कहीं देख लें तो मेरी सामत ही आ चाय। इसे तुम लिये जाओ।

राजा ने आग्रह करके कहा- उसे न लोगी भाभी, तो मैं जहर खा के सो रहूंगा।

मुलिया ने साड़ी उठाकर आले पर रख दी और बोली- अच्छा लो, अब तो खुश हुए।

राजा ने उंगली पकड़ी- अभी तो भैया नहीं हैं, जरा पहन लो।

मुलिया ने अंदर जाकर चुनरी पहन ली और फूल की तरह चमकती-दमकती बाहर आयी।

राजा ने पहुँचा पकड़ने को हाथ फैलाया। बोला-ऐसा जी चाहता है कि तुम्हें लेकर भाग जाऊँ।

मुलिया उसी विनोद-भाव से बोली- जानते हो, तुम्हारे भैया का क्या हाल होगा?

यह कहते हुए उसने किवाड़ बंद कर लिया। राजा को ऐसा मालूम हुआ कि थाली परोसकर सामने से उठा ली गई।