Hindi Kahani: “बहुत अच्छे आकाश! विवाह की अग्रिम बधाई! मैं बस तुम्हारी चीजें लौटाने आई हूँ और अपनी चीजें वापस लेने और हाँ! शादी नहीं करनी थी तो पहले ही मना कर देते। इतने दिनों तक किसी के जज़्बात से खेलते रहे। क्या ऐसा करना जरूरी था?”
दीपिका को अनायास आया देखकर आकाश स्तब्ध था। मगर दीपिका पर तो जैसे एक जुनून सा सवार था। वह अपनी भावनाओं को काबू करने में असमर्थ थी। उसने लगभग 20 ग्रीटिंग कार्ड और 10 पत्र मेज़ पर पटक दिये।
“मुझे माफ़ कर दो दीप! यह निर्णय मेरा नहीं है! मेरी कोई नहीं सुन रहा है..दीदी पता नहीं क्यों ये सब कर रही हैं….।” आकाश हकला रहा था।
“अरे! फिर सच्चाई सामने रखते ना! इसमें पढ़ाई बीच मे क्यों लाये?”
“दरअसल मुझे कंपनी से अमेरिका भेजा जा रहा है। इसलिए दीदी ने कहा कि उनकी ननद ज्योति इंग्लिश मीडियम से पढ़ी है। वह एडवांस लड़की है। आसानी से विदेश में एडजस्ट करेगी। मुझे उसी से विवाह करना चाहिए।”
“फिर आचार्य जी के निर्णय का क्या?” दीपिका ने आचार्य ब्रह्मदेव की याद दिलाई जिनपर दोनो परिवारों की आस्था थी। आचार्य ब्रह्मदेव दोनो बच्चों को खूब समझते थे। दीपिका और आकाश उनके मनपसन्द शिष्य थे। उन्होंने ही यह विवाह तय किया था और इस आदर्श जोड़ी को आशीर्वाद देकर विवाह बंधन में बांधने की आज्ञा दे डाली थी।
“दीदी कह रही हैं कि आचार्य जी आज की जरूरतों को नहीं जानते।”
“ठीक है आकाश! तुम जैसा ठीक समझो। माता पिता के नहीं रहने पर दीदी ने ही तुम्हारी देखभाल की है। अपने भाई का बुरा-भला उनसे अच्छा भला कौन सोच सकता है। तुम उनकी पसंद से ही शादी कर लो। मैं तो बस तुम्हारी ये निशानियां लौटाने आई थी और अब जबकि तुम्हारा-मेरा रिश्ता खत्म हो रहा तो इन्हें अपने पास रख कर भला क्या करूँगी।” आज उसकी आवाज में गजब की दृढ़ता थी।
आकाश भाई-बहनों में सबसे छोटा था। उसने आजतक हर फैसला घर के बड़ों के अनुसार लिया था। दीपिका के साथ विवाह का फैसला बड़ी दीदी और जीजाजी के स्वाभिमान पर प्रहार था। यह परिवार की आखिरी शादी थी और इस विषय में उनकी राय नहीं ली गई थी। यही कारण था कि वो अपनी कॉन्वेंट एडुकेटेड ननद को बीच में ले आयीं।
“आकाश और ज्योति एक जैसे आधुनिक हैं, उनकी जोड़ी सही रहेगी!”
दीदी ने फटाफट अड़ंगा लगा दिया कि अगर उनकी ननद ज्योति से विवाह हुआ तभी वह इस शादी में शरीक होंगी वरना जिस विवाह में उनकी सहमति नहीं है, उस विवाह से उन्हें कोई लेना-देना नहीं। अचानक एक सप्ताह पहले निर्णय में फेरबदल आसान न था। सभी धर्मसंकट में थे। आकाश दीपिका से दिल लगा बैठा था पर दीदी का विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। इधर दीपिका के घर पर शादी की तैयारियां हो रही थीं ऐसे में तो लड़की वालों को कोई कहे भी तो कैसे? दीदी ने बिना सोचे विचारे दीपिका के पिता को फ़ोन पर सूचना दे डाली।
“मेरे भाई को हमेशा विदेश में ही रहना है ऐसे में एक इंग्लिश मीडियम लड़की ही उसके लिए ठीक रहेगी। ईश्वर ने चाहा तो आपको भी अपनी बेटी के लिए जल्दी ही सुयोग्य वर मिल जाएगा। कृपया मेरी बात को अन्यथा ना लेते हुए विवाह कैंसिल समझिए। यथाशीघ्र सभी रिश्तेदारों को सूचित कर दीजिए!”
