Jaldi Karo Beta
Jaldi Karo Beta

Hindi Motivational Story: “आकाश! जल्दी करो बेटा, स्कूल बस आने वाली है।” आकाश की मां उसे आवाज़ लगाती है। मां-बाप और उनका इकलौता बेटा आकाश किसी भी एक आम घर की तरह सुबह की भागम भाग में लगे थे। आकाश के पिता का तबादला हुआ था और इसलिए कलकत्ता शहर के बड़े अच्छे स्कूल में उसका आज पहला दिन था। आकाश जब कक्षा में पहुंचता है तो उसके साथ जो लड़का बैठा था उसका नाम राहुल था। शुरू में तो दोनों सिर्फ़ पढ़ाई की बात करते थे या कभी-कभी खाना भी साथ खाते पर धीरे-धीरे गुज़रते वक्त के साथ उनकी दोस्ती परवान चढ़ती गई। दोनों अब हमेशा साथ रहते, खाते, पढ़ते और घूमते।

राहुल कभी-कभी आकाश के घर भी आया करता था क्योंकि वह स्कूल के काफ़ी पास था। एक दिन राहुल आकाश को अपने घर आने के लिए कहता है, “मैं तो तेरे यहां कईं बार आया हूं, तू तो कभी भी मेरे घर नहीं आया। आंटी से बोल दे और कल स्कूल के बाद मेरे घर चल।” अगले दिन दोनों स्कूल के बाद राहुल के घर जाते हैं। वहां पहुंचकर आकाश राहुल के माता-पिता और बड़ी बहन अपेक्षा से मिलता है। अपेक्षा से मिलकर न जाने क्यों उसे ऐसा लगा मानो वो उसकी बड़ी बहन हो। आकाश अब अक्सर वक्त निकाल कर राहुल के घर जाने लगा था। कईं बार तो रात को भी वहीं रूकता। दीदी से मिलना और बातें करना उसे बहुत अच्छा लगता। ऐसा लगता मानो अपनी बड़ी बहन के साथ हो। अपेक्षा गणित में ऊंची पढ़ाई कर रही थी। उसका गणित काफ़ी अच्छा होने की वजह से वह आकाश और राहुल की पढ़ाई में बहुत मदद करती थी। आकाश को एक बड़ी बहन की कमी बहुत महसूस होती थी। राहुल का घर मानो तो आकाश के लिए दूसरा घर बन गया था।

वैसे तो आकाश को अपना घर बहुत प्यारा था और वह अपने मां बाप की बहुत इज्ज़त भी करता था लेकिन उनकी एक बात उसे बुरी लगती थी जो उसे राहुल के घर में बिल्कुल नज़र नहीं आई। लड़कियों के लिए राहुल के घर में बहुत इज्ज़त और प्यार था लेकिन आकाश के मां-बाप लड़कियों को हमेशा कमज़ोर और बेकार समझते थे। वो सिर्फ़ लड़कों को ही मान्यता देते थे। उनको लगता था बस बेटा ही होना चाहिए, लड़कियों की कोई ज़रूरत नहीं। जबकि राहुल के यहां उसकी बड़ी बहन की इज्ज़त राहुल के बराबर थी। 

एक दिन राहुल के पास आकाश का फ़ोन आता है, “राहुल जल्दी आजा यार।”  राहुल पूछता है, “ क्या हुआ? तू रो क्यों रहा है?” आकाश रोते हुए बताता है,  “मम्मी पापा अभी एक एक्सीडेंट में गुज़र गए।” राहुल और उसका परिवार उसी वक्त आकाश के यहां पहुंचते हैं।

