अपने इकलौते बेटे को पालने के लिए पति-पत्नी ने अनेक कष्ट सहे। कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते अपनी जरूरतों का गला घोंटते रहे, लेकिन बेटे की हर जरूरत को सही ढंग से पूरा किया। केवल भौतिक सुख-सुविधाएं ही नहीं दीं, बल्कि उसे नेक और आदर्श संस्कार भी दिए। उन्हें विश्वास था बेटा बड़ा होकर उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगा।
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद बेटे को बड़ी कंपनी में बढ़िया नौकरी मिल गई। माँ-बाप बड़े प्रसन्न थे। बेटे के लिए सुघड़ संस्कारी लड़की की खोज में वे लगे ही थे कि एक दिन बेटे ने उन्हें बताया- वह उसी की कंपनी में काम करने वाली वनिता से शादी करने का फैसला कर चुका है। माँ-बाप के मन को आघात तो पहुँचा, लेकिन बेटे की पसंद का ख्याल रखते हुए उन्होंने स्वीकृति दे दी।
बेटा अपनी मंगेतर के साथ रेस्तरां में बैठ कॉफी पी रहा था, भविष्य की योजनाएं बनाई जा रही थीं। एकाएक वनिता बोली- “मैं तुमसे एक बात स्पष्ट कर लेना चाहती हूँ। शादी के बाद तुम्हारे डस्टबिन कहां रखे जाएंगे?” बेटा हैरानी से उसका मुंह देखते हुए बोला- “मैं तुम्हारी बात नहीं समझा? डस्टबिन से क्या मतलब है तुम्हारा?”
“कम ऑन यार! इतनी सी बात नहीं समझते? तुम्हारे माँ-बाप कहां रहेंगे? वृद्धाश्रम में या कहीं और दूसरे घर में..।”
बेटा पल भर के लिए स्तंभित रह गया। माँ-बाप द्वारा मिले संस्कार गहरे बैठे थे। कुछ देर वह चुप रहा, सोच चलती रही, फिर उसने अपना निर्णय सुना डाला- “मेरी जिंदगी में मेरे माँ-बाप का स्थान सर्वाेच्च है। उन्हें डस्टबिन का नाम देकर तुमने उनका अपमान नहीं किया, अपितु मेरे मन में तुम्हारी जो छवि बनी हुई थी, वह धूमिल हो गई है। तुम अपने लिए दूसरे साथी की तलाश कर लो, जो अपने माँ-बाप को डस्टबिन समझने की हिम्मत रखता हो…”
बेटे ने अगले दिन माँ से कह दिया कि वह उनके द्वारा पसंद की गई लड़की से शादी करने के लिए तैयार है।
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
