भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
संयुक्त राज्य अमेरिका से अपने बेटे के स्वदेश आने पर लक्ष्मी आमतौर पर बहुत ज्यादा खुश रहती है। इस बार बेटे को आए दो दिन हो गए, लेकिन लक्ष्मी के चेहरे पर खुशी का कोई चिह्न नहीं था।
सुरेश ने अपने पिता जानकीरामन से अकेले में पूछताछ की। “माँ क्यों उदास है? मैं देख रहा हूं कि जब से आया, वे रूखा-सा व्यवहार कर रही हैं। कुछ गड़बड़ है क्या पिताजी?” बेटे के प्रश्न के लिए “कुछ नहीं बेटा” पिताजी ने समाधान दिया।
“झूठ मत बोलिये पिताजी, हर बार मेरे आते तथा टैक्सी से उतरते समय, माँ अपने आप तुरंत दौड़कर आती थीं तथा भरी मुँह से मुस्कान के साथ हाथ पकड़ते हुए मुझे अंदर ले जाती थीं। लेकिन इस बार ऐसा लगता है कि वे किसी भ्रम से पीड़ित हैं। चौखट पर ही खडी हैं। चेहरे पर छोटी-सी भी मुस्कान नहीं थी” यह सुनकर जानकीरामन चुप हो गया।
“बोलिए पिताजी, माँ की क्या समस्या है? कोई स्वास्थ्य समस्या है क्या? अगर तबीअत ठीक नहीं है तो हम तुरंत चेन्नै जाकर एक अच्छे अस्पताल में दिखा सकते हैं”
“नहीं, बेटा। ऐसा कुछ नहीं है। ईश्वर की कृपा से, तुम्हारी माँ और मैं बिना किसी बीमारी के पूर्ण स्वस्थ हैं।”
“फिर क्या बात है?”
“जानकीरामन ने अपने बेटे को गौर से देखा और कहा, तुम्हारी माँ की उम्र हो गयी”
सुरेश बिना कुछ समझे देखता रहा।
“पिताजी! …माँ के इस तरह के व्यवहार और उम्र दोनों के बीच क्या संबंध है?”
“बेटा, उम्र के साथ उम्मीदें बढ़ती हैं”
“मैं समझा नहीं”
सुरेश! हर बार तुम्हारे आते तथा टैक्सी से उतरते समय, माँ अपने आप तुरंत दौड़कर आती थीं…भरी मुँह से मुस्कान के साथ हाथ पकड़ते हुए तुझे अंदर ले जाती थीं…ऐसा तुम कहते हो। देखा जाए तो इस बार भी वह उसी खुशी से इंतजार कर रही थीं। विगत एक महीने के दौरान आने-जानेवालों से बोल-बोलकर थक गई थीं कि शादी कर संयुक्त राज्य अमेरिका जाने के तीन साल बाद पहली बार मेरा बेटा बहु के साथ आ रहा है। खुशी के साथ ही टैक्सी की आवाज सुनते ही दौड़कर आईं परंतु अप्रत्याशित रूप से केवल तुम ही आए। पिल्ले को जंजीर से खींचकर ले जाने जैसे तुम्हें एक बक्स को ले कर आते हुए देखकर, तुम्हारी माँ…”
सुरेश अब सब समझ गया।
सुरेश ने पिताजी से कहा “हेमा (उसकी पत्नी) बहुत थक गयी है… मायके में आराम करके कल आएगी ऐसा बोलकर वह चली गयी । मैंने माताजी को यह बात बता दी। जैसे कहा वह अगले दिन आई…।”
“आई… पर जितनी तेजी से आई, उसी गति से निकल गई थी। इस कार्य ने माँ को मानसिक रूप से अधिक कमजोर बना दिया है। पहले ही कहा कि हम उम्र बढ़ने के साथ बहुत उम्मीद करते हैं। अगर कुछ ऐसा नहीं होता जैसा कि हम उम्मीद करते हैं, तो उस निराशा को सहने की हिम्मत और ताकत नहीं होती, मन टूट जाता है।”
यह सुनकर सुरेश ने अपने पिता को एक विचार से देखा।
“सुरेश! मैं तुम्हारी स्थिति को बहुत अच्छी तरह से समझता हूँ। पर बेचारी तुम्हारी माँ…हम ही उसकी दुनिया हैं…वे हमेशा हमारे विचार के इर्द-गिर्द रहेंगी…मानसिक रूप से अपनी बहु को अपनाया…लेकिन, वह जो फर्क दिखाती है वह कुछ ऐसा है जो आपकी माँ को आदत-सी नहीं है…। कुछ अप्रत्याशित…जिससे बहुत नुकसान हुआ।”
सुरेश को उस रात नींद नहीं आई….वह अपनी माँ के बारे में सोचकर बहुत दुखी हुआ। पूरी रात वह सोचता रहा और अगली सुबह जब वह जगा, उसकी माँ ने उसे पीने के लिए कॉफी दी।
“माँ-पिताजी, हम कल कोडैक्कानल निकलेंगे। मैं कार की व्यवस्था करूंगा। वहाँ मेरे दोस्त का अतिथि-गृह है, वहाँ रहेंगे” जानकीरामन जो अखबार पढ़ रहा था, ने एक भौंह उठाई।
“अचानक से?”
