चेहरे की चमक -गृहलक्ष्मी की कहानियां
Chehre ki Chamak

Hindi Kahani: विडियो कॉल में अपनी बड़ी बहन कनिका से बात करते हुए अनिका उसके चेहरे की चमक देख रही थी पचपन की उम्र में भी उसका चेहरा सौलह साल की किशोरी की तरह आकर्षक लग रहा था।

आज वो बहुत खुश नजर आ रही थी। उसका बेटा आकाश आई एस ऑफिसर जो बन गया था। 

“दीदी आपकी मेहनत सफल हुई। आपके संघर्ष का फल आपको मिल गया।”

“हां अनिका भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली। बेटे ने बहुत मेहनत की थी। दिन रात एक कर दिया था उसने अपनी पढ़ाई में, कई कई रात सोता  ही नहीं था और पढ़ता रहता था। मेरी तो हैसियत ही नहीं थी इसे अच्छे प्राइवेट स्कूल और कोचिंग सेंटर में पढ़ाने की। इसने सरकारी स्कूल और अपनी मेहनत के बल पर ही आज यह मुकाम हासिल किया है। मेरा आंचल खुशियों से भर दिया।”

“हां जानती हूं दीदी  आकाश बहुत मेहनती है पर यह गुण भी तो उसने आपसे ही सीखा है। आपने उसे पालने पोसने पढ़ाने लिखाने में कितनी तपस्या की। जीजाजी के आपको छोड़कर जाने के बाद आपने अकेले उनकी परवरिश की। आपके ससुराल वालों ने भी आपका साथ नहीं दिया और अब… बड़े शान से कहेंगे कि उनका खून है तभी इतना होशियार है और बड़ा अफसर बन गया।”

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“छुटकी छोड़ उन पुरानी बातों को आज खुशी का दिन है मैं वो सब भूल चुकी हूं।”

“प्रणाम मौसी जी “

तभी आकाश की पत्नी श्रेया ने अपनी सास के पास बैठते हुए अनिका से कहा।

“मौसी आप तो मां से ज्यादा बूढ़ी दिख रहीं हैं ऐसा लग रहा है जैसे मां आपसे उम्र में छोटी हैं।”

अनिका झेंप जाती है और अपने मोबाइल के स्क्रीन की एक कॉर्नर पर अपने आप को गौर से देखने लगती है। बालों की सफेदी और चेहरे पर असमय आई यह झुर्रियां उसे उसकी उम्र से बीस साल बड़ा कर रही हैं।

वाकई वो अपने से आठ साल बड़ी बहन से बड़ी लगती है देखने में।

 उसकी बहन के चेहरे की चमक के आगे उसका चेहरा मुरझाया हुआ सा लग रहा था। ऐसा नहीं था कि वो अपनी बहन के बेटे की इस जोरदार सफलता पर खुश नहीं थी। वो तो उसे अपना बड़ा बेटा ही मानती आई है। ग्यारहवीं कक्षा में ही तो थी अनिका जब आकाश का जन्म हुआ था। वो उसे बेटू कहती और सबको बड़ी खुशी से बताती यह दीदी का नहीं मेरा बेटा है। मैं ही इसकी मां हूं। अनिका की मां समझाती ऐसे नहीं बोलते सब तुम्हारा मजाक उड़ाएंगे तुम इसकी मौसी हो।

अनिका की नजरों के सामने आकाश के जन्म का वो दिन याद आ गया।

“अरे! मेरी बहना रानी कहां खो गई। तूं तो मेरी गुड़िया है। यह ऐसे ही बोलतीं है, मैं तुझसे बड़ी हूं और हमेशा रहूंगी। तूं बहुत प्यारी लग रही है, इसकी बात का बुरा मत मानना।”

“नहीं दीदी श्रेया बिल्कुल ठीक कह रही है। मुझे उसकी बात का बुरा नहीं लगा। अच्छा दीदी मैं बाद में  बात करती हूं।”

 इतना कहकर अनिका ने फोन काट दिया। उसकी सास उसे बुला रही थी। 

“लगता है आज रसोईघर में कदम नहीं पड़ेंगे महारानी के। फोन से फुर्सत मिल गई हो तो पधारिए नीचे और  अगर तुमसे नहीं होगा तो बता दो मैं ही बना देती हूं खाना और तुम अपनी मां बहन से फोन पर बात करती रहो। किसी को इस घर में किसी की पड़ी ही नहीं है।”

