Short Story in Hindi:सुरेश जी के दोनों बेटों में झगड़ा चल रहा था.. दोनों ने अंततः निश्चय किया कि एक एक महीने दोनों अपने माँ बाप को रखेंगे।दोनों ही अपने माँ बाप को साथ नहीं रखना चाहते थे। सुरेश जी को रिटायर हुए छह महीने हो चुके थे लेकिन अभी तक उनकी कंपनी में पेंशन का फ़ैसला नहीं हो पाया था।
सुरेश जी की पत्नी सुरेश जी से कहने लगी क्यों न हम दोनों अलग ही रह लें, लेकिन सुरेश जी ने कहा कि हम अपना खर्च कैसे चलायेंगे। हम दोनों की दवाई कैसे आएगी।
सुरेश जी और उनकी पत्नी को मजबूरी वश बेटों के फैसले को आत्मसात् करना पड़ा। दोनों एक एक महीने दोनों बेटों के यहाँ रहने लग गए। दोनों बेटे जैसे महीना पूरा होने का ही इंतज़ार करते थे।
एक साल इसी क्रम में गुजर गया , एक महीने बड़े बेटे के पास एक महीने छोटे बेटे के पास।
एक दिन सुरेश के मित्र का फ़ोन आया ,उन्होंने बताया कि अपनी कंपनी पेंशन का केस जीत गई है और अब हम सबको पेंशन मिलेगी.. ख़ुशी से नाचते हुए सुरेश जी ने पूरे परिवार को बताया और सभी को रेस्टोरेंट में दावत देने की बात कही।
उस समय सुरेश जी छोटे बेटे के पास थे , दो दिन बाद ही महीना पूरा होने वाला था हमेशा की भाँति सुरेश जी अपना सामान बाँधने लग गये तो
छोटा बेटा बोला अरे पापा अब आप यहीं रहो ..आपके बिना हमें अच्छा नहीं लगता.. वैसे भी आपसे तो घर की रौनक़ रहती है। सुरेश जी मुस्कुराने लगे .. इतने में बड़े बेटे का फ़ोन आ गया ,पापा मैं आप दोनों को लेने आ जाता हूँ, अब आप यहीं रहना । मेरे दोनों बच्चे बड़े हो गये हैं उन्हें आपसे कहानी सुनना बहुत अच्छा लगता है। आपके बिना बच्चों का मन नहीं लगता है।
मूक खड़ी सुरेश जी की पत्नी पेंशन की महिमा को बखूबी समझ रही थीं ,साथ ही अपने संस्कारों पर लज्जित भी हो रही थीं।
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