हां दीदी हां-21 श्रेष्ठ लोक कथाएं उत्तराखण्ड: Brother and Sister Story
Brother and Sister Story

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

Brother and Sister Story: किसी पहाड़ी गांव में एक निर्धन किसान का परिवार रहता था। किसान की एक बेटी और एक बेटा था। किसान की पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। अपने दोनों बच्चों का पालन-पोषण वह स्वयं करता था। समय के साथ बच्चे बड़े हो गये। बेटी बड़ी थी, सो किसान को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। उसने पाई-पाई जोड़कर जैसे-तैसे उसका विवाह कर दिया। एक-दो साल बाद किसान की मृत्यु हो गयी, अब उसका बेटा अनाथ हो गया। उसकी दीदी को अपने भाई की चिंता सताने लगी। उसका ससराल भी ज्यादा सम्पन्न नहीं था तो वह अपने सास-ससुर से इस बारे में बात करने में संकोच करने लगी। परन्तु भाई की चिंता में उसने हिम्मत बांध कर भाई को ससुराल में रखने की बात ससुरालियों से की। ससुराल वालों ने बहू की बात मान तो ली परन्तु कुछ शर्तों के साथ। ये शर्ते थी।

1. उसके भाई को भोजन में भूसे की रोटी और बिच्छू का साग (बिच्छू एक प्रकार की पहाड़ी घास होती है जो सब्जी बनाने के काम भी आती है) दिया जायेगा।

2. उसे चक्की की ओट में सोना होगा।

3. मवेशियों को चराने की जिम्मेदारी उसकी होगी।

बहन को ये बातें बिलकुल भी उचित नहीं लगी परन्तु भाई प्रेम और उसकी अकेले रहने की चिंता में उसने यह शर्ते मान ली। भाई ने भी परिस्थिति के अनुसार मन पसीज कर यह शर्ते मान ली। अब भाई अपनी बहन के ससुराल में रहने लगा।

धीरे-धीरे भाई अब उस परिवेश मे घुल-मिल गया। वह दिन में मवेशियों को चराने जंगल जाता और रात को भोजन में मिली भूसे की रोटी और बिच्छू घास की सब्जी खाकर, वहीं चक्की की ओट पर टाट बोरी बिछा के सो जाता। ऐसे ही वक्त बीतता गया। एक दिन मवेशियों को जंगल में चराते-चराते उसे एक अंजान व्यक्ति मिला। उस व्यक्ति ने उसे साथ चलने को कहा। पहले तो उसने साथ आने से मना किया परन्तु जब उस अजनबी ने उसे अच्छा काम और अच्छे भविष्य का लोभ दिखाया तो वह सोचने लगा कि बहन के घर में बोझ बनने से अच्छा कहीं और काम करके धन कमाया जाये। उसने साथ चलने की हामी भर दी।

शाम को जब भाई नहीं लौटा तो बहन को चिंता होने लगी। गांव में भी बात फैल गयी, उसकी खोजबीन की गयी। जब वह नहीं मिला तो सबने उसे मृत समझ लिया। बहन बहुत दुखी रहने लगी। उसे यकीन नहीं हुआ कि उसका भाई मर चुका है। खैर दिन महीने साल निकलते रहे। धीरे-धीरे वह अपने भाई को भूलती रही लेकिन तीज-त्योहारों में जब आस-पड़ोस की औरतें अपने भाई से मिलने जाती या उनके भाई उनसे मिलने आते तो वह अपने भाई को याद करके आंसू बहाती। ऐसे ही समय निकलता रहा और एक दिन उसे उसके भाई का संदेश मिला, वह फूली नहीं समाई। जिसे वह मरा समझ चुकी थी, वह जिंदा था। वह भाई से मिलने अपने मायके गई।

घर पहुंच कर उसे भाई की सम्पन्नता देखकर आश्चर्य हुआ। भाई ने उसे भूतकाल में जो भी हुआ सब बताया। दोनों एक-दूसरे से मिलकर बहुत खुश हुए। भाई ने उपहार स्वरूप बहन को बहुत धन दिया लेकिन उसकी बहन ने यह कह कर मना कर दिया कि उसे उसका भाई मिल गया उसे अब कुछ नहीं चाहिये। जब उसने धन लेने से मना किया तो भाई ने उसे दो गायें और एक भैंस देनी चाही तो बहन ने वह रख ली। भाई खुश हुआ कि बहन ने उसका एक उपहार स्वीकार कर लिया। उसने गाय के गले में घंटी बांध दी और बहन के साथ भेज दिया।

बहन उन गायों और भैंस के साथ ससुराल को चल दी। सुनसान रास्ते में गाय के गले में बंधी घंटी का स्वर बहन को अच्छा लग रहा था। उसे लगा जैसे घंटी से आवाज आ रही हो-

भूसे की रोटी, सिसूण का साग खाएगा-हां दीदी

चक्की की ओट में सोएया-हां दीदी

झाडू की मार सहेगा-हां दीदी हां

घंटी मानो यही बातें बोल रही हो, यह सोचकर वह जोर-जोर से हंस पड़ी।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’