रोज के इन तानों ने ही तो उसे समय से पहले बूढ़ा बना दिया है। खुशी का एक पल भी वो किसी के साथ बांट नहीं सकती। अपनी बहन के बेटे की सफलता से आज वो भी बहुत खुश है पर यहां उसके ससुराल में उसे जैसे खुश रहने का अधिकार ही नहीं है। ननद अपने छोटे बच्चे को छोड़कर अपनी नौकरी के लिए दूसरे शहर में रहती है। सारा दिन घर के काम के साथ अनिका अपने भांजे को संभालती है। उसका बेटा तो मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए हॉस्टल में रहता है और कभी कभार छुट्टियों में आता है।

सबको चाय नाश्ता देने के बाद ही तो पांच मिनट बहन से बात करने बैठी थी कई दिनों के बाद। 

जब उसकी बहन फोन करती तब उसके पास समय नहीं होता फोन छूने का और जब कभी वो घर की साफ सफाई करते वक्त बहन को फोन लगाती तो वो नहीं उठा पातीं। संजोग से आज दोनों बहनें फ्री थी एक ही समय पर,  ऐसा ही तो लगा था अनिका को जब शाम के चाय नाश्ते के बाद वो अपनी बहन से बात कर रही थी।

रात का खाना बनाने के लिए अभी काफी समय था पर अब सासूमां की आवाज सुनकर माथे पर आंचल रख,पौौ तेज कदम से अपने कमरे से निकल सीढ़ियां उतरती है और रसोई घर में आ जाती है। जहां सिंक में जूठे कप गिलास और नाश्ते की प्लेटें उसका इंतजार कर रही हैं।

वो फटाफट उन बर्तनों को मांजने में लग जाती है।

अपनी बहन का अतीत उसके सामने जीवांत हो उठा था। पच्चीस साल पहले का वो दिन जब उसके ससुराल वालों ने कनिका को मारने की कोशिश की और वो अपनी जान बचाने के लिए भाग कर अपने मायके आ गई थी। लोक लाज के डर से उसकी ही मां ने कितना समझाने की कोशिश की कि… ” बेटी ऐसे ससुराल से भाग कर नहीं आना चाहिए था तुझे। हर औरत को ससुराल में बसने में समय लगता ही है। तूं अपने स्वभाव से उनका दिल जीत सकती थी। तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था अब इस समाज में हम सिर उठाकर नहीं रह पाएंगे। सब तुझमें और मुझमें ही कमी है बोलेंगे कि बेटी को कुछ सिखाया नहीं।”

“मां लोग क्या बोलेंगे इससे हमें फर्क नहीं पड़ना चाहिए, देख नहीं रही दीदी की हालत।

किस तरह से जानवरों की तरह सुलूक किया है इसके साथ उन लोगों ने।”

अनिका चीख उठी थी अपनी मां पर। उस समय वो चौदह पंद्रह साल की ही तो रही होगी पर अपने बहन के मुरझाए चेहरे और जगह जगह चोट के निशान से बिलख उठा था उसका हृदय।

“अब उन जानवरों के पास दीदी को नहीं जाने देंगे हम।”

“तूं भी इसी की तरह हमारी छाती पर मूंग दलना और हमारा सिर हमेशा झुकाए रखना।”

 भाई की इन बातों से दोनों बहन गले लग कर खूब रोई थी। फिर अनिका ने ही अपनी बहन को संभाला।

“दीदी आप चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा। आप कल ही स्कूल में नौकरी के लिए कोशिश करो।”

“छुटकी सिर्फ बारहवीं पास को कौन से स्कूल में नौकरी मिलेगी। कम उम्र में शादी करवा दी गांव देहात में ले जाकर। पांच बार गर्भपात करवाया है मेरा उन दरिंदों ने और मुझे बांझ कहते हैं। तेरे जीजाजी तो साथ रहते नहीं हैं साल में एक आध बार ही कुछ दिनों के लिए आते हैं और अपने मां बाप भाई बहनों की सेवा के लिए मुझे गांव में छोड़ रखा है।”

“दीदी आप हिम्मत मत हारिए और अपने चेहरे से उदासी के इन बादलों को हटा दीजिए। अपनी कॉलोनी में एक नर्सरी स्कूल खुला है जहां टीचर्स की जरूरत है। मेरी सहेली की मम्मी ही उस स्कूल की प्रिंसिपल है। मैं कल ही आपके साथ चलती हूं।”

उसके पिता अपनी दोनों बेटियों के भविष्य की चिंता में चल बसे‌। बहुत कठिन समय था दोनों बहनों के लिए। 

उसकी मां बेटे और समाज के दबाव में आकर भले कुछ भी कहती पर बड़ी बेटी की नौकरी और उसको आगे बढ़ता देख खुश थी।