बेटी का पिता तो ऐसे भी डरा ही रहता है। वो क्या बोलते! लोगों को क्या समझाते और कैसे? दीपिका को यह सब अप्रत्याशित लग रहा था। पहले तो सकते में आ गयी। ऐसा कुछ होगा इसका अंदाज़ा बिल्कुल न था पर पिता को शोक संतप्त देखकर उसने खुद को संभाल लिया। पिता के पास आई और आकाश से एक बार मिलने की जिद कर बैठी। हरीश जी अपनी लाडली को जानते थे। उसने अगर एक बार ठान लिया तो वह करके ही मानेगी। अतः मना नहीं कर पाए और दोनों आकाश से मिलने आ गए।
आकाश नज़रें झुकाये बैठा था। शायद मानसिक रूप से इस प्रतिक्रिया के लिए तैयार ना था। दीपिका ने फिर कहा “मैं हिंदी मीडियम ही सही पर तुम्हारे प्यार का इज़हार करते ये ख़त व कार्ड्स समझ में आते थे, इन्होंने मुझमें प्रेम जगा दिया था। अब अपने प्रेम के इन पुलिंदों को संभालो और मेरी सभी कोमल भावनाएं लौटा दो, फिर तुम आराम से घरवालों की पसंद से शादी कर सकते हो।चौंकों मत ! मैं जानती हूँ ये आसान नहीं! पर क्या करूँ ? भावनाओं का कोई मीडियम नहीं होता ना, ये तो जुड़ गईं हैं। मुझे अपनी जिंदगी जीने के लिए मेरी वही भावनाएं वापस चाहिए जो मैंने तुम्हें दिया है।”
आकाश को आज दीपिका में कुछ अलग ही दिखा। उसके इस रूप को देख कर दंग रह गया। ऐसी दृढ़ प्रतिज्ञ लड़की उसने पहले कभी नहीं देखी थी। उसे तो बिल्कुल ऐसी ही पत्नी चाहिए थी, बोल्ड एंड ब्यूटीफुल!
उसके इस रूप को देख कर उसका साहस जाग गया। उसने हाथ जोड़कर हरीश जी से क्षमा मांगी और भावी पत्नी का हाथ अपने हाथों में लेकर घर के अंदर गया।
“मैंने आँखें मूंद कर अब तक आप बड़ों की आज्ञा मानी और सबका चहेता बना रहा, पर पहले विवाह तय कर फिर उसे महज़ अपने अहं के लिए तोड़ना सही नहीं और एक बात, उच्च कोटि के चरित्र निर्माण व आत्मविश्वास के लिए कोई व्यक्ति इंग्लिश या हिंदी मीडियम का मोहताज़ नहीं होता| आज मैं आपको अपनी सच्ची संगिनी से मिलाना चाहता हूँ, जिसने मेरी आँखें खोल दीं। दीपिका के व्यक्तित्व पर मुझे गर्व है। आप सबसे यह कहते हुए प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है कि दीपिका से अच्छी जोड़ीदार मेरे लिए कोई और हो ही नहीं सकती। इसमें अपने निर्णय स्वयं लेने की वो खूबी है, जो मुझमें भी नहीं। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं इस जन्म में ही नहीं बल्कि हर जन्म में इसे ही अपनी अर्धांगिनी बनाना चाहूँगा।”
पहली बार घरवालों के सामने आकाश ने अपनी पसंद को पूर्णविश्वास के साथ रखा। उसके चेहरे पर ख़ुशी की चमक देख दीदी ने भी राज़ी ख़ुशी अपनी स्वीकृति दे दी। दीपिका के स्नेहपूर्ण स्वभाव और इच्छाशक्ति ने उनपर भी अमिट छाप छोड़ी थी। विवाहोपरांत उसने सबके हृदयों को जीत लिया । इस प्रकार अपने आत्मविश्वास के बल पर वह अपने पति के कदम से कदम मिलाकर चलती हुई देश-विदेश में आनंदपूर्वक जीवन बसर करती रही।