राहुल और उसका परिवार संस्कार में आकाश की मदद करते हैं। वहां आकाश की मां की पुरानी एक डॉक्टर सहेली आकाश से मिलती है और उसको एक राज़ की बात बताती है, “आकाश! तुम्हारे मां बाप की बेटी भी है, तुम्हारी बड़ी बहन।” आकाश चौंक जाता है, “ क्या!!” डॉक्टर आंटी कहती हैं, “मै तुम्हारे परिवार को बरसों से जानती हूं। उन्हें सिर्फ़ बेटा चाहिए था। हर तरीके से कोशिश के बाद भी जब लड़की हुई तो उन्होंने उसे अनाथ आश्रम में डाल दिया था। उस आश्रम का नाम कन्या अनाथालय था। मैं इससे ज़्यादा और कुछ नहीं जानती हूं। वो लड़की अब कहां है, कैसी है, पता नहीं।” वह सब बता कर डॉक्टर आंटी वहां से चली जाती हैं। आकाश स्तब्ध बैठा रह जाता है। 

 थोड़ी देर बाद वह राहुल को सारी बात बताता है। राहुल उससे कहता है, “तेरी बड़ी दीदी को ढूंढने में मैं तेरी मदद करता हूं। शायद घर में कोई ना कोई कागज़ मिल जाए जिससे हमें उनका पता मिलने में मदद हो” दोनों मिलकर ढूंढते हैं तो मम्मी की अलमारी में एक जीर्ण हालत में कागज़ मिलता है कोने में दबा हुआ। आकाश कांपते हाथों से उस कागज़ को देखता है तो उसमें कन्या अनाथालय लिखा था और एक फ़ोन नंबर। दोनों फ़ोन करते हैं तो वहां पर फोन नहीं लगता। हताश आकाश को राहुल अपने घर लाता है और अपने माता-पिता को सारी बात बताता है। 

राहुल के माता-पिता तब सबके सामने एक सच बताते हैं, “कईं साल तक जब हमारी कोई संतान नहीं हुई तो हमने अपेक्षा को गोद दिया था। उसके बाद राहुल हुआ। हम उस अनाथालय में चलते हैं। क्या पता वहां जाकर कुछ पता चले। वो लोग वहां जाते हैं तो अनाथालय का इंचार्ज कहता है, “ जो कन्या अनाथालय यहां कलकत्ता में था वह तो कईं साल पहले बंद हो गया था लेकिन जो कागज़ आप मुझे दिखा रहे हैं उस पर जो लिखा है उससे मुझे याद पड़ता है कि आगरा में भी इसकी ब्रांच है। इतना मैं जानता हूं कि वह चल रही है। मैं वहां क‌ईं बार गया हूं। आपको एक नंबर देता हूं, वहां बात करके चले जाइए। आकाश की आंखों में एक चमक से आती है क्योंकि उसकी मां ने बताया था कि क‌ईं साल पहले उनका परिवार आगरा में भी रहा था। वह लोग फ़ोन करके पता लेकर उसी वक्त आगरा के लिए निकलते हैं। 

वहां पहुंच कर मन में बहुत उथल पथल और क‌ईं सारे सवाल लिए आकाश इंचार्ज को कागज़ दिखाता है। इंचार्ज कहता है, “ यह तो 19 साल पुरानी बात है बेटा। कौन है तुम्हारा?” भारी कांपती आवाज़ से आकाश कहता है, “मेरी बड़ी बहन!” इंचार्ज रजिस्टर में कुछ जानकारी ढूंढता है और वहां खड़ी एक औरत से कहता है, “ ममता मैडम कमरा नंबर 201 से सीमा को ले आना।” फिर वो आकाश से कहता है, “सीमा नाम हमने अपनी सुविधा के लिए दिया था। बच्ची का कोई नाम नहीं पता था इसलिए।” आकाश जज़्बाती होकर बड़बड़ाता है, “सीमा!!” 

कुछ पल बाद उसके सामने एक लड़की आती है, बिल्कुल उसकी मां की शक्ल की। इंचार्ज सीमा को सारी बात बताता है तो वह फूट-फूट कर रो पड़ती है। आकाश उसका हाथ पकड़ कर कहता है, “आज राखी का दिन है। अपने घर चलकर अपने छोटे भाई को राखी बांधोगी ना बड़ी दीदी!!” 

सीमा और आकाश चेहरे पर मुस्कान और आंखों में आंसू लेकर एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर राहुल के परिवार के साथ अपने घर के लिए अनाथालय से निकलते हैं।