 कनिका उस समय तीन माह के गर्भ से थी जब उसकी सास ने उसे धक्का दिया और वो पेट के बल गिरी। वो तो जिसको इस धरती पर आना होता है उसे कोई नहीं रोक सकता। कनिका के अपने ससुराल से आने के छह महीने बाद आकाश का जन्म हुआ। बच्चे के जन्म की खबर पर भी उसके ससुराल वालों ने साफ कहा… ” यह हमारा खून नहीं है, हमें इससे कोई मतलब नहीं है।”

 कनिका का पति आया था अपने  बेटे के जन्म की खबर पर और उसे अपने साथ ले जाने की जिद्द करने लगा।

“आप मुझे यहां से ले जाकर फिर अपने गांव उसी नर्क में में छोड़ कर शहर कमाने चले जाओगे। मुझे नहीं जाना आपके साथ।”

“सोच लो कैसे पालोगी अकेले इस बच्चे को। इसे दो समय का दूध नहीं दे पाओगी।”

“पाल लेगी दीदी इस बच्चे को आप चिंता मत कीजिए। इसकी एक नहीं दो मां है।”

 अनिका ने बच्चे को गोद में समेट लिया।

” मैं इसे आपको नहीं ले जाने दूंगी जीजाजी। आपको दीदी के साथ रहना है तो यहीं रहिए।”

अनिका की बात मान ली थी उसके जीजाजी ने और कुछ महीने सब ठीक रहा फिर एक दिन वो कनिका से झगड़ा करके चले गए जब उसके भाईयों ने कनिका के बारे में उल्टा-सीधा बोल कर उसके कान भरे।

तब से अकेले ही आकाश को पाला पोसा पढ़ाया-लिखाया और उसकी शादी करवाई।

आकाश की पत्नी श्रेया बहुत ही समझदार और परिवार के प्रति समर्पित रहने वाली है। अब कनिका के जीवन में खुशियां ही खुशियां है। 

बुरे दिन ज्यादा दिन तक नहीं रहते अपनी मेहनत और लगन से हर समस्या का समाधान इंसान खोज ही लेता है।

 मायके और ससुराल कहीं उसको कोई सहारा नहीं मिला बस अनिका हमेशा अपनी बहन के साथ रही।

अनिका ने अपनी बहन का हमेशा साथ दिया।

 अनिका की शादी के बाद उसके जीवन में भी बहुत कठिनाई आई पर वो अपनी बूढ़ी मां को और ज्यादा दुखी नहीं देख सकती थी इसलिए उसने निर्णय लिया कि कुछ भी हो जाए वो अपनी मां को कुछ नहीं बताएगी। 

मां की खुशी इसी में है कि उसकी बेटी ससुराल में खुश रहे तो वो दिन जरूर आएगा इसी विश्वास के साथ वो रोज सवेरे उठती है और दिन भर अपनी सास की हर बात मानती है।

 उसके बच्चे भी कभी उसका नाम रोशन करेंगे… आखिरी रोटी कब तवे से उतार ली अपने अतीत में भ्रमण करते हुए, उसे पता ही नहीं चला उसकी तंद्रा तो तब भंग हुई जब उसका भांजा उसका आंचल खींचते हुए बोला मामी भूख लगी है। 

उसे गोद में उठा उसका माथा चूम लिया। रसोई के दरवाजे पर खड़ी उसकी सास बोली “बिटिया यह बार बार मेरे पास आ रहा था नानी मां कुछ खाने को दो, इसलिए तुझे बुला रही थी। माफ कर दे कभी कभी तीखा बोल जाती हूं मैं भी।”

“कोई बात नहीं मां जी। खाने में मिर्च का होना भी तो बहुत जरूरी है वरना खाना बेस्वाद हो जाएगा। आप मेरी मां की तरह ही तो हैं फिर आपको माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं। अच्छा पता है दीदी क्या बता रहीं थीं आकाश आई एस ऑफिसर बन गया है।”

“अरे! वाह यह तो बहुत ख़ुशी की बात है। बड़ा संघर्ष किया है तेरी बहन ने।”

सास बहू का रिश्ता मां बेटी जैसा ही बन जाता है जब मां की तरह सास कभी डांट दे तो बेटी उसे अपना दुश्मन ना समझे।

“अरे बिटिया अपना सोनू भी देखना एक दिन बड़ा अफसर बनेगा फिर तेरा चेहरा भी खुशी से चमकेगा। अभी तेरी बहन ने मुझे भी विडियो कॉल पर यह खुशखबरी बताई थी।”

“अच्छा मां।”

कहते हुए अनिका अपनी सास के गले लग जाती है और अपनी बहन का खुशी से चमकता चेहरा उसकी नजरों में समा जाता है। बच्चों की सफलता से सबसे ज्यादा खुश उनकी मां ही होती है।