“पिताजी! एक बदलाव चाहिए। अपने माँ और पिताजी के साथ अच्छा समय बिताना चाहता हूँ। यहां रह कर यह संभव नहीं, कोई न कोई आकर आपको परेशान करता रहेगा।”
“तुम्हारी पत्नी?”
“नहीं पिताजी”
“तुरंत लक्ष्मी ने अचानक से पूछा। वह हमारे पास में क्यों नहीं आती?”
“सुरेश ने अपनी माँ को गौर से देखा। बात यह नहीं, यह मेरी व्यवस्था है…। मैंने इसके बारे में उसके साथ बात ही नहीं की…। केवल हम तीन ही जा रहे हैं.”
“मैं आना नहीं चाहती”
“आप जरूर आ रही हैं” सुरेश ने निश्चित रूप से कहा।
अगले दिन, लक्ष्मी अनमने ढंग से सुरेश और जानकीरामन के साथ निकल गयी। सुरेश और जानकीरामन मोटर गाड़ी में जाते समय बहुत सारी बातें कर रहे थे…पर लक्ष्मी ने अपना मुंह नहीं खोला।
कोडैक्कानल गेस्ट हाउस बहुत आरामदायक था। सुरेश ने लक्ष्मी और जानकीरामन को कई पर्यटनीय स्थानों को दिखाया, नौका विहार किया।
लेकिन लक्ष्मी ने उसे तंग नहीं किया। जैसे लक्ष्मी का शरीर ही गया मन साथ में नहीं गया।
दूसरे दिन वे बाहर गए और रात का खाना हुआ। तीनों हॉल में बैठे थे, प्राइवेट टी.वी. चैनल पर वैजयंती माला को देखते हुए जेमिनि गणेश घोड़े पर सवार गीत गाते हुए नजर आए।
“बताइये! पुराने गाने बहुत अच्छे हैं। क्या इस तरह की धुन अब आती है? जानकीरामन अभी वार्तालाप कर रहा था”
“ठीक कहा आपने। पर अब गीतों में वह माधुर्य नहीं, ऐसे हम नहीं बोल सकते…। समय बदलता रहता है…”
“तुम सही कहते हो…हर चीज बदलेगी…तुम यह पसंद करते हो… लेकिन हम इसे बरदाश्त नहीं कर सकते”
“लेकिन अब यह वास्तविकता है…इसे समय के अनुरूप मानकर स्वीकार करना होगा…और कोई रास्ता नहीं…यह सिर्फ स्वाद के लिए नहीं, बल्कि जीवन के लिए भी है”
जानकीरामन विस्मय में गंभीर होकर अपने बेटे को देखने लगे। लक्ष्मी सोफे पर घूरते हुए बैठ गयी। सुरेश धीरे से उठा और उनके पास जाकर बैठ गया।
“माँ…मैं तुम्हारे मन को अच्छी तरह जानता हूँ…। लेकिन तुम एक बात समझ लो…। मैंने कहा… सब कुछ बदल गया है… ऐसा सिर्फ संगीत में ही नहीं है? मानवीय रिश्तों का भी यही हाल है। बचपन में पिताजी और माँ मुझे प्यार-स्नेह करते थे…। बिना किसी शर्त के पाला पोसा…। मेरे लिए आपका प्यार और सम्मान कभी कम नहीं होगा”
“लेकिन अब इन सभी भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं है। हम आजकल की पीढ़ी को विस्तार से समझा नहीं सकते। आप उसे मजबूर नहीं कर सकते… असल में आप भाग्यवान हैं क्योंकि आपके बारे में सोचने के लिए आपके बारे में चिंता करने के लिए मैं हूँ। आपकी बहू भी आपसे नाराज नहीं है। उसके मन में भी आपके प्रति आदर है, हालांकि आप से भले ही वह दूर है।
लेकिन कल मुझे एक बच्चा पैदा हुआ और वही बच्चा जब बड़ा हो जाएगा उससे बेशक प्यार, आदर इनकी अपेक्षा नहीं कर सकता जो मैं आपसे पा रहा हूँ….स्नेह की उम्मीद नहीं कर सकता।
कहने की जरूरत नहीं है…भविष्य के सभी रिश्ते वाणिज्यिक रिश्ते होने जा रहे हैं। सभी जगह प्यार और स्नेह के लिए कोई जगह नहीं है…। अब हमें अपने दिमाग को उसके लिए परिपक्व बनाना है, परिपक्व तैयार करते ही रहते हैं, यही सच्चाई है…। तो कृपया किसी भी अपेक्षा को अपने दिमाग में न आने दें …। यह वास्तविकता है ठीक है, आपका बेटा मैं हूँ तो आपको और किसी की आवश्यकता क्यूँ है?
ऐसा कहकर सुरेश ने अपनी माँ को समर्थन एवं स्नेह से गले लगाया।
भले ही सुरेश ने जो कहा, उसकी वास्तविकता से लक्ष्मी परेशान हैं, लेकिन वह इसे तुरंत स्वीकार नहीं कर सकती। पर हाँ, उसे इससे सुरक्षा की भावना महसूस हुई कि उसका पुत्र कुपुत्र नहीं सुपुत्र है